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नई दिल्ली: Tax On FD Interest: बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट (Bank FD) पर जो ब्याज आप कमाते हैं, उस पर आपको टैक्स देना होता है. इस पर 'अन्य स्रोतों से आय' के रूप में टैक्स लगता है. लेकिन ऐसा देखा गया है कि कई बार टैक्सपेयर्स एफडी पर होने वाली ब्याज इनकम की जानकारी देने में गलतियां करते हैं, जिससे उन्हें इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का नोटिस आ जाता है.
ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के पास जो ब्याज आय का डेटा होता है, वो टैक्सपेयर की ओर से दाखिल किए गए ITR से मैच नहीं करता. तो चलिए आपको बिल्कुल आसाना भाषा में बताते हैं कि एफडी पर मिले ब्याज पर आपको इनकम टैक्स का नोटिस न आए, इसके लिए आपको क्या सावधानियां रखनी चाहिए.
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सबसे पहले ये समझ लीजिए कि बैंक एफडी पर जो भी ब्याज मिलता है, उस पर आपको टैक्स देना होता है. हालांकि सीनियर सिटीजंस सेविंग्स और फिक्स्ड डिपॉजिट पर कमाए गए ब्याज पर 50,000 रुपये तक क्लेम कर सकते हैं. ITR में आपको Income from other sources" कॉलम दिया गया है. यहीं पर आपको अपनी ब्याज से हुई आय लिखनी होती है.
अगर साल में आपने एक तय सीमा से ज्यादा ब्याज कमाया है तो बैंक उस पर 10 परसेंट के हिसाब से TDS काटता है. ये लिमिट सामान्य लोगों के लिए 40,000 रुपये है, जबकि सीनियर सिटीजंस के लिए 50,000 रुपये है. अगर साल में कमाया गया ब्याज तय सीमा से ज्यादा है तो तब बैंक TDS काटेगा जो कि आपको 26AS में दिखेगा. इससे ITR और टैक्स डिपार्टमेंट के डेटा में मिसमैच को भी रोक सकेंगे.
60 साल से ज्यादा उम्र यानी सीनियर सिटीजंस के मामले में सेविंग्स अकाउंट, FD/TD, पोस्ट ऑफिस स्कीम्स, को-ऑपरेटिव बैंकों में किए गए किसी भी तरह के डिपॉजिट से एक वित्त वर्ष में हासिल होने वाला 50000 रुपये तक का ब्याज आयकर कानून के सेक्शन 80TTB के तहत टैक्स फ्री है. एक बात दिलचस्प जानिए कि पोस्ट ऑफिस की FD से ब्याज आय पर TDS नहीं कटता है.
अगर आपकी इनकम टैक्स लिमिट से कम है तो आपको TDS काटे जाने से बचने के लिए इस बारे में बैंक को तुरंत जानकारी देनी होगी. बैंक TDS न काटे, इसके लिए सीनियर सिटीजन को बैंक में फॉर्म 15H जमा करना होता है. जबकि जो लोग सीनियर सिटीजन नहीं हैं, उन्हें फॉर्म 15G जमा करना होता है. ये फॉर्म इस घोषणा के लिए होते हैं कि व्यक्ति की सालाना आय एक वित्त वर्ष में तय मिनिमम छूट की सीमा से ज्यादा नहीं है. टैक्स न कटे, इसके लिए इन फॉर्म को हर साल वित्त वर्ष की शुरुआत में जमा करना होता है.
एफडी निवेशक के पास ITR में ब्याज की प्राप्ति को ईयर ऑफ एक्रुअल के अलावा ईयर ऑफ रिसीट में भी दिखाने का ऑप्शन है. यानी आप ब्याज की डिटेल हर साल भी दे सकते हैं या उस साल भी दे सकते हैं जब आपको एफडी का ब्याज मिले. लेकिन एक्सपर्ट्स मानते हैं कि आप ईयर ऑफ एक्रुअल में ही ब्याज इनकम की जानकारी दें तो बेहतर होगा.
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