देश भर में कोरोना वायरस संकट के बीच आने वाले दिनों में उपभोक्ताओं को तेल, साबुन, दंतमंजन और पैकेटबंद जैसे रोजमर्रा के उपयोग वाले सामान पर अधिक खर्च करना पड़ सकता है। इनका उत्पादन करने वाली कंपनियां कच्चे माल के दाम बढ़ने की वजह से अपने उत्पादों के दाम बढ़ाने पर विचार कर रही हैं।
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नई दिल्लीः पिछले एक हफ्ते में तेल से लेकर दाल और आलू-प्याज-टमाटर से लेकर गुड़ व नमक तक के दाम में जबर्दस्त उछाल देखने को मिला है. खुदरा बाजार में चावल-गेहूं और आटा भी महंगाई की आंच पर पक रहा है. हालांकि उच्च मुद्रास्फीति के कारण नीतिगत दरों में कटौती से परहेज कर रहा रिजर्व बैंक कुछ और समय इंतजार कर सकता है. उद्योग जगत चाहता है कि केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में नरमी को देखते हुए कोई कदम उठाए.
प्याज की कीमतें 23 फीसदी बढ़ी हैं. 3 जनवरी को प्याज का औसत मूल्य 31.40 रुपये किलो था, जबकि अब यह 38.82 रुपये किलो पर पहुंच चुका है. इस समयावधि में टमाटर के रेट में करीब 4 फीसदी और आलू के भाव में करीब 23.72 फीसदी का उछाल आया. यही नहीं नमक के रेट में करीब 13 फीसदी का उछाल आया है. वहीं गुड़ की मांग बढ़ी तो यह भी तेज हो गया. पिछले एक हफ्ते में गुड़ 43 रुपये किलो से बढ़कर 48.55 रुपये पर पहुंच गया है.खुदरा बाजार में चावल-गेहूं और आटा भी महंगाई की आंच पर पक रहा है. उपभोक्ता मंत्रालय की वेबसाइट पर दिए गए खुदरा केंद्रों के आंकड़ों के मुताबिक 3 जनवरी 2021 की तुलना में 10 जनवरी 2021 को पैक पाम तेल 105 रुपये से बढ़कर करीब 111 रुपये, सूरजमुखी तेल 135 से 138 और सरसों तेल 137 से करीब 143 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया. वनस्पति तेल 4.5 फीसदी महंगा होकर 107 से 112 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया.
तेल, साबुन, दंतमंजन जैसे सामान पर आपकी जेब ढीली हो सकती है. इनका उत्पादन करने वाली कंपनियां कच्चे माल के दाम बढ़ने की वजह से अपने उत्पादों के दाम बढ़ाने पर विचार कर रहीं हैं. इनमें से कुछ कंपनियों ने तो पहले ही दाम बढ़ा दिये हैं, जबकि कुछ अन्य करीब से स्थिति पर नजर रखे हुये हैं और मामले पर गौर कर रहीं हैं.
रोजमर्रा के उपभोग का सामान बनाने वाली एफएमसीजी मैरिको तथा कुछ अन्य पहले ही दाम बढ़ा चुकीं हैं, जबकि डाबर (Dabur), पारले (Parle) और पतंजलि (Patanjali) जैसी अन्य कंपनियां स्थिति पर करीब से निगाह रखे हुए हैं. नारियल तेल, दूसरे खाद्य तेलों और पॉम तेल जैसे कच्चे माल का दाम बढ़ने से एफएमसीजी कंपनियां पहले तो इस वृद्धि को खुद ही खपाने का प्रयास कर रही हैं, लेकिन वह लंबे समय तक अपने उत्पादों के दाम को स्थिर नहीं रख पायेंगी क्योंकि ऐसा करने से उनके सकल मार्जिन पर असर पड़ सकता है.
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