First Indian AC Train: भारत की पहली एसी ट्रेन करीब 90 साल पहले चलाई गई थी. उस दौर में बिजली का इंतजाम नहीं था. ऐसे में कोच को ठंडा रखने के लिए जबरदस्त जुगाड़ लगाया गया था.
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Indian Railways First AC Train: देश में मोदी सरकार के आने के बाद से इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की दिशा में काफी काम देखने को मिल रहा है. भारतीय रेलवे भी इससे अछूता नहीं है. पिछले कुछ सालों में भारतीय रेलवे में ऐसे सुधार किए गए हैं, जिससे वह भी अब काफी अडवांस हो गई है. देश में सबसे तेज स्पीड से चलने वाली वंदे भारत ट्रेनें शुरू हो चुकी हैं. साथ ही बुलेट ट्रेनों के निर्माण का भी काम चल रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में चली पहली एसी ट्रेन कौन सी थी. उस ट्रेन में डिब्बों को ठंडा रखने के लिए किस तकनीक का इस्तेमाल किया गया था.
अंग्रेजों के जमाने में चली थी ट्रेन
भारतीय रेलवे के अधिकारियों के मुताबिक भारत में चली पहली एसी ट्रेन (India First AC Train) का नाम गोल्डन टेंपल मेल (फ्रंटियर मेल) थी. वह ट्रेन अंग्रेजों के जमाने में चलाई गई थी. अंग्रेजी सरकार ने 1 सितंबर 1928 को इस ट्रेन को पहली बार चलाया था. उस जमाने में इसका नाम फ्रंटियर मेल (Frontier Mail) हुआ करता था, जिसे अब गोल्डन टेंपल मेल के नाम से जाना जाता है. यह ट्रेन मुंबई सेंट्रल से लाहौर तक चलती थी. आजादी के बाद इस ट्रेन को मुंबई से अमृतसर तक सीमित कर दिया गया.
अंग्रेज करते थे एसी कोच में सफर
फ्रंटियर मेल में पहली बार वर्ष 1934 में एसी कोच जोड़े गए थे. उन कोचों में अंग्रेज सफर करते थे, जिन्हें भारत की तेज गर्मी सहन करने की आदत नहीं थी. उस वक्त एसी कंपार्टमेंट का आविष्कार नहीं हुआ था. इसलिए ट्रेन के एसी कोचों (India First AC Train) को ठंडा रखने के लिए बर्फ की सिल्लियों का इस्तेमाल किया गया. इसके लिए कोचों के नीचे बॉक्स बनाए गए थे. ट्रेन चलने से पहले उन कोचों में बर्फ की बड़ी-बड़ी सिल्लियां रख दी जाती थीं. उन सिल्लियों के ऊपर पंखा लगा हुआ था, जो बर्फ की ठंडक को कोच में ट्रांसफर कर देता था.
खास तरह की सुविधाओं से सज्जित
भारत की पहली एसी ट्रेन (India First AC Train) के रूप में चर्चित फ्रंटियर मेल (Frontier Mail)में खास तरह की बर्थ, चेयर और टॉयलेट की सुविधा थी. उस कोच में पंखे और लाइट का भी इंतजाम था. कहते हैं कि वह उस वक्त की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन हुआ करती थी. एक बार की बात है. वह ट्रेन करीब 15 मिनट लेट हो गई थी. जिस पर बवाल मच गया था. अंग्रेज अधिकारियों ने इसे गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दे दिए थे. इसके बाद देरी के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई भी की गई थी.