Credit कार्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, लेट पेनल्टी को लेकर NCDRC के फैसले को पलटा, जानिए पूरी डिटेल्स
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Credit कार्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, लेट पेनल्टी को लेकर NCDRC के फैसले को पलटा, जानिए पूरी डिटेल्स

Credit Card: साल 2008 में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने फैसला सुनाया था कि देर से भुगतान के लिए प्रति वर्ष 30% से अधिक दरें वसूलना एक अनुचित व्यापार व्यवहार है.

Credit कार्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, लेट पेनल्टी को लेकर NCDRC के फैसले को पलटा, जानिए पूरी डिटेल्स

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट से बैंकों को बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के 2008 के फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें बैंकों द्वारा देर से क्रेडिट कार्ड बिल भुगतान पर ब्याज दर 30% प्रति वर्ष निर्धारित की गई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने देर से क्रेडिट कार्ड भुगतान पर उपभोक्ता फोरम की 30% ब्याज दर की सीमा को खारिज कर दिया है. साल 2008 में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने फैसला सुनाया था कि देर से भुगतान के लिए प्रति वर्ष 30% से अधिक दरें वसूलना एक अनुचित व्यापार व्यवहार है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में इस आदेश पर रोक लगा दी थी. वहीं, अब इस आदेश को पलट दिया है.

दो जजों की बेंच ने की सुनवाई

न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, सिटी बैंक और हांगकांग और शंघाई बैंकिंग कॉर्पोरेशन (एचएसबीसी) सहित विभिन्न बैंकों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

बैंकों द्वारा क्रेडिट कार्ड के लेट पेमेंट पर लिए जाने वाले ब्याज को लेकर एक NGO (आवाज फाउंडेशन) ने याचिका दायर की थी. इसके बाद साल 2008 में, NCDRC ने फैसला सुनाया था कि समय पर पूर्ण भुगतान करने में विफल रहने या केवल न्यूनतम देय राशि का भुगतान करने पर क्रेडिट कार्ड धारकों से 30% प्रति वर्ष से अधिक की ब्याज दर वसूलना एक अनुचित व्यापार व्यवहार है.

सुप्रीम कोर्ट ने लगा दी थी रोक

उपभोक्ता फोरम ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत इसे अनुचित माना जा सकता है. इसलिए वित्तीय संस्थानों को अत्यधिक ब्याज दरें वसूलने से रोकने के लिए नियम जरूरी है.

इसके बाद बैंकों ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सुप्रीम कोर्ट ने शुरू में 2009 में आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. हालांकि, बाद में बैंकों ने तर्क दिया कि ऐसा नहीं करना उनके लिए प्रतिकूल होगा, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी.

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