DNA Analysis on BEd vs BSTC: DNA में हम एक ऐसे मुद्दे की बात करेंगे, जो आपसे सीधे जुड़ा है. हमारे दर्शक भी हमसे अपील कर रहे थे कि हम इस मुद्दे का DNA TEST करें. इसीलिए हमने तय किया है कि हम देश में B.Ed और BTs करने वालों के बीच छिड़े विवाद और उस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संपूर्ण विश्लेषण करेंगे.
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DNA Analysis on BEd vs BSTC: DNA में हम एक ऐसे मुद्दे की बात करेंगे, जो आपसे सीधे जुड़ा है. हमारे दर्शक भी हमसे अपील कर रहे थे कि हम इस मुद्दे का DNA TEST करें. इसीलिए हमने तय किया है कि हम देश में B.Ed और BTs करने वालों के बीच छिड़े विवाद और उस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संपूर्ण विश्लेषण करेंगे. आपको बताएंगे कि आखिर इस फैसले का किस पर कितना असर पड़ने वाला है...?
दरअसल सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद अब राजस्थान में लंबे वक़्त से चला आ रहा BTs और B.ed का विवाद ख़त्म हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए, B.Ed वालों को primary Class के बच्चों के पढ़ाने के लिए अयोग्य ठहरा दिया है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई करते हुए साफ़ तौर से कहा कि primary Class यानी level 1 तक पढ़ाने के लिए BTS, यानी diploma करने वाले अभ्यर्थी ही योग्य होंगे. कोर्ट ने ये भी कहा कि right to education का मतलब quality education भी होता है.
एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार की policy पर ही मुहर लगा दी है और उसने केंद्र सरकार की तरफ़ से वर्ष 2018 में जारी किए गए notification को रद्द कर दिया है. यानी अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राजस्थान में अब primary teachers की भर्ती के लिए B.Ed वाले apply नहीं कर पाएंगे. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार पहली से लेकर पांचवी कक्षा तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए ज्ञान के साथ साथ खास तरह की skills की भी ज़रूरत होती है. दरअसल इस उम्र के बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं और teachers उनके character को आकार दे सकें, इसके लिए ज़रूरी है कि teachers बच्चों के मन को समझ सकें, उन्हे ठीक से डील कर सकें.
BTS या BTC यानी basic traning certificate का कोर्स करने वाले candidates को खासकर इसी चीज़ की ट्रेनिंग दी जाती है. जबकि B.Ed की डिग्री के दौरान छात्रों को secondary class और बड़ी कक्षाओं के बच्चों को पढ़ाने की training दी जाती है. ऐसे में कोर्ट का मानना है कि BTS वाले primary के बच्चों को अच्छा पढ़ा सकते हैं और इसलिए इस POST पर उनकी ही भर्ती की जानी चाहिए, न कि B.Ed वालों की.
अब हम बताएंगे कि B.Ed और BTS का ये विवाद शुरू कैसे हुआ. दरअसल इस विवाद की शुरुआत वर्ष 2018 में केंद्र सरकार के एक notification के बाद हुई. इससे पहले यानी वर्ष 2018 तक राजस्थान समेत देश के दूसरे राज्यों में प्राइमरी टीचर्स के लिए B.Ts या B.Tc का Diploma करने वालों को पात्र माना जाता था. और primary teachers यानी लेवल 1 के लिए B.Ed वाले form नहीं भर सकते थे. जबकि level 2 यानी secondary level पर apply करने वालों के लिए B.Ed की डिग्री ज़रूरी थी
लेकिन वर्ष 2018 में KVS यानी केंद्रीय विद्यालय के कमिश्नर ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखा, इसमें उन्होने लिखा कि उन्हे primary level पर बच्चों को पढ़ाने के लिए योग्य teachers नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में सरकार उन्हे primary level पर भी B.Ed वालों को भर्ती करने की परमिशन दे दे, ताकि वो teachers की कमी पूरी कर सकें. इसके कुछ महीने बाद मानव संसाधन मंत्रालय ने NCTE यानी नैशनल काउंसिल फॉर टीचर्स एजुकेशन से कहा कि स्कूलों में टीचर्स की कमी न हो, इसलिए प्राइमरी लेवल पर भी B.Ed वालों की भर्ती की जानी चाहिए. HRD मिनिस्ट्री के इस लेटर के बाद NCTE ने 28 जून 2018 को एक नोटिफिकेशन जारी कर दिया.
इस नोटिफिकेशन में कहा गया कि लेवल-1 की भर्ती के लिए B.Ed वाले भी एप्लाई कर सकेंगे, लेकिन उन्हे जॉब मिलने के 6 महीने के अंदर एक ख़ास bridge course करना होगा. इस कोर्स में उन्हे छोटे बच्चों को पढ़ाने की training दी जाएगी. लेकिन वर्ष 2018 में राजस्थान सरकार ने राजस्थान teachers eligibility test के लिए विज्ञापन निकाला तो उसने B.Ed candidates को primary teachers की नौकरी देने से मना कर दिया. जबकि NCTE के notification के अनुसार B.Ed candidates को मौक़ा मिलना चाहिए था.
राजस्थान सरकार के इस फैसले के ख़िलाफ़ देवेंद्र शर्मा नाम का एक कैंडिडेट राजस्थान हाईकोर्ट चला गया. जवाब में B.Ts वाले भी हाईकोर्ट पहुँच गए. हाईकोर्ट ने राजस्थान सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया और देवेंद्र शर्मा की याचिका ख़ारिज कर दी. अब तक ये लड़ाई B.Ed VS BTS की हो चुकी थी. लिहाजा B.Ed करने वाले candidates राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट चले गए. लेकिन मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने राजस्थान हाईकोर्ट के फ़ैसले को बरकार रखा और NCTE के वर्ष 2018 में जारी किए गए notification को रद्द कर दिया.
कोर्ट ने कहा कि शिक्षा का अधिकार ज़रूरी है, लेकिन अगर एजुकेशन में quality ही नहीं होगी तो फिर ऐसे Right To Education का कोई फ़ायदा नहीं. अब हम आपको आसान भाषा में समझाएंगे कि इस फैसले का B.Ed और B.TS या BTC वालों पर क्या असर पड़ेगा. इसके लिए आपको ये समझना होगा कि सरकारी teachers की भर्ती कैसे होती है. सरकारी teachers की भर्ती के लिए राज्य सरकारें अपने स्तर पर TET यानी teachers eligibility test आयोजित करती हैं. जो candidate इस test को pass करता है, वही teachers की भर्ती के लिए योग्य होता है. लेकिन TET की परीक्षा हर कोई नहीं दे सकता...इस exam में वही बैठ सकता है, जिसने या तो B.Ed की degree ले रखी हो. या फिर उसके पास B.TS या btc का diploma हो.
2018 से पहले नियम ये था कि कक्षा 1 से 5 तक यानी primary school में जो teachers भर्ती होते थे, उनमें सिर्फ़ B.TS या BTC वालों का ही selection होता था. जबकि 5 वीं से 8वीं तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए यानी secondary school में सिर्फ़ B.Ed वालों की भर्तियां होती थीं. यानी primary स्तर के लिए B.Ed वाले apply नहीं कर सकते थे, और secondary स्तर के लिए B.TS वाले apply नहीं कर सकते थे. लेकिन वर्ष 2018 में NCTE के notification के बाद B.Ed वालों ने भी primary teachers की नौकरी के लिए apply करना शुरू कर दिया. इससे B.Ed वालों के लिए तो नौकरी के मौक़े बढ़ गए, लेकिन जिन लोगों ने ख़ास तौर पर primary के बच्चों को पढ़ाने की ही training ली थी. उनका competetion बढ़ गया और इसी वजह से दोनों आमने सामने आ गए और क़ानूनी लड़ाई शुरू हो गई. यानी सुप्रीम कोर्ट का फैसला BTS वालों के लिए खुशी तो B.ED वालों के लिए ग़म की वजह बना है.
अब आप समझ चुके होंगे कि सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से कोई खुश है, तो कोई निराश. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राजस्थान सरकार संतुष्ट नज़र आई. भारत में क़रीब 7 हज़ार ऐसे college हैं, जहां B.Ed की पढ़ाई होती है और हर वर्ष करीब डेढ़ लाख छात्र यहां से B.Ed की डिग्री हासिल करते हैं. इसके बाद ये candidates teacher बनने के लिए अलग-अलग exams देते हैं. कुछ यही हाल diploma करने वाले BTC और BTS के अभ्यर्थियों का है. लेकिन इनमें से ज़्यादातर ऐसे होते हैं. जिन्हे सालों तक नौकरी नहीं मिलती और नौकरी के लिए कइयों का इंतज़ार तो कभी ख़त्म ही नहीं होता.
ये हाल तब है, जबकि देश भर में teachers की लाखों post खाली पड़ी हैं. केंद्र सरकार की तरफ से संसद में दी गई जानकारी के अनुसार वर्ष 2020 से लेकर वर्ष 2022 तक देश के लगभग सभी राज्यों में शिक्षकों की लाखों postखाली रह गई थीं. यानी इन पदों पर किसी की भर्ती ही नहीं हुई. आंकड़ों के अनुसार बिहार में वर्ष 2022-23 में कक्षा 1 से लेकर 8 तक के शिक्षकों की 1,87,209 पोस्ट खाली थीं. ये हाल तब है, जबकि बिहार में छात्रों और शिक्षकों के बीच का अनुपात सबसे ख़राब है और वहां 50 से 60 छात्रों के बीच सिर्फ़ एक teacher ही है.
इसी तरह उत्तर प्रदेश में भी 2022-23 में कक्षा 1 से 8 तक के teachers के 1,26,28, झारखंड में भी 2022-23 के दौरान कक्षा एक से लेकर आठ तक के शिक्षकों की 74,357 post रह गईं यानी सरकार को इन post के लिए योग्य candidates ही नहीं मिले. मध्यप्रदेश में भी इसी दौरान शिक्षकों के 69, 667 पद खाली रह गए. इसी तरह राजस्थान में भी फिलहाल शिक्षकों के 25,369 पद खाली हैं. यानी एक तरफ़ तो B.Ed और BTC वालों को नौकरी नहीं मिलती, जबकि दूसरी तरफ़ आज देशभर में teachers की भारी कमी है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का राजस्थान के B.Ed पास अभ्यर्थियों पर ख़ास असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि राजस्थान ने NCTE का आदेश माना ही नहीं था. लेकिन जिन राज्यों में B.Ed पास लोग प्राइमरी टीचर बन चुके हैं. अब उन्हें अपना भविष्य ख़तरे में नज़र आ रहा है.
हमने आपको B.Ed वालों का भी पक्ष दिखाया और BTC वालों से भी बात की. दोनों पक्षों की अपनी-अपनी दलीलें हैं, अपनी-अपनी मजबूरियां हैं. लेकिन आज जो हालात हैं, इसके पीछे सरकारों की नीतियां भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं. देश के कई राज्यों में teachers की भर्ती के नियम बार-बार बदलते रहते हैं. हर सरकार अपने नियम लागू कर देती है. इस वजह से छात्रों के बीच भी confusion रहता है. कई बार तो छात्र वर्षों से तैयारी करते रहते हैं, लेकिन जब परीक्षा की बारी आती है, तो उन्हे मौक़ा ही नहीं मिलता और इस बार B.Ed वालों के साथ भी यही हुआ है. ऐसे में ज़रूरी है कि इस तरह के किसी भी बदलाव से पहले सभी पहलुओं पर अच्छी तरह विचार कर लिया जाए ताकि कोई भी नौजवान ख़ुद को ठगा हुआ महसूस न करे.