Success Story: कहानी डिप्टी एसपी की, जिनके पास नहीं थे पढ़ने के पैसे, फीस के लिए मां ने बेचे थे जेवर
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Success Story: कहानी डिप्टी एसपी की, जिनके पास नहीं थे पढ़ने के पैसे, फीस के लिए मां ने बेचे थे जेवर

Sunil Kumar UPPCS Success Story: सुनील ने स्कूली शिक्षा तो प्राप्त कर ली थी लेकिन आगे की राह उनके लिए और भी ज़्यादा कठिन होने वाली थी.

Success Story: कहानी डिप्टी एसपी की, जिनके पास नहीं थे पढ़ने के पैसे, फीस के लिए मां ने बेचे थे जेवर

PCS Success Story: सुनील कुमार उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के रहने वाले हैं. वह बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज थे लेकिन कदम कदम पर उन्हें गरीबी और आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा है. सुनील के पिता भी कपड़े प्रेस करने का काम करके किसी तरह घर का गुज़ारा किया करते थे. सुनील ने कक्षा 10वीं में अच्छे नंबर प्राप्त करने पर अपने पिता से प्रयागराज से कक्षा 12वीं की पढ़ाई करने का आग्रह किया था लेकिन पैसों की कमी के चलते उनके पिता ने अपनी असमर्थता जाहिर कर दी थी. ऐसे में सुनील ने कुछ लोगों की मदद से किसी तरह प्रयागराज से 12वीं की पढ़ाई पूरी की थी.

सुनील ने स्कूली शिक्षा तो प्राप्त कर ली थी लेकिन आगे की राह उनके लिए और भी ज़्यादा कठिन होने वाली थी. बता दें कि ग्रेजुएशन के दौरान इंजीनियरिंग की फीस भरने के लिए सुनील की मां ने अपने गहने तक बेच दिए थे. बड़ी मेहनत से सुनील ने ग्रेजुएशन पूरा किया और फिर इसके बाद उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा देने का मन बना लिया. साल 2015 में अपने पहले ही प्रयास में सुनील मेन्स परीक्षा तक पहुंचे भी लेकिन इंटरव्यू नहीं क्लियर कर पाए थे. इससे सुनील का हौसला बढ़ गया और उन्होंने आईएएस अधिकारी बनने का फैसला कर लिया था.

सुनील सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में पूरी तरह से जुट गए थे लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था. सुनील सिविल सेवा परीक्षा के अगले तीन प्रयासों में असफल रहे थे. फिर घर के हालात को देखते हुए उन्होंने UPPCS परीक्षा देने का फैसला किया और इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी थी. आखिरकार, साल 2018 में सुनील ने इस परीक्षा में 75वीं रैंक प्राप्त की और उन्हें डिप्टी एसपी का पद मिला.

सुनील का मानना है कि UPSC या UPPSC जैसी कठिन परीक्षाओं में अगर सफलता प्राप्त करनी है तो आपको नियमित रूप से मेहनत करनी पड़ेगी. अगर आपके सामने कोई आर्थिक चुनौती नहीं है तो सपना साकार करने के बाद ही रुकना चाहिए. उनका कहना है कि इस परीक्षा में कामयाबी हासिल करने के लिए सही रणनीति और कठिन परिश्रम के साथ ही परिवार का सहयोग भी बेहद जरूरी होता है.

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