एक किताब में ऐसा क्या मिला मोटिवेशन या निराशा..., जिसे पढ़कर कुमार विश्वास ने छोड़ी इंजीनियरिंग की पढ़ाई?
Advertisement
trendingNow12297236

एक किताब में ऐसा क्या मिला मोटिवेशन या निराशा..., जिसे पढ़कर कुमार विश्वास ने छोड़ी इंजीनियरिंग की पढ़ाई?

Motivational Story: कुमार विश्वास के पिता हिंदी के प्रोफेसर थे. इसके बावजूद उनका कहना था कि इसमें न तो बेहतर भविष्य है और न ही अच्छा पैसा. इसी के चलते पिता ने बेटे का दाखिला प्रयागराज के इंजीनियरिंग कॉलेज में करा दिया...

एक किताब में ऐसा क्या मिला मोटिवेशन या निराशा..., जिसे पढ़कर कुमार विश्वास ने छोड़ी इंजीनियरिंग की पढ़ाई?

Motivational Story For Students: कुमार विश्वास के इस नाम, कवि और लेखक बनने की कहानी बहुत ही दिलचस्प है. आज की तरह कुछ साल पहले तक हर भारतीय युवा के पास पसंदीदा करियर चुनने का विकल्प नहीं होता था. कई बार परिवार के आर्थिक हालात इसकी इजाजत नहीं देते थे तो कई बार परिवार के मुखिया..., कुछ ऐसी ही कहानी कुमार विश्वास की भी है, उनके पिता चाहते भी यही चाहते थे कि बेटा पढ़-लिख कर इंजीनियर बने. नीलेश मिश्रा के शो में डॉ. कुमार विश्वास ने अपनी कहानी बताई कि कैसे उनकी लाइफ ने यू टर्न लिया और बेमन से इंजीनियरिंग करने गए विश्वास की लाइफ एक किताब ने बदलकर रख दी. आइए जानते हैं यहां...

पिता से तो कुछ कहा नहीं जा सकता था. न चाहते हुए भी कुमार विश्वास को इंजीनियरिंग कॉलेज जाना पड़ा, लेकिन इंजीनियरिंग के पहले ही साल में उनके साथ कुछ ऐसा हुआ, वह रातों-रात पढ़ाई छोड़कर घर चले आए.

एक किताब से मिली हिम्मत
कुमार विश्वास बताते हैं कि कॉलेज के पहले में मिड ब्रेक में उनका रूम पार्टनर अपने घर पंजाब चला गया. इस दौरान वह हॉस्टल में अकेले ही थे. तब एक दिन किताबों के शौकीन विश्वा रूम मेट की किताबें खंगालने लगे. इसमें एक किताब थी, जिसके लेखक थे रजनीश. कुमार आगे कहते हैं कि उस समय केवल एक रुपये कीमत की वह किताब उनके लिए जीवन की नई व्याख्या थी, जो उनकी  लाइफ के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुई. 

ऐसा क्या लिखा था किताब में...
विश्वास को मिली इस बुक का टाइटल था'माटी कहे कुम्हार से'. कुमार विश्वास बताते हैं कि उन्होंने पूरी किताब एक बार में ही पढ़ ली. इस किताब में एक जगह लिखा था कि अपनी अंदर की आवाज के खिलाफ कभी मत जाइए. इसके खिलाफ जाने का मतलब है, ईश्वर के खिलाफ जाना.

मन की आवाज सुनी
इस किताब ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया. किताब पूरी पढ़कर कुमार विश्वास लगे,  "मेरे अंदर की आवाज क्या है? मेरे मन में बार-बार आता था कि मुझे कवि बनना है, गाना गाना है, कविताएं सुनानी हैं, लेकिन मैं इंजीनियरिंग की थ्योरी पढ़ जा रहा था." कुमार विश्वास ने फौरन अपना सारा सामान पैक किया और रात में ही घर के लिए निकल गए.

विश्वास कहते हैं, 'घर पहुंचने पर सब पूछने लगे कि अचानक क्यों आ गए? पहले सबसे पहले अपनी बड़ी बहन वंदना को बताया कि मैं कवि बनना चाहता हूं, वो चौंक गईं. उन्होंने कहा कि ये क्या कर रहा है? पिताजी को पता चला तो क्या होगा? अगली सुबह उठा तो देखा घर में हंगामा मचा है. जीवन में वो पहला मौका था, जब इस तरह से पिता का सामना कर रहा था. उन्होंने मुझे बुलाया और पूछा कि मैं क्या सुन रहा हूं और मुझे डपटते हुए कहा कि यह सब क्या बकवास है? पहले इंजीनियरिंग कर लो, फिर जो मन में आए करना. 

उस शाम पिताजी ने अपने एक जानने वाले को बुलाकर कहा कि इसका टिकट कराओ. उसके सामने मैंने साफ कह दिया कि मुझे इंजीनियरिंग नहीं करनी. इसके बाद के अगले 12-15 दिन बहुत मुश्किल भरे रहे. चाहे जो भी हुआ हो, लेकिन उन्होंने अपने मन की आवाजा सुनी और आज डॉ. कुमार विश्वास किसी परिचय के मोहताज नहीं है. 

Trending news