IIT Reservation: फीमेल के लिए कोटा के 6 साल बाद, IIT में क्या-क्या बदल गया है?
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IIT Reservation: फीमेल के लिए कोटा के 6 साल बाद, IIT में क्या-क्या बदल गया है?

Quota for women in IIT: पहले के मुकाबले अब सभी आईआईटी में बहुत बदलाव आए हैं इसके बारे में हम यहां आपको कुछ जानकारी दे रहे हैं.

IIT Reservation: फीमेल के लिए कोटा के 6 साल बाद, IIT में क्या-क्या बदल गया है?

Female Student in IIT: छात्राओं के लिए ज्यादा हॉस्टल और वॉशरूम से लेकर उनकी अपनी स्पोर्ट्स टीमों तक - पिछले छह साल में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) में एक साइलेंट रिवोल्यूशन आकार ले रहा है, जब से महिलाओं के लिए 20 फीसदी एक्स्ट्रा कोटा तय किया गया है.

कोटा, जिसके तहत मौजूदा पूल में उन्हें रिजर्व करने के बजाय एक्स्ट्रा सीटें बनाई गईं, 2018 में तत्कालीन आईआईटी-मंडी निदेशक टिमोथी गोंसाल्वेस की अगुवाई वाली एक समिति की सिफारिशों के आधार पर लागू किया गया था, जिसने इसे "जरूरी स्लाइट पुश" कहा था. जबकि ज्यादातर आईआईटी ने 2018-19 में महिलाओं के लिए 14 फीसदी कोटा लागू किया था, 2019-20 तक यह 19 फीसदी हो गया और 2021-22 तक, उनमें से ज्यादातर में महिलाओं के लिए 20 फीसदी सीटें थीं.

छह साल बाद, सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत इंडियन एक्सप्रेस द्वारा 23 में से 21 आईआईटी से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि इन प्रतिष्ठित संस्थानों में एडमिशन लेने वाली महिलाओं की संख्या में लगातार बढ़ रही है.

कहां कितना है फीमेल स्टूडेंट्स का एनरोलमेंट?

आईआईटी-कानपुर में, महिलाओं की संख्या 2017 में 908 से बढ़कर 2024 में 2,124 हो गई - 133 फीसदी की बढ़ोतरी. आईआईटी-रुड़की में, यह संख्या 2019-20 में 1,489 से बढ़कर 2024 में 2,626 हो गई - 76.36 फीसदी की बढ़ोतरी. चेन्नई, मुंबई, गुवाहाटी और खड़गपुर के आईआईटी में भी इसी तरह की बढ़ोतरी देखी गई.

आंकड़ों के मुताबिक, आईआईटी दिल्ली और बॉम्बे ने 2017 में ही 20 फीसदी की सीमा पार कर ली थी - कोटा लागू होने से पहले ही. उस साल आईआईटी दिल्ली के 2,878 स्टूडेंट्स में से 607 या 21.09 फीसदी छात्राएं थीं. आईआईटी दिल्ली में 2024 के पहले सेमेस्टर में यह संख्या 840 थी - 38.39 फीसदी की बढ़ोतरी. आईआईटी बॉम्बे के मामले में, 2017 में 2,790 छात्रों में से 570 या 20.43 फीसदी छात्राएं थीं.

इस बीच, आईआईटी कानपुर 20 फीसदी महिला एनरोलमेंट के आंकड़े को पार करने वाला सात फर्स्ट जेनरेशन के आईआईटी में से अंतिम था, जो 2021 में ही इस मील के पत्थर तक पहुंच पाया. उस साल इसके 7,716 स्टूडेंट्स में से 1,691 या 21.92 फीसदी फीमेल थीं.

आईआईटी कानपुर की तरह, अन्य फर्स्ट जेनरेशन के आईआईटी ने भी अलग-अलग स्पीड से इस बेंचमार्क को हासिल किया है. आईआईटी गुवाहाटी, खड़गपुर और मद्रास 2019 में क्रमशः 22.42 फीसदी, 21.39 फीसदी और 20.75 फीसदी महिला प्रतिनिधित्व के साथ रैंक में शामिल हुए. आईआईटी-रुड़की ने 2020 में यही किया, जहां 8,708 स्टूडेंट्स में से 1,749 या 20.08 फीसदी छात्राएं थीं.

बदलती क्लासेज

आईआईटी में महिलाओं की बढ़ती उपस्थिति हायर एजुकेशन में उनके एनरोलमेंट में लगातार बढ़ोतरी के व्यापक पैटर्न के अनुरूप है - 2021-2022 के लिए हायर एजुकेशन पर ऑल इंडिया सर्वे के मुताबिक, फाइनल ईयर जिसके लिए डेटा उपलब्ध है, महिलाएं का कुल एनरोलमेंट का लगभग 48 फीसदी हिस्सा बनाती हैं, जो लगभग पुरुषों के बराबर है.

फिर भी, आईआईटी की टेक्निकल नेचर को देखते हुए, इन प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थानों में जेंडर रेश्यो पुरुषों के पक्ष में झुका हुआ है. यही वह बात है जिसे बदलने का प्रयास इस योजना में किया गया है, जिसमें अलग-अलग संस्थान परिसरों को महिलाओं के लिए अनुकूल बनाने के लिए कई उपायों को लागू कर रहे हैं.

2020 में, IIT बॉम्बे ने JEE-एडवांस्ड पास करने वाली लड़कियों और उनके माता-पिता के लिए खास ओरिएंटेशन सेशन शुरू किए, जिसमें बताया गया कि उन्हें मुंबई कैंपस क्यों चुनना चाहिए. प्रशासन का दावा है कि इन सेशन की वजह से ज़्यादा लड़कियों ने IIT बॉम्बे को चुना है - 2017 में 570 से बढ़कर 2024 में 694 हो गई. साल 2021 में अब तक का सबसे ज़्यादा 746 लड़कियों का एनरोलमेंट हुआ.

आईआईटी दिल्ली में भी फीमेल स्टूडेंट्स और उनके अभिभावकों के लिए एक ओपन हाउस है, जहां उन्हें टीचर्स से मिलने और कैंपस घूमने के लिए मोटिवेट किया जाता है.

आईआईटी मद्रास के जांजीबार कैंपस की निदेशक प्रीति अघालयम - आईआईटी में निदेशक के रूप में सेवा करने वाली पहली महिला - का कहना है कि जब उन्होंने 1991 और 1995 के बीच आईआईटी मद्रास से केमिकल इंजीनियरिंग की, तो उनकी ग्रेजुएसन क्लासेज में महिलाओं का प्रतिशत "बेहद कम" था.

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वह कहती हैं, "उस समय, महिला हॉस्टल अन्य सभी स्टूडेंट्स से दूर था क्योंकि आईआईटी मद्रास में महिलाओं की संख्या बहुत कम थी. कैंपस अब बहुत अलग दिखता और महसूस होता है. क्लास का साइज दोगुना हो गया है, क्लासेज के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं और परिसर में एक नई एनर्जी है".

इसके साथ ही, जेंडर सेंसिटाइजेशन डेली इंस्टीट्यूशनल लाइफ का एक हिस्सा बन गया है.

आईआईटी रूड़की में अर्थ साइंस डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर और संस्थान की आंतरिक शिकायत समिति के सदस्य प्रदीप श्रीवास्तव का कहना है कि परिसर में ज्यादा महिलाओं का मतलब "पुरुष-केंद्रित दृष्टिकोण" पर रोक है. वे कहते हैं, "जब भी यौन उत्पीड़न या रैगिंग का कोई मामला होता है, हमने एक प्रगतिशील बदलाव देखा है - यह अब महिला छात्र को दोष देने से शुरू नहीं होता है."

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समस्याएं बनी हुई हैं

इन बदलावों के बावजूद, चुनौतियां बनी हुई हैं - स्टीरियोटाइप, मेंटरशिप गैप और इंक्लूसिव स्पेस की कमी आदि.

आईआईटी कानपुर की जेंडर सेल की अध्यक्ष सरानी साहा कहती हैं कि अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. "महिलाएं अभी भी उत्पीड़न की शिकायत करने के लिए आगे नहीं आती हैं. जेंडर सेंशेसन्स वर्कशॉप के बावजूद, प्रोग्रेस असमान रही है. इन सभी वर्कशॉप के बाद भी, कुछ मेल प्रोफेसर स्वीकार करते हैं कि वे नहीं जानते कि कुछ व्यवहार - जैसे कि पहनावे पर कमेंट, आदि - महिलाओं को असहज कर सकते हैं."

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