मुर्दा और जिंदा लोग साथ मनाते हैं त्योहार, कब्रों से निकाली जाती हैं लाशें, कहां होता है ऐसा?
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मुर्दा और जिंदा लोग साथ मनाते हैं त्योहार, कब्रों से निकाली जाती हैं लाशें, कहां होता है ऐसा?

Weird Tradition: आज हम आपको एक ऐसे कल्चर के बारे में बताने वाले हैं, जहां किसी की मौत के बाद उसे दफनाया जाता है और कुछ साल बाद उसकी मृत देह निकालकर उसकी साफ-सफाई की जाती है और त्योहार मनाया जाता है. 

मुर्दा और जिंदा लोग साथ मनाते हैं त्योहार, कब्रों से निकाली जाती हैं लाशें, कहां होता है ऐसा?

Indonesia Weird Festival: दुनिया भर में अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं. हर धर्म के लोगों का अपना कल्चर होता है. किसी के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी रीति-रिवाज अलग होते हैं. दुनिया के हर हिस्से में इन रीति-रिवाज को मनाने का तरीका भी अलग-अलग होता. वहीं, कुछ देश अपने अजीबो-गरीब तरीकों से उत्सव मनाने के लिए भी जाने जाते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे त्योहार के बारे में बताएंगे, जो लाशों के साथ मनाया जाता है. आपको सुनकर हैरानी हो रही होती और सोचने में भी थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा, लेकिन दुनिया में एक जगह ऐसा भी होता है. आइए जानते हैं इस त्योहार के बारे में...

हर साल अगस्त में मनाते हैं ये फेस्टिवल
डेली स्टार न्यूज वेबसाइट के मुताबिक हर साल अगस्त के महीने में इंडोनेशिया के दक्षिण सुलावेसी के ऊंचे इलाकों में ताना तोराजा क्षेत्र उन गतिविधियों से भरा रहता है, जिनमें जीवित और मृत दोनों शामिल होते हैं. अगस्त में फसल की बुआई से पहले यह त्योहार मनाया जाता है. इस समय ये लोग अपने मृत रिश्तेदारों से मिलते हैं. लोगों के लिए यह एक खुशी का मौका होता है, क्योंकि उन्हें अपने मृत प्रियजनों को एक बार फिर देखने का मौका मिलता है.

करीब 100 साल पहले हुई थी शुरुआत
सबसे पहले आपको बता दें कि ये फेस्टिवल इंडोनेशिया में मनाया जाता है. वहां की टोराजन जनजाति इस त्योहार को मनाती है, जिसे मा'नेने फेस्टिवल कहा जाता है. इस फेस्टिवल को मनाने के पीछे एक कहानी है. बताया जाता है कि 100 साल पहले गांव में एक शिकारी पोंग रुमासेक शिकार करने गया था, उसे बीच जंगल में एक शव दिखा. सड़ा-गला शव देख रुमासेक ने उसे अपने कपड़े पहनाए और शव का अंतिम संस्कार किया. 

ऐसा बताया जाता है कि इसके बाद रुमासेक की जिंदगी में अच्छे बदलाव हुए और उसकी गरीबी दूर हो गई. इस घटना के बाद से इस जनजाति के लोगों में अपने पूर्वजों के शवों को सजाने की प्रथा शुरू हो गई. उनका मानना है कि ऐसा करने से पूर्वजों की आत्माएं आशीर्वाद देती हैं.

मौत को मनाते हैं उत्सव की तरह
परिजन की मौत के बाद परिवार वाले उसे तुरंत नहीं दफनाते, बल्कि तब तक वो इसके लिए पैसे जुटाते हैं और फिर कुछ दिनों तक उत्सव मनाते हैं. ये मृतक की खुशी और उसे अगली यात्रा के लिए तैयार करने के लिए किया जाता है, जिसे पुया कहते हैं. इस दौरान बैल और भैंसे जैसे जानवरों की सींगों से घर सजाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि जिसके घर पर जितनी ज्यादा सींगें लगी होंगी, अगली यात्रा में उसे उतना ही सम्मान मिलेगा.

शव को सुरक्षित रखने का तरीका
मृतक को सजाने के बाद लोग मृतक को लकड़ी के ताबूत में बंदकर गुफाओं में रख देते हैं और 10 साल से कम उम्र के बच्चे की मौत हो तो उसे पेड़ की दरारों में रखा जाता है. शव को सुरक्षित रखने के लिए कई तरह के कपड़ों में लपेटा जाता है.  साथ में लकड़ी का एक पुतला उसकी रक्षा करने के लिए रखा जाता है, जिसे ताउ-ताउ कहते हैं. ऐसा माना जाता है कि ताबूत में रखा शरीर बीमार है और जब तक वह सोया है, उसे सुरक्षा चाहिए होगी.

मा'नेने त्योहार की तस्वीरें बहुत भयानक होती हैं, जो आपको सोशल मीडिया प्लेटफॉम्स पर भी देखने को मिल जाएंगी. हर 3 साल पर इस जनजाति के लोग अपने परिजनों के शवों को कब्र से निकालते हैं. फिर उन्हें नहला कर नए कपड़े पहनाते हैं. उनके साथ फोटो खिंचवाते हैं और उन्हें सिगरेट भी पिलाते हैं. इतना ही नहीं किसी जीवित इंसान की तरह ही उनसे बातें करते हैं. त्योहार पर उनके लिए अच्छा-अच्छा खाना बनाते हैं और उन शवों के साथ बैठकर खाते भी हैं.  जब शव कंकाल में बदलने लगते हैं, तो उन्हें दफन कर दिया जाता है. 

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