पुराना जमाना छोड़िए, छोटे बच्चों को पढ़ाने के आ चुके हैं नए-नए तरीके; एक्सपर्ट ने खुद बताया
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पुराना जमाना छोड़िए, छोटे बच्चों को पढ़ाने के आ चुके हैं नए-नए तरीके; एक्सपर्ट ने खुद बताया

Kids School: आजकल छोटे बच्चों को पढ़ाने के नए-नए तरीके आ रहे हैं. टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों को पढ़ाना और सीखना बहुत आसान हो गया है. अब बच्चे कंप्यूटर और मोबाइल से भी पढ़ाई कर सकते हैं. दुनिया भर में छोटे बच्चों को पढ़ाने के तरीके बदल रहे हैं.

 

पुराना जमाना छोड़िए, छोटे बच्चों को पढ़ाने के आ चुके हैं नए-नए तरीके; एक्सपर्ट ने खुद बताया

Early Childhood Education Programs: आजकल छोटे बच्चों को पढ़ाने के नए-नए तरीके आ रहे हैं. टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों को पढ़ाना और सीखना बहुत आसान हो गया है. अब बच्चे कंप्यूटर और मोबाइल से भी पढ़ाई कर सकते हैं. दुनिया भर में छोटे बच्चों को पढ़ाने के तरीके बदल रहे हैं. अब तकनीक की मदद से दूर-दराज के इलाकों के बच्चे भी शहर के बच्चों की तरह पढ़ सकते हैं. प्रारंभिक शिक्षा, जिसे हम प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा (Early Childhood Education) या ईसीई भी कह सकते हैं; उसमें तकनीक का इस्तेमाल करके हम बच्चों को बेहतर तरीके से पढ़ा सकते हैं. इससे बच्चों का सीखने का तरीका भी बदल रहा है.

छोटे बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाना अब बहुत आम हो रहा है. इससे बच्चों में नई-नई चीजें सीखने की उत्सुकता बढ़ती है और वे बहुत कुछ सीखते हैं. इससे बच्चे खेलते-खेलते बहुत कुछ सीख जाते हैं. खेल-खेल में सीखने से बच्चों की सोचने की शक्ति बढ़ती है और वे समस्याओं को आसानी से हल कर पाते हैं. कई देशों में बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाया जाता है. इससे बच्चों में क्रिएटिविटी, समस्या समाधान करने की क्षमता और सामाजिक कौशल विकसित होते हैं.

सभी बच्चों को मिले बराबर मौका

बच्चों को पढ़ाने के नए-नए तरीकों से सभी बच्चे, चाहे वे कितने भी होशियार हों या कम होशियार, सभी को पढ़ने का बराबर मौका मिल सकेगा. चलिए जानते हैं उन प्वाइंट्स के बारे में जो बेहद ही जरूरी है.पहले कुछ बच्चों को ही अच्छी शिक्षा मिल पाती थी, लेकिन अब सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की कोशिश हो रही है. जिन बच्चों को थोड़ी और मदद की ज़रूरत होती है, उनके लिए भी ईसीई प्रोग्राम से तरीके से पढ़ाई की जा रही है. माता-पिता और स्कूल- बच्चों के माता-पिता और स्कूल मिलकर बच्चों को पढ़ाने में मदद कर रहे हैं.

पहले से छोटे बच्चों को पढ़ाने में पेड़-पौधे लगाना, कूड़ा फेंकने के बजाए दोबारा इस्तेमाल करना और प्रकृति के बारे में बताना जैसे काम शामिल किए जा रहे हैं. इसका मतलब है कि बच्चों को छोटी उम्र से ही यह सिखाया जा रहा है कि हमें धरती को कैसे बचाना है. ऐसा करने से बच्चे धरती से प्यार करने लगते हैं और बहुत कुछ सीखते हैं.

पहले बच्चों को सिर्फ पढ़ाई ही सिखाई जाती थी, लेकिन अब उन्हें और भी बहुत कुछ सिखाया जा रहा है. ईसीई प्रोग्राम में बच्चों को और अच्छे इंसान बनना सिखाया जा रहा है. बच्चों को यह सिखाया जाता है कि दूसरे लोग कैसा महसूस कर रहे हैं. जैसे, अगर कोई बच्चा रो रहा है तो उसे समझना कि वह क्यों रो रहा है. ईसीई प्रोग्राम में बच्चों को यह सिखाया जाता है कि उन्हें गुस्सा आए तो उसे कैसे शांत किया जाए. बच्चों को यह सिखाया जाता है कि अगर कोई समस्या आ जाए तो उसे कैसे सुलझाया जाए.

बच्चों को दुनिया के बारे में सिखाना

सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा (एसईएल) में अब बच्चों को छोटी उम्र से ही दुनिया के बारे में सिखाया जा रहा है. जी लर्न लिमिटेड के सीईओ मनीष रस्तोगी का कहना है कि ईसीई और एसईएल प्रोग्राम के दौरान उन्हें अलग-अलग देशों की भाषाएं सिखाई जा रही हैं और बताया जा रहा है कि दुनिया में अलग-अलग तरह के लोग रहते हैं. इससे बच्चों को पता चलता है कि दुनिया बहुत बड़ी है और हर जगह के लोग अलग-अलग होते हैं. जो बच्चे पढ़ाते हैं, यानी शिक्षक भी नए-नए तरीके सीख रहे हैं ताकि वे बच्चों को और बेहतर तरीके से पढ़ा सकें. वे सीख रहे हैं कि बच्चों को अलग-अलग तरीकों से कैसे समझाया जाए.

यह सब क्यों जरूरी है?
बच्चों को पता चलेगा कि दुनिया में बहुत सी अलग-अलग चीजें हैं. बच्चे समझेंगे कि दुनिया में अलग-अलग तरह के लोग रहते हैं और सबकी अपनी अलग-अलग बातें होती हैं. जब बच्चे दुनिया के बारे में जानेंगे तो वे दूसरों के बारे में सोचना सीखेंगे और अच्छे इंसान बनेंगे.

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