12वीं में हुए फेल, कम उम्र में पिता को खोया, सब्जियां भी बेची पर अंत में मेहनत कर बन गए IAS
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12वीं में हुए फेल, कम उम्र में पिता को खोया, सब्जियां भी बेची पर अंत में मेहनत कर बन गए IAS

UPSC Success Story: आईएएस नारायण कोंवर ने बेहद गरीबी से जूझते हुए इस मुकाम को हासिल किया है. उन्होंने बेहद कम उम्र में अपने पिता को खो दिया था, जिस कारण उनकी मां को दिहाड़ी मजदूरी तक करनी पड़ी. यहां तक कि वह अपनी मां के साथ मिलकर सबजियां भी बेचते थे.

12वीं में हुए फेल, कम उम्र में पिता को खोया, सब्जियां भी बेची पर अंत में मेहनत कर बन गए IAS

IAS Narayan Konwar: आप सभी ने आईपीएस ऑफिसर मनोज कुमार शर्मा की कहानी तो जरूर सुनी होगी, जिनके जीवन के संघर्ष पर ही 12वीं फेल फिल्म बनाई गई है, और इसने लोगों के दिलों को भी बखूबी छूआ है. लेकिन आज हम आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार शर्मा के सफर के बारे में बात नहीं करेंगे. हम उन्हीं के जैसे एक और 12वीं फेल यूपीएससी उम्मीदवार के बारे में आपको बताएंगे, जिन्होंने कक्षा 12वीं में फेल होने के बावजूद यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा पास की और आईएएस अधिकारी बन गए.

12वीं में हुए थे फेल
दरअसल, हम बात कर रहे हैं 12वीं फेल आईएएस अधिकारी नारायण कोंवर की, जिनकी कहानी दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत की मिसाल बनकर उभरी है. गरीबी से त्रस्त, जहां दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता था, वहां नारायण कोंवर ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई बाधाओं और चुनौतियों का सामना किया.

दो वक्त का खाना भी नहीं होता था नसीब
कोंवर का जन्म असम के मोरीगांव जिले में हुआ था. उनका परिवार बहुत गरीब था और उन्हें दो वक्त की रोटी के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता था. उनके पिता ज्यादा नहीं कमाते थे, पर वह पेशे से एक शिक्षक थे. इन चुनौतियों के कारण कोंवर के लिए पढ़ाई करना बहुत कठिन था.

पिता को खोने के बाद मां ने की दिहाड़ी मजदूर
दुर्भाग्य से, उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपने पिता को खो दिया, जिस कारण उन्हें और उनकी मां को काफी संघर्ष करना पड़ा. कोंवर की मां ने दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना शुरू कर दिया और सब्जियां भी बेचीं. सब्जी बेचने में कोंवर अपनी मां की सहायता भी करते थे.

हथियारों को देखते हुए बड़े हुए
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोंवर ने बताया, ''मैं जहां का रहने वाला हूं, वह जगह यूएलएफए (ULFA) के ठिकानों में से एक थी. हम हर दिन यूएलएफए के सदस्यों को हथियारों के साथ देखते थे. मैंने भी इस ग्रुप में शामिल होने के बारे में कई बार सोचा. दरअसल, मेरा एक सहपाठी भी यूएलएफए में शामिल हो गया था."

अपने होम टाउन में यूएलएफए के सदस्यों को देखने से लेकर असम सचिवालय में सचिव स्तर के अधिकारी बनने तक, कोंवर की कहानी धैर्य, बलिदान और सभी बाधाओं के बावजूद शिक्षा की खोज में आगे बढ़ने वालों में से है.

हासिल की ऑल इंडिया 119वीं रैंक
विद्रोह का आकर्षण मंडरा रहा था, लेकिन कोंवर ने एक अलग रास्ता चुना. उन्होंने वहीं के किसी कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. इसके बाद विशिष्टता के साथ पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की और अंततः 2010 में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में ऑल इंडिया 119वीं रैंक हासिल की.

नारायण कोंवर की यह यात्रा कड़ी मेहनत और अटूट दृढ़ संकल्प का प्रमाण है. ऐसी दुनिया में जहां गरीबी सपनों के बीच आती है, वहां नारायण कोंवर की सिविल सेवक बनने की यात्रा एक उल्लेखनीय कहानी के रूप में सामने आई है. उनकी कहानी आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणा के रूप में गूंजती है, जो उन्हें सभी बाधाओं के बावजूद अपनी आकांक्षाओं के लिए काम करने का आग्रह करती है.

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