ताली न बजाने और भीख न मांगने की खाई कसम, बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा बन मधु ने रचा इतिहास
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ताली न बजाने और भीख न मांगने की खाई कसम, बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा बन मधु ने रचा इतिहास

SI Madhu Kashyap: बिहार में ट्रांसजेंडर मानवी मधु कश्यप को पहली एसआई बनीं. इसी के साथ बिहार पुलिस ने भी पहली ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की. पढ़िए मधु कश्यप की कहानी...

ताली न बजाने और भीख न मांगने की खाई कसम, बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा बन मधु ने रचा इतिहास

Success Story of First Transgender SI of Bihar Police: मधु कश्यप बिहार पुलिस की पहली ट्रांसजेंडर एसआई हैं. मानवी मधु कश्यप ने अपनी सफलता से पहले के अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाने के अपने संघर्षों के बारे में बताया, क्योंकि कई संस्थानों ने शुरू में उन्हें प्रवेश देने से इनकार कर दिया था. उन्होंने इन मुश्किलों उबरने में मदद की उनके गुरु रहमान सर ने. यहां पढ़िए बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा मानवी मधु कश्यप की कहानी...

बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा
मधु ने कभी ताली न बजाने और भीख न मांगने की कसम खाकर परीक्षा की तैयारी शुरू की थी, लेकिन उन्हें भी इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उन्हें राज्य की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा होने गौरव हासिल होगा. 

लोगों ने दिए ताने
मधु कश्यप कहती हैं कि समाज ने मुझे 'हिजड़ा, किन्नर, छक्का और कोथी' जैसे नाम दिए. मुझे दोहरी जिंदगी जीना पड़ा, जिस पर मेरा कोई  नहीं था, लेकिन सम्मानजनक जिंदगी जीने का सपना देखना और उसे अपनी आइडेंटिटी के साथ साकार होते देखना मेरे बस में था. मेरे इस सपने को सरकार और गुरु दोनों का साथ मिला, उसी का नतीजा है कि मैं आज बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दरोगा बन पाई हूं.  

मधु की फैमिली
एसआई मधु कश्यप  बांका जिले के पंजवारा गांव की रहने वाली हैं. वह अपने पिता नरेंद्र प्रसाद सिंह और माला देवी की चौथी संतान है. उनके दो भाई और बहन हैं, जिनकी शादी हो चुकी है. उन्होंने भेदभाव के कारण अपने संघर्षों को उजागर करते हुए यहां तक पहुंचने के सफर में सपोर्ट करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आभार व्यक्त किया. 

परिवार ने किया पूरा सपोर्ट
मधु कहती हैं, "मेरे परिवार का प्यार तो खूब मिला, लेकिन समाज ने खूब ताने दिए. मेरी मां मेरी वास्तविक पहचान के बारे में जानती थी, लेकिन समाज के डर से उन्होंने कभी जाहिर नहीं किया. मां डरती रहीं कि लोग क्या कहेंगे. लोअर मिडिल क्‍लास में जन्म लेने के कारण बहुत संघर्ष किया, लेकिन अब यह इसके लायक है. कई संस्थानों ने मुझे यह कहते हुए प्रवेश देने से इनकार कर दिया कि मैं माहौल पर नकारात्मक प्रभाव डालूंगी." 

यहां से हुई मधु की पढ़ाई-लिखाई 
शुरुआती पढ़ाई-लिखाई गांव के ही स्‍कूल एस एस हाई स्कूल पंजवारा से हुई. इसके बाद 12वीं की पढ़ाई सीएमडी कॉलेज, बांका से पूरी की. घर में आर्थिक तंगी के चलते लगा कि आगे की पढ़ाई नहीं कर पाउंगी, लेकिन फिर गांव के एक व्यक्ति से 1300 उधार दिए और अखबार बांटने का काम भी दिया, तब जाकर 12वीं में एडमिशन हो पाया. 

5 साल अखबार बांटने का काम किया था. इस तरह तिलका मांझी यूनिवर्सिटी भागलपुर से ग्रेजुएशन पूरा किया. इसी बीच पापा नहीं रहे. पढ़ाई और घर की जिम्‍मेदारी एक साथ संभालना मुश्किल हो रहा था. वहीं, शरीर में आ रहे बदलाव के चलते गांव में जिंदगी मुश्किल होती जा रही थी. ऐसे में ग्रेजुएशन के लास्ट ईयर में बिहार छोड़कर बहन के पास आसनसोल जाने का फैसला लिया.

वहां रहकर एडीसीए और आईटीआई किया और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी.  इसी बीच बेंगलुरु चली गई और अपने कम्युनिटी के लोगों के साथ में वास्तविक पहचान के साथ रहने लगी, लेकिन घरवालों को सच बताने की हिम्मत नहीं थी, तो उनसे कहा कि बैंक में जॉब लग गई है. 

एक दिन मेरे गुरु ने मुझसे भीख मांगकर और बधाई गाकर पैसे कमाने का आदेश दे दिया. मैं उनके सामने रोई। गुहार लगाई कि घर का सारा काम कर लूंगी, लेकिन ये काम मत कराइए, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. 

इस तरह भीख मांगकर, बधाइयां गाकर जो पैसा मिलता, उसमें से आधी गुरु को देती और बाकी अपनी सर्जरी के लिए जमा करती. कोविड के बाद लॉकडाउन खुला तो मैं आसनसोल लौट आई. इसी दौरान पटना के दानापुर में गरिमा गृह (वन स्‍टॉप सेंटर) का पता चला तो, यहां आकर रहने लगी. ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता और दोस्ताना संस्था चलाने वाली रेशमा प्रसाद चाहती हैं कि सब पढ़ें-लिखें और सामान्‍य जिंदगी जिएं. मैंने भी कसम खाई कि कुछ भी हो जाए मैं न भीख मांगूंगी और ताली नहीं बजाऊंगी. 

गुरु ने हर कदम पर की मदद
मधु ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि 2021 में कोचिंग के लिए कई कोचिंग इंस्‍टीट्यूट के चक्कर लगाए, लेकिन सबने एडमिशन देने से मना कर दिया. इसके बाद अदम्या अदिति गुरुकुल के गुरु डॉ. एम रहमान ने उन्हें पढ़ाया. इतना ही नहीं उनके गुरुने न उनसे फीस भी नहीं ली और स्टडी मटेरियल खरीदने के लिए पैसे भी दिए. कोचिंग के लिए गरिमा गृह से सुबह 5 बजे निकलती और दोपहर में दो बजे पहुंचती. जब बीपीएसएससी की परीक्षा में बैठी तो पहली बार में पास कर लिया और बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा बन गई. 

सर्जरी की बात घरवालों से छुपाई
बिहार में सरकार ट्रांसजेंडरों को डेढ़ लाख रुपये की मदद राशि देती है, उन्हें भी यह राशि मिली और कुछ अपने पास जमा रकम से वह उन्होंने 2022 में सर्जरी करवाई और पूरी तरह मानवी मधु कश्‍यप बन गईं. मधु बताती हैं कि करीब 8 महीने घर में किसी को बताया नहीं. सोच लिया था कि घर तभी आऊंगी, जब कुछ बन जाऊंगी. सर्जरी के दौरान भी मधु ने  उत्पाद शुल्क विभाग की कॉन्स्टेबल भर्ती की लिखित परीक्षा पास कर ली थी, लेकिन फिजिकल में 6 सेकंड की देरी के कारण चयन नहीं हो पाया. 

बिहार में पहली बार 3 ट्रांसजेंडर बने दारोगा
जानकारी के मुताबिक पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को फरवरी 2021 में राज्य में कॉन्स्टेबल और दारोगा की भर्ती में ट्रांसजेंडर को आरक्षण सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था. इसके बाद राज्य सरकार ने कहा कि कॉन्स्टेबल और दारोगा के प्रत्येक 500 पदों पर एक पद ट्रांसजेंडर का पद रिजर्व किया जाएगा. 

बीपीएसएससी परीक्षा में दारोगा के 1,275 पदों के लिए उम्मीदवारों का चयन हुआ. इनमें से तीन ट्रांसजेंडर में हैं, जिसनें दो ट्रांसमैन और एक ट्रांसवुमन मानवी मधु भी दारोगा है. बता दें कि सितंबर 2023 में यह भर्ती निकाली थी, जिसके लिए प्रीलिम्स का आयोजन 17 दिसंबर 2023 को हुआ था. इसके बाद 25 फरवरी 2024 को मुख्य परीक्षाहुई. 10 जून से 19 जून के बीच सफल कैंडिडेट्स का फिजिकल टेस्ट हुआ और 9 जुलाई 2024 को फाइनल नतीजे जारी किए गए थे. 

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