फोन में डूबे रहना, झपकी लेना... बिना स्टूडेंट्स वाले इस स्कूल में किसी तरह समय काटना ही टीचर्स का सबसे बड़ा काम
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फोन में डूबे रहना, झपकी लेना... बिना स्टूडेंट्स वाले इस स्कूल में किसी तरह समय काटना ही टीचर्स का सबसे बड़ा काम

Ghaziabad: सरकारी स्कूलों का नाम इसलिए खराब है कि अक्सर यहां टीचर्स नहीं होते या जितने होते हैं उनकी संख्या स्टूडेंट्स के हिसाब से कम होती है. वहीं, आज हम आपको एक ऐसे स्कूल के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां टीचर्स तो हैं, लेकिन स्टूडेंट्स ही नदारद है.

फोन में डूबे रहना, झपकी लेना... बिना स्टूडेंट्स वाले इस स्कूल में किसी तरह समय काटना ही टीचर्स का सबसे बड़ा काम

Chittora Primary School: आपने बिना शिक्षक वाले स्कूलों के बारे में सुना होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे स्कूल के बारे मेम बताने जा रहे हैं, जहां पर सालों से स्टूडेंट्स पढ़ने नहीं आए. आपको जाकर यह हैरान होगी कि यह स्कूल उत्तर प्रदेश के चहल-पहल वाले जिले गाजियाबाद में स्थित है. इस स्कूल की इमारत बरसों से छात्र-छात्राओं की राह देख रही हैं. इंदिरापुरम से 30 किलोमीटर दूर गाजियाबाद के एक गांव में एक ऐसा स्कूल है, जहां सालों से कोई नियमित छात्र नहीं है.

किसी भी अन्य सरकारी स्कूल की तरह यहां एक प्रभारी शिक्षक, एक टीचर और एक असिस्टेंट टीचर है. हर दिन तीनों सुबह 8 बजे के आसपास स्कूल पहुंचते हैं, गेट खोलते हैं, अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं और किसी तरह से दिन खत्म होने का इंतजार करते हैं. तीनों लंबे समय से ट्रांसफर की मांग कर रहे हैं. 

चित्तौरा प्राइमरी स्कूल 
सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी एक गंभीर समस्या है, लेकिन इस स्कूल की स्थिति बिल्कुल अलग है. तीन तरफ से गन्ने के खेतों से घिरा, एक संकीर्ण, कीचड़दार रास्ता एक मंजिला इमारत की ओर जाता है, जिसे एक जीर्ण-शीर्ण बोर्ड 'चित्तौरा प्राइमरी स्कूल' के रूप में पहचानता है. सालों से किसी ने भी यहां घंटी बजते या बच्चों को पढ़ते हुए या किसी शिक्षक को शोर मचाती क्लास को चुप रहने की चेतावनी देते हुए नहीं सुना है.

किताबों, फोन में डूबे रहना या कभी-कभार झपकी लेना, समय काटना यहां सबसे बड़ा काम है. हां, उनकी एकरसता में कभी-कभी विराम लग जाता है,  जब तीनों शिक्षकों को शिक्षा विभाग के ऑनलाइन ट्रेनिंग सेशन में शामिल होना पड़ता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार वसुन्धरा की प्रभारी शिक्षिका वंदना मिश्रा बताती हैं कि चित्तौरा में अपने 12 सालों के कार्यकाल में उन्होंने किसी भी छात्र को इस स्कूल में एक सप्ताह से ज्यादा समय तक पढ़ते नहीं देखा. उन्होंने कहा कि कुछ छात्र 2018-19 में शामिल हुए थे, जो स्कूल में पढ़ने नहीं, बल्कि अन्य संस्थानों में शामिल होने के लिए ट्रांसफर सर्टिफिकेट लेने के लिए आए थे. बाद में जब आधार कार्ड और यूडीआईएसई कोड मेंडेटरी कर दिए गए, तो उन्हें हटा दिया गया.

बताया जाता है कि 1956 में यह स्थापित किया गया था. शिक्षकों के अनुसार 2003 तक हर साल 20-30 बच्चे आते रहे. उनका कहना है कि ग्रामीणों को अपने बच्चों को इस स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए प्रोत्साहित करने के प्रयास किए जा रहे हैं. हम हर उस घर में जा रहे हैं, जहां छोटे बच्चे हैं. 

इतनी निराशाजनक क्यों है प्रवेश दर? 
शिक्षकों के अनुसार, चित्तौरा के ग्रामीण अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं. कई लोगों ने सरकारी स्कूल में अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जताई है, क्योंकि इमारत के चारों तरफ गन्ने के खेत हैं. 

रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल मुख्य गांव से अलग है, जो इसे काफी असुरक्षित बनाता है. अगर कोई इमरजेंसी में मदद के लिए चिल्लाए तो कुछ ही लोग उसे सुन सकते हैं. यही कारण है कि हम अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं, भले ही इसके लिए मोटी रकम चुकानी पड़े. 

वहीं, शिक्षक इस बात से ज्यादा सहमत नहीं होते कि इस स्कूल में किसी के लिए भी अकेले रहना जोखिम भरा है. हालांकि, अंधेरा होते ही स्कूल स्थानीय शराबियों का अड्डा बन जाता है. वे बताते हैं कि जब हम सुबह गेट खोलते हैं, तो हमें यहां-वहां शराब की बोतलें और सिगरेट के टुकड़े मिलते हैं. ग्रामीण दीवारें भी फांदते हैं और इमारत का इस्तेमाल अपने कटे हुए गन्ने को रखने के लिए करते हैं.

बेहद खराब इनरोलमेंट रेट के बावजूद शिक्षा विभाग द्वारा इमारत को नियमित रूप से रंगा जाता है. दीवारों पर चित्रों के जरिए सरकारी योजनाओं के बारे में बताया जाता है. स्कूल में तीन क्लास रूम हैं, जिनमें से दो में ताला लगा हुआ है. 

चित्तौरा के इस स्कूल की स्थिति गाजियाबाद के अन्य संस्थानों से बिल्कुल विपरीत है. जिले में लगभग 100 स्कूल हैं जो एक हेल्दी टीचर-स्टूडेंट रेशो बनाए रखने के लिए स्ट्रगल कर रहे हैं. कम से कम 18 प्रायमरी स्कूल एक-एक टीचर के सहारे चल रहे हैं. इन स्कूलों में स्टूडेंट्स की संख्या 100 से 250 के बीच है. .

एक प्रायमरी स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा, "एक तरफ हमारे पास एक स्कूल है जो सालों से छात्रों का इंतजार कर रहा है. दूसरी तरफ स्कूल सैकड़ों छात्रों के लिए सिर्फ एक शिक्षक के साथ काम कर रहे हैं.  हमें संसाधनों के वितरण में संतुलन बनाने की जरूरत है."

रिपोर्ट के मुताबिक बेसिक शिक्षा अधिकारी ओपी यादव ने बताया कि चित्तौरा स्कूल की रिपोर्ट बनाकर शिक्षा विभाग के मंडल प्रमुख को भेज दी गई है. उन्होंने कहा, "हमने स्कूल भवन की जांच की है और पता चला है कि ग्रामीण इसके स्थान के कारण अपने बच्चों को वहां भेजने से हिचकते हैं. यह गन्ने के खेतों के ठीक बीच में स्थित है.  हम जल्द ही कुछ कार्रवाई शुरू करेंगे."

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