Haryana Assembly Elections 2024: हरियाणा की सत्ता में 10 साल रहने के बाद सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही भाजपा मोदी फैक्टर पर निर्भर रहने के बजाय रोजगार और कल्याणकारी योजनाओं के इर्द-गिर्द चुनावी रणनीति बना रही है. इसके बावजूद हरियाणा के अहम चुनावी मैदान कुरुक्षेत्र और करनाल क्षेत्र में मतदाताओं का मानना है कि कांग्रेस कड़े मुकाबले में आगे दिख रही है.
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Kurukshetra-Karnal Region Ground Reality: हरियाणा विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान के परवान पर होने के बीच भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला देखने को मिल रहा है. बाकी सियासी दल और गठबंधन हालांकि, चुनावी रेस से बाहर तो नहीं हैं लेकिन, सुर्खियों में जरूर पीछे पड़ गए हैं. दूसरी ओर, कुरुक्षेत्र-करनाल क्षेत्र के लोगों का कहना है कि 10 साल सत्ता में रहने के बाद सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही भाजपा अभी भी तस्वीर से बाहर नहीं है.
एकतरफा लड़ाई नहीं, पर परसेप्शन की लड़ाई में कांग्रेस आगे
हरियाणा में चुनावी जंग के शुरू होते ही कांग्रेस पूरे राज्य में परसेप्शन की लड़ाई में आगे नजर आ रही है, लेकिन भाजपा नेताओं का दावा है कि सत्ता में लगातर तीसरी बार उनकी वापसी होगी. वहीं, कुरुक्षेत्र-करनाल क्षेत्र के मतदाताओं का मानना है कि दोनों बड़ी पार्टियों के लिए मुकाबला टफ है.
कुरुक्षेत्र के कारोबारियों का कहना है कि भाजपा के लिए यह आसान चुनाव नहीं होगा, भले ही लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी में शामिल हुए नवीन जिंदल ने कुछ महीने पहले ही कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट जीती हो. हालांकि, वे लोग साफ कहते कि कांग्रेस भी चुनावों में जीत हासिल नहीं करेगी. यह एकतरफा चुनाव नहीं है. बेशक, कांग्रेस को बढ़त हासिल है, क्योंकि आम धारणा है कि बदलाव का समय आ गया है और 10 साल के भाजपा शासन के बाद बदलाव की इच्छा है.
5 अक्टूबर को राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों पर मतदान
कुरुक्षेत्र के पड़ोसी करनाल जिले के तखाना गांव में मतदान के लिए बाहर से आए कई युवा कामकाजी मतदाताओं का कहना है कि स्थानीय भाजपा विधायक द्वारा किए गए काम जैसे पीने का पानी उपलब्ध कराना और स्वच्छता अभियान वगैरह का असर 5 अक्टूबर को राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों पर मतदान वाले दिन मायने रख सकते हैं. हालांकि, कांग्रेस लगातार भाजपा के एक दशक के शासन काल की कमियों को उजागर कर रही है.
चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलने का भाजपा का पुराना फॉर्मूला
विधानसभा चुनाव से पहले राज्यों में मुख्यमंत्री बदलने का भाजपा का पुराना फॉर्मूला हरियाणा में भी खासकर, भाजपा कार्यकर्ताओं को कारगर साबित होने की उम्मीद बढ़ा रहा है. मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की उनके पूर्ववर्ती और मौजूदा केंद्रीय कैबिनेट मंत्री मनोहर लाल खट्टर से तुलना करते हुए एक भाजपा कार्यकर्ता कहते हैं, "खट्टर साहब भी ठीक थे, बस वे निर्णय लेने में थोड़े धीमे थे. लेकिन सैनी साहब युवा, ऊर्जावान और निर्णायक हैं."
भाजपा ने कम की सिर्फ पीएम मोदी की छवि पर ही निर्भरता
हरियाणा में भाजपा ने भी साफ महसूस किया है कि आजीविका के मुद्दे मतदाताओं के लिए किसी भी दूसरी चीज से ज़्यादा मायने रखेंगे. इसलिए उसने अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव किया है. भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि और लोकप्रियता पर पूरी तरह निर्भर रहने के बजाय पिछले एक दशक में राज्य सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड पर ध्यान केंद्रित कर रही है. एक दशक में यह पहली बार है कि प्रधानमंत्री मोदी भाजपा के चुनाव अभियान में सबसे अग्रणी भूमिका में नहीं हैं.
भाजपा क्यों लगा रही है "बिना पर्ची, बिना खर्ची" का नारा?
भाजपा चुनाव प्रचार के दौरान पारदर्शी तरीके से नौकरियां पैदा करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. इसके लिए "बिना पर्ची, बिना खर्ची" का नारा लगाया जा रहा है. सैनी प्रशासन द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में क्रीमी लेयर के लिए वार्षिक आय सीमा को 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये करने का निर्णय, सरकारी कर्मचारियों, पिछड़े समुदायों और पंचायत प्रमुखों के लिए घोषित कई तरह की रियायतें को जमकर हाईलाइट किया जा रहा है.
जातिगत गणित पर क्यों इतना भरोसा कर रही है भाजपा?
इसके अलावा, भाजपा जातिगत गणित पर भी भरोसा कर रही है. गैर-जाट समुदायों को एकजुट करने और दलित वोटों को विभाजित करने का प्रयास कर रही है. भाजपा के स्थानीय नेताओं को उम्मीद है कि हरियाणा में सबसे अधिक चुनावी रूप से प्रभावशाली समुदायों में से एक जाटों के वोट कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी के बीच विभाजित हो जाएंगे. वहीं, दलित वोट भी किसी को एकमुश्त नहीं मिलने वाला है.
लोकसभा चुनावों में बेरोजगारी के मुद्दे से भाजपा को नुकसान
हरियाणा में कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में बेरोजगारी के मुद्दे ने भाजपा को नुकसान पहुंचाया था. नतीजे में भाजपा ने 10 में से पांच संसदीय सीटें गंवा दी थी. कांग्रेस को इसका सीधा फायदा मिला था. इसलिए विधानसभा चुनाव में भाजपा कार्यकर्ता सैनी सरकार द्वारा रोजगार सृजन के प्रयासों के बारे में बात करने के लिए सामने आ रहे हैं. प्रतापगढ़ की चुनावी रैली में कई भाजपा कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि उनके बेटे, बेटी और बहू को बिना किसी सिफारिश के नौकरी मिल गई. किसी को कोई पैसा नहीं दिया और न ही किसी से मदद मांगी. उनका मानना है कि इससे बेरोजगारी पर कांग्रेस के बयानों की धार कुंद हो जाएगी.
हरियाणा चुनाव में बेरोजगारी और महंगाई इस बार भी बड़ा मुद्दा
हरियाणा चुनाव में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है. नौकरियों की कमी, कृषि संकट और शासन की बाधाओं को लेकर कई मतदाता चिंतित हैं, लेकिन पानीपत की महिलाएं सरकार के गर्भवती महिलाओं के लिए कार्यक्रमों, मुफ्त राशन और गरीबों के लिए आवास योजनाओं के बारे में उत्साह से बोलती हैं. लेकिन बेरोजगारी के बारे में पूछे जाने पर वह चुप हो जाती हैं और महंगाई का जिक्र होने पर उनके पति और परिवार वाले भी उदास हो जाते हैं.
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पीएम आवास योजना के तहत घर पाने में दिक्कत होने से निराशा
हरियाणा के कुरुक्षेत्र-करनाल इलाके में कई लोग भाजपा से निराश भी हैं. इनकी निराशा के कारणों में पीएम आवास योजना के तहत घर पाने के लिए होने वाली मुश्किलों की बड़ी भूमिका है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कुरुक्षेत्र के थानेसर में कई लोगों को साल 2019 में रिश्वत देने के बावजूद पक्का घर नहीं मिला. एक पीड़ित ने कहा कि वह अपने कर्ज का ब्याज चुका रहे हैं, लेकिन उन्हें जो घर देने का वादा किया गया था, उसकी कोई खबर नहीं है.
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हरियाणा में भी युवाओं के बीच विदेश जाने की होड़, कांग्रेस ने बनाया मुद्दा
भाजपा सरकार के चुनाव के आखिरी समय के प्रयासों के बावजूद बड़े पैमाने पर हरियाणा के युवा अभी भी विदेश जाना चाहते हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नौजवानों को लुभाने के लिए इसे भी चुनावी मुद्दा बनाया है. हरियाणा के हर शहर में सड़कों के किनारे कोचिंग सेंटरों का जाल बिछ गया है. पूरे राज्य में तेजी से फैल गए ये सेंटर युवाओं और छात्रों को विदेश जाने के लिए अंग्रेजी दक्षता की परीक्षाओं के लिए प्रशिक्षण देने और वीजा इंटरव्यू की तैयारी कराने के लिए आकर्षितते हैं. क्योंकि युवा अपने बेहतर जीवन की तलाश में पश्चिम के देशों में जाने का सपना देखते हैं.