Badaun Murder Case: बदायूं से समाजवादी पार्टी को मिलती है ऑक्सीजन! डबल मर्डर को मजहबी रंग देने में किसका होगा फायदा?
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Badaun Murder Case: बदायूं से समाजवादी पार्टी को मिलती है ऑक्सीजन! डबल मर्डर को मजहबी रंग देने में किसका होगा फायदा?

Badaun Seat Social Equation: बदायूं में दो मासूम बच्चों की बर्बर हत्या के बाद से तनाव पसरा हुआ है. इस मामले में समाजावादी पार्टी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है और योगी सरकार पर निशाना साधा है.

Badaun Murder Case: बदायूं से समाजवादी पार्टी को मिलती है ऑक्सीजन! डबल मर्डर को मजहबी रंग देने में किसका होगा फायदा?

SP Strategy on Badaun Seat: अपने कलेजे के दोनों टुकड़ों को खो चुकी बदायूं की संगीता का जो सवाल है उसका जवाब पूरा देश जानना चाहता है लेकिन 24 घंटे बीत जाने के बाद भी हत्या की वजह पता नहीं चल पाई है. मासूम आयुष और आहान की हत्या का आरोपी साजिद तो कल ही पुलिस एनकाउंटर में मारा जा चुका है लेकिन दूसरे आरोपी जावेद का अब तक कोई सुराग नहीं लगा. डबल मर्डर की इस वारदात के बाद बदायूं पुलिस एक्शन में है. आरोपियों के पिता और चाचा को भी हिरासत में लिया गया है. वारदात को अंजाम क्यों दिया गया, ये सब जानने के लिए हर पहलू की जांच की जा रही है.

बदायूं घटना पर शुरू हुई राजनीति

बदायूं डबल मर्डर केस को लेकर सियासत भी तेज हो गई है. समाजवादी पार्टी इसमें अपना राजनीतिक नफा देखते हुए इसे मजहबी रंग दे रही है. समाजवादी पार्टी ने सोशल मीडिया साइट X पर लिखा, भाजपा यूपी में  दंगा फसाद सांप्रदायिक तनाव खड़ा करके चुनाव जीतना चाहती है और इसी कारण से ऐसी घटनाओं को खुद अंजाम दिलवा रही और जिलों में सांप्रदायिक तनाव पैदा करवा रही, जिसका परिणाम बदायूं की घटना है. भाजपा जब जनता के असल मुद्दों से हार चुकी है तो धार्मिक विवाद ,धार्मिक लड़ाई ही भाजपा का आखिरी हथियार बची है.

दो बच्चों की हत्या के बाद कानून व्यवस्था को लेकर सवाल रहे सवालों के बीच ही यूपी सरकार पूरे मामले में कड़ी कार्रवाई का दावा कर रही है. बदायूं की वारदात कई सवाल खड़े कर रही है. दो बच्चों की हत्या की असल वजह क्या थी इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है. मगर इस मुद्दे पर सियासत अपनी रफ्तार से चल रही है. 

समाजवादी पार्टी क्यों हो रही परेशान

समाजवादी पार्टी बदायूं की घटना के बाद अचानक लोगों में गुस्से के उबाल से यूं ही परेशान नहीं हो गई है. असल में समाजवादी पार्टी का कोर वोटबैंक M-Y यानी मुस्लिम और यादव माना जाता है और बदायूं में भी समाजवादी पार्टी को मुस्लिम और यादव वोट दिख रहे हैं. शायद तभी वो पीड़ित से ज्यादा दोषी के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है. अखिलेश की रणनीति समझने के लिए आपको एक और आंकड़ा समझना चाहिए. 

बदायूं में 4 लाख यादव हैं, मुस्लिम आबादी वहां 8 लाख के करीब है... 6 लाख दलित हैं यानी दलित आबादी के दोगुनी से भी ज्यादा आबादी यादव और मुस्लिमों को जोड़कर हो जाती है. अगर आप साल 2019 में पड़े कुल वोट देखें तो 10 लाख 72 हजार वोट पड़े थे. अगर मुस्लिम और यादव वोट बैंक ने एकमुश्त समाजवादी पार्टी को वोट कर दिया तो परिणाम बदल सकता है क्योंकि पिछली बार बदायूं लोकसभा सीट से बीजेपी जीती थी...लेकिन जीत का अंतर सिर्फ 18 हजार वोट का रहा था. तो पिछली हार को जीत में बदलने के लिए ही समाजवादी पार्टी ने बदायूं को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश तो नहीं की.

नाक का सवाल बनी बदायूं सीट
  
बदायूं की सीट अखिलेश यादव के लिए नाक का सवाल है . बदायूं को समाजवादी पार्टी का सुरक्षित क्षेत्र माना जाता रहा है. साल 2009 में वहां से अखिलेश के भाई धर्मेंद्र यादव चुनाव जीते थे. 2014 में भी उन्होंने सीट बचा ली थी. लेकिन 2019 में बीजेपी उम्मीदवार संघमित्रा मौर्य ने उन्हें हरा दिया था और बदायूं सीट बीजेपी के कब्जे में आ गई थी. लेकिन इस बार अखिलेश ने बदायूं से अपने चाचा को चुनाव में उतारा है. अखिलेश के चाचा यानी शिवपाल यादव. अखिलेश को लगता है कि इस बार चाचा शिवपाल...उनकी नाक कटवाएंगे नहीं.

बदायूं से अखिलेश ने चाचा को इसलिए उतारा है क्योंकि शिवपाल का अपना भी एक समर्थक वर्ग है. दूसरी बात ये है कि इस बार समाजवादी पार्टी को उस सीट पर थोड़ी सी उम्मीद दिख रही है. क्यों, ये समझिए. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उसकी सीटें घट गई थी...2019 में लोकसभा सीट चली गई. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में दोबारा बदायूं में समाजवादी पार्टी की सीटें बढ़ीं...इसलिए 2024 में उसे यहां उम्मीद दिख रही है.

सपा को बदायूं से क्यों मिलती है ऑक्सीजन?

बदायूं के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी को हिंदू मुस्लिम करने के लिए विधानसभा सीटों के रिजल्ट से ऑक्सीजन मिला है. आपको बदायूं जिले के विधानसभा चुनाव के 3 साल के आंकड़े भी समझने चाहिए. बदायूं समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है क्यों क्योंकि यहां मुस्लिम और यादव ज्यादा हैं . इसी वजह से 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 5 में से 4 सीटों पर जीत दर्ज की . BSP के खाते में 1 सीट गई . 

2017 में जब बीजेपी सत्ता में आई तो समाजवादी पार्टी की सीट घट गई उसे 5 में से सिर्फ 1 सीट मिली जबकि बीजेपी को 4 सीट मिली. 2022 विधानसभा चुनाव में जब यूपी में बीजेपी की सीटें बंपर बढ़ी..तो बदायूं में समाजवादी पार्टी बढ़ी. समाजवादी पार्टी को 5 में से 3 सीट मिली और बीजेपी 4 से घटकर 2 पर आ गई. बदायूं जिस इलाके में आता है, वो है रुहेलखंड....अब आप रुहेलखंड को समझिए.

रुहेलखंड में आती हैं 9 सीटें

रुहेलखंड में 9 लोकसभा सीटें आती हैं. आंवला, बदायूं, बरेली, लखीमपुर खीरी...मुरादाबाद...पीलीभीत...रामपुर...संभल और शाहजहांपुर...ये 9 लोकसभा सीटें हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में इन 9 सीटों में से 8 सीटें बीजेपी ने जीती थी...समाजवादी पार्टी को सिर्फ 1 सीट मिली थी....2019 में समाजवादी पार्टी ने अपना प्रदर्शन सुधारा और एक सीट से 3 सीट पर आ गई बीजेपी को 2 सीटों का नुकसान हुआ. समाजवादी पार्टी पिछले 2 लोकसभा चुनाव में यूपी में सिंगल डिजिट पार्टी बन गई है . 

2014 में बीजेपी गठबंधन को यूपी में 73 सीटें मिली थीं...उस साल समाजवादी पार्टी को 5 सीट मिली थी.. 2014 में बीएसपी का खाता नहीं खुला था...तो कांग्रेस को 2 सीट मिली थी...रायबरेली और अमेठी

2019 में बीजेपी गठबंधन को 64 सीटें मिली थीं...उस साल SP और BSP ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था....इसके बावजूद SP को सिर्फ 5 सीट मिली थी....BSP 10 सीट जीतने में कामयाब रही थी और कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट मिली थी..रायबरेली की परंपरागत सीट. लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन पिछले दस साल से नहीं, बल्कि 20 साल से गिरता जा रहा है.

सिमटती जा रही है समाजवादी पार्टी

साल 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 35 सीटें मिली थीं. लेकिन 2009 के चुनाव में 23 सीटें ही मिली . यानी 12 सीटें कम हो गईं . उसके बाद 2014 का चुनाव आया...नरेंद्र मोदी के चेहरे पर बीजेपी अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ रही थी . इस चुनाव में यूपी के अंदर समाजवादी पार्टी 23 से गिरकर सीधे 5 पर आ गई. यानी 18 सीटें और घट गई . उसके बाद 2019 का चुनाव आया लेकिन समाजवादी पार्टी 5 की 5 पर ही अटकी रह गई . अब 2024 में क्या होता है, ये देखने वाली बात होगी . 

बदायूं को लेकर कुछ पार्टियां बार-बार हिंदू-मुसलमान का टॉपिक उठा रही हैं.. कुछ नेताओं ने तो जांच खत्म होने से पहले ही एक खास पक्ष को लेकर बयानबाजी शुरु कर दी है..ये पार्टियां ऐसा क्यों कर रही हैं इसे समझने के लिए यूपी की 7 सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटरों वाली सीटों पर 2019 लोकसभा चुनाव का नतीजा जानिए.

रामपुर में बीजेपी खिला चुकी है कमल

रामपुर में 42 फीसदी मुस्लिम आबादी है, यहां समाजवादी पार्टी को जीत मिली..इस सीट पर यूपी में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. यहां हर 10 वोटरों में 4 से अधिक मुसलमान हैं. इसके बाद अमरोहा में 32 प्रतिशत मुसलमान वोटर्स हैं..वहां BSP जीती. सहारनपुर में 30 फीसदी मुस्लिम हैं यहां भी BSP सबसे आगे रही. बिजनौर में 28 परसेंट मुसलमान वोटर..यहां भी BSP के कैंडिडेट जीते. नगीना में 28 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता.. यहां भी BSP नंबर वन रही. मुरादाबाद में 28 फीसदी मुस्लिम वोटर और यहां समाजवादी पार्टी के कैंडिडेट सबसे आगे रहे. श्रावस्ती में 28 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं और इस सीट पर BSP को जीत मिली. यानी यूपी की जिन सीटों पर हर 10 में से लगभग तीन वोटर मुसलमान हैं वहां से गैर बीजेपी पार्टी के उम्मीदवार को जीत मिली है.

समझें सांप्रदायिक तनाव की क्रोनोलॉजी

बदायूं में जो घटनाक्रम चल रहा है उसको डिकोड करें तो इसमें एक फॉर्मूला मौजूद है. इस फॉर्मूले की मदद से आप किसी भी सांप्रदायिक तनाव की क्रोनोलॉजी समझ सकते हैं. सबसे पहले किसी भी घटना में हिंदू-मुस्लिम का विवाद शुरु किया जाता है. फिर राजनीतिक दलों के नेता भड़काने वाले बयान देने लगते हैं..बदायूं मामले में अभी यही हो रहा है. धर्म के आधार पर कई बार पीड़ित पक्ष के बदले दोषियों को समर्थन दिया जाता है. बयान, नारेबाजी और खास नैरेटिव के जरिए जनता के ध्रुवीकरण की कोशिश होती है और कुल मिलाकर चुनाव में नफरत का माहौल बना दिया जाता है.

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