BJP Andhra News: सबसे पहली जीत वहीं से मिली थी, फिर आंध्र-तेलंगाना में क्यों लड़खड़ाती रही भाजपा?
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BJP Andhra News: सबसे पहली जीत वहीं से मिली थी, फिर आंध्र-तेलंगाना में क्यों लड़खड़ाती रही भाजपा?

Lok Sabha Chunav: भाजपा इस बार दक्षिणी राज्यों में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए पूरी ताकत लगा रही है. पहली बार मेहसाणा के साथ भाजपा ने आंध्र प्रदेश की हनामकोंडा सीट जीतकर संसद में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी. बाद में हनामकोंडा वारंगल सीट में मर्ज हो गई. हालांकि बाद के वर्षों में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भाजपा का प्रदर्शन नॉर्थ जैसा नहीं दिखा. 

BJP Andhra News: सबसे पहली जीत वहीं से मिली थी, फिर आंध्र-तेलंगाना में क्यों लड़खड़ाती रही भाजपा?

BJP South Mission: क्या आपको याद है 1980 में भाजपा की स्थापना के बाद 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में भगवा दल को कितनी सीटें मिली थीं? हां, दो लेकिन ये याद है कि वो दो सीटें कहां की थीं? एक सीट थी गुजरात की मेहसाणा और दूसरी आंध्र प्रदेश की हनामकोंडा लोकसभा क्षेत्र. बाद में गुजरात में भाजपा का तो दबदबा हो गया लेकिन साउथ में अब तक कोई खास सफलता नहीं मिली है. हाल यह है कि पहली बार दो में से एक सीट देने वाले अविभाजित आंध्र प्रदेश से भाजपा 42 में से 7 से ज्यादा सीटें कभी नहीं जीत पाई. 

एक बार भाजपा ने चौंकाया

हां, 1989, 1996, 2004 और 2009 में पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक जीरो रहा. 1999 में एक बार जरूर भाजपा ने सात सीटें जीत कर चौंकाया था. भाजपा के गठन के बाद आंध्र प्रदेश-तेलंगाना में कुल 10 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. 1984 के लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि तेलंगाना बनने से पहले तक भाजपा की चुनावी ताकत दोनों राज्यों वाले क्षेत्रों में लगभग बराबर थी. 

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आज के समय में आंध्र प्रदेश में 25 लोकसभा सीटें हैं और तेलंगाना  में 17 सीटें हैं. हालांकि आंध्र के विभाजन के बाद भाजपा की चुनावी ताकत तेलंगाना तक ही सीमित होकर रह गई. भाजपा ने 2019 में तेलंगाना में चार सीटें जीतीं, लेकिन आंध्र प्रदेश में उसे एक भी सीट नहीं मिली. 

गठबंधन फैक्टर अहम

दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने 2019 में तेलंगाना या आंध्र में बिना किसी गठबंधन के अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ा था. निजाम और भाग्यलक्ष्मी मंदिर जैसे मुद्दों ने 2019 में तेलंगाना में भाजपा की मदद की. शायद यही वजह है कि इस बार भाजपा आंध्र में चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी और जनसेना के साथ गठबंधन में है और तेलंगाना में वह अकेले चुनाव लड़ रही है. 

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TOI की रिपोर्ट के मुताबिक विश्लेषण से साफ है कि 2019 में तेलंगाना में मोदी लहर ने भाजपा को कुछ हद तक मदद की थी और उसे चार सीटें मिल गईं. इससे पहले पार्टी को 2014 के चुनावों में (विभाजन के तुरंत बाद हुए) में आंध्र और तेलंगाना दोनों क्षेत्रों में मोदी लहर से फायदा हुआ था. भगवा दल ने तीन सीटें जीती थीं. इसमें आंध्र में दो और तेलंगाना में एक लोकसभा सीट थी. 

वोट शेयर देखें तो तेलंगाना में 2014 के चुनाव में भाजपा ने एक सीट जीती थी और उसका वोट शेयर 10.4 प्रतिशत था. 2019 के चुनाव में तेलंगाना में भाजपा को 4 सीटें मिलीं और उसका वोट शेयर बढ़कर 19.5 प्रतिशत पहुंच गया.  

उस करिश्मे की वजह?

भाजपा ने 1999 के लोकसभा चुनावों में तेलुगु बेल्ट में सात सीटें जीती थीं- तीन आंध्र से और चार तेलंगाना क्षेत्रों से. अटल बिहारी वाजपेयी के करिश्मे के साथ-साथ तेलुगु देशम के साथ गठबंधन भी एक बड़ी वजह थी. पार्टी को 'करगिल वेव' से भी फायदा हुआ था. 1998 के चुनावों के एक साल के भीतर चुनाव होने के कारण राजनीतिक अनिश्चितता ने भी पार्टी की मदद की थी. 

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ऐतिहासिक रूप से देखें तो भाजपा ने 1984 में तेलंगाना में हनामकोंडा के साथ इस क्षेत्र में अपना खाता खोला था. वह भाजपा का पहला आम चुनाव था. हालांकि 1989 में जीरो रहा. बंडारू दत्तात्रेय ने 1991 में पार्टी को एक सीट सिकंदराबाद जिताई. 1996 में फिर प्रदर्शन जीरो रहा. 1998 में चार सीटों के साथ वापसी हुई. 2009 में फिर जीरो मिला लेकिन 2019 में तेलंगाना में चार सीटें मिलीं. इस बार बीजेपी के मिशन साउथ की काफी चर्चा है. 

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