Arvind Kejriwal Arrest News: अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद राजनीतिक जानकार तमिलनाडु में साल 2001 में द्रमुक प्रमुख एम करुणानिधि को आधी रात को नाटकीय तरीके से गिरफ्तार किए जाने को याद कर रहे हैं. क्या केजरीवाल को करुणानिधि की तरह सहानुभूति मिल पाएगी? आइए, जानने की कोशिश करते हैं.
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Arvind Kejriwal Vs K Karunanidhi: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने दिल्ली शराब नीति घोटाला मामले में 10 समन के बाद गुरुवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से उनके सिविल लाइंस स्थित आवास में पूछताछ की. इसके बाद देर रात उन्हें गिरफ्तार कर साथ ले गए. लोकसभा चुनाव 2024 से एक महीने पहले ईडी की इस कार्रवाई के बाद राजनीति के कई जानकारों ने कहा कि यह कदम भाजपा के लिए उल्टा पड़ सकता है.
हेमंत सोरेन के बाद अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से किसको डर
दूसरी ओर, कई पॉलिटिकल पंडितों का मानना है कि झारखंड में सीएम हेमंत सोरेन के बाद दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से भाजपा को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. हां विपक्षी दलों के इंडी गठबंधन को जरूर इससे झटका लगा है. झारखंड मुक्ति मोर्चा और आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी से खासकर कांग्रेस को दिक्कत हो सकती है. क्योंकि अब केजरीवाल को समर्थन देने से कांग्रेस के भीतर की खामियां और अंदरूनी कलह उजागर हो सकता है.
केजरीवाल मामले में यू-टर्न से फंसी कांग्रेस, की थी गिरफ्तारी की मांग
दिल्ली में शराब घोटाले के बाद इस मुद्दे को उठाने में कांग्रेस ही सबसे आगे थी. कांग्रेस इस मामले में अरविंद केजरीवाल से इस्तीफे की मांग कर रही थी. मामले की सख्त जांच और केजरीवाल की गिरफ्तारी की मांग करने वाली कांग्रेस अब इंडी गठबंधन में आप के साथ है. दोनों मिलकर दिल्ली समेत कई राज्यों में चुनाव लड़ रहे हैं. इसलिए कांग्रेस के यू टर्न से दिल्ली में इंडी गठबंधन को नुकसान होने की आशंका है.
क्या केजरीवाल को करुणानिधि की तरह सहानुभूति मिल पाएगी?
हालांकि, आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल अगर साल 2001 में हुई एम करुणानिधि की गिरफ्तारी के वाकए से कुछ सीख लें तो अपना राजनीतिक हित साध सकते हैं. कई राजनीतिक जानकारों ने अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद तमिलनाडु में साल 2001 में आधी रात को द्रमुक प्रमुख एम करुणानिधि को नाटकीय तरीके से गिरफ्तार किए जाने की घटना को याद किया है. अब सवाल है कि क्या केजरीवाल को करुणानिधि की तरह सहानुभूति मिल पाएगी?
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तमिलनाडु में जे जयललिता और एम करुणानिधि में थी सीधी लड़ाई
तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक ने 7 दिसंबर 1996 को पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता को गिरफ्तार कर लिया. ग्रामीणों के लिए टीवी सेट की खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप में जयललिता को एक महीने के लिए जेल भेज दिया गया. साल 2001 में जयललिता दोबारा सत्ता में लौटीं. उन्होंने उसी साल 30 जून को लगभग बदले की कार्रवाई के रूप में तमिलनाडु पुलिस भेजकर एम करुणानिधि को नाटकीय तरीके से गिरफ्तार करवा लिया. पुलिस उनके घर से आधी रात को उन्हें लगभग घसीटते हुए बाहर ले गई थी.
सहानुभूति लहर के चलते सत्ता में वापस लौटे थे एम करुणानिधि
करुणानिधि की गिरफ्तारी को लेकर जल्द ही व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. तमिलनाडु में लोगों की सहानुभूति जमकर उमड़ी और अगले चुनाव में द्रमुक सत्ता में वापस आ गई. इसलिए, केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आप शासित राज्यों दिल्ली और पंजाब के अलावा उनके गृह राज्य हरियाणा में अगर सहानुभूति की लहर पैदा की जा सके तो सियासी असर को नकारा नहीं जा सकता. हालांकि, ऐसा होने के आसार बेहद कम दिख रहे हैं. क्योकि केजरीवाल सियासत में फिलहाल करुणानिधि की तरह अनुभवी नहीं हैं.
केजरीवाल के लिए क्यों नहीं करुणानिधि की तरह सहानुभूति की लहर
केजरीवाल के लिए एम करुणानिधि की तरह आम लोगों की सहानुभूति की लहर पैदा नहीं होने की और भी कई वजहें हैं. इनमें दिल्ली और तमिलनाडु का राजनीतिक माहौल का फर्क सबसे पहली वजह है. दूसरी वजह दोनों नेताओं की उम्र का अंतर है. तीसरा कारण यह है कि केजरीवाल के साथ करुणानिधि की तरह पुलिस ज्यादती होती नहीं दिखी. चौथी वजह यह कि केजरीवाल ने अब तक ईडी के नौ समनों की अवहेलना की है. इसके अलावा केजरीवाल के कई साथी मंत्री, विधायक और राज्यसभा सांसद भ्रष्टाचार के आरोप में पहले से जेल में जा चुके हैं. इनमें से किसी को भी कोर्ट से भी रियायत नहीं मिल पाई है.
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केजरीवाल के लिए विपक्ष के एकजुट होने की बात में फिलहाल बेदम
इसलिए खंडित विपक्ष के एकजुट होने की बात में फिलहाल दम नहीं दिखता. क्योंकि इंडी गठबंधन के सहयोगी दलों के ज्यादातर नेता लोकसभा चुनाव की तैयारियों में व्यस्त हैं. सोशल मीडिया के अलावा और कहीं गठबंधन का कोई नेता केजरीवाल के समर्थन में आगे आता नहीं दिखा. हालांकि, जयललिता और करुणानिधि जैसा कद न होने के बावजूद केजरीवाल एक राष्ट्रीय पार्टी के संयोजक हैं. फिर भी मौजूदा दौर 1990 के दशक की तरह नहीं है, जब बड़े पैमाने पर भावनाएं ही राजनीति को गाइड करती थीं.