Lok Sabha Chunav: पता है इलाहाबाद छोड़ चुनाव लड़ने रायबरेली क्यों गया था इंदिरा गांधी का परिवार?
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Lok Sabha Chunav: पता है इलाहाबाद छोड़ चुनाव लड़ने रायबरेली क्यों गया था इंदिरा गांधी का परिवार?

Raebareli News: कांग्रेस लोकसभा चुनाव में इस बार रायबरेली सीट से प्रियंका गांधी को टिकट दे सकती है. पिछली बार अमेठी से राहुल गांधी हार गए थे लेकिन रायबरेली से सोनिया गांधी जीती थीं. इस बार उन्होंने सीट छोड़ दी है. ऐसे में सवाल उठता है कि गांधी परिवार इलाहाबाद छोड़कर रायबरेली क्यों चला गया. किस्सा 80 साल पुराना है. 

Lok Sabha Chunav: पता है इलाहाबाद छोड़ चुनाव लड़ने रायबरेली क्यों गया था इंदिरा गांधी का परिवार?

Raebareli Lok Sabha Chunav: इलाहाबाद सीधे तौर पर जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से जुड़ा है. फूलपुर लोकसभा सीट से पंडित नेहरू लोकसभा चुनाव लड़ते थे. आजादी के बाद कई दशकों तक यह कांग्रेस का गढ़ रहा पर क्या आपने कभी सोचा है कि गांधी परिवार इलाहाबाद छोड़कर अमेठी और रायबरेली क्यों शिफ्ट हो गया? हम इसकी बात ऐसे समय में कर रहे हैं जब आप सुन रहे होंगे कि कांग्रेस प्रियंका गांधी को रायबरेली (Priyanka Gandhi Raebareli) से लोकसभा चुनाव लड़ा सकती है. इसके लिए 80 साल पहले चलना होगा. चलिए टाइम मशीन की सुई को घुमाते हैं. 

आजादी से भी पहले की बात है. 1946 में सेंट्रल और प्रोविंशियल चुनाव हो रहे थे. रायबरेली की शिवगढ़ मुस्लिम रिजर्व सीट थी. यहां के राजा साहब ने मुस्लिमों के साथ बैठक की. सभी कांग्रेसियों ने कहा कि मुस्लिम लीग के कैंडिडेट की जमानत जब्त हो जाएगी. रफी अहमद किदवई यहां से लड़ने की सोच रहे थे. उनके करीबी फिरोज गांधी ने सलाह दी कि वह चुनाव न लड़ें क्योंकि हार का जोखिम है. हालांकि किदवई ने उनकी सलाह नहीं मानी. आखिर में वह हार गए. 

इलाहाबादी थे फिरोज गांधी

फिरोज इलाहाबादी थे. काफी वक्त उनका इलाहाबाद की गलियों में बीता था, लेकिन अपने होम ग्राउंड पर चुनाव लड़ना उनके लिए संभव नहीं था. वजह यह थी कि इलाहाबाद में एक से बढ़कर एक धुरंधर नेता मैदान में दावेदार थे. नेहरू और मसुरिया दीन कांग्रेस से से लड़ रहे थे. लालबहादुर शास्त्री भी थे. ऐसे में सवाल खड़ा हुआ कि फिरोज को उम्मीदवार कहां से बनाया जाए. इलाहाबाद के कई स्वतंत्रता सेनानियों की तरह फिरोज गांधी को भी सवा सौ किमी दूर दूसरी सीट के बारे में सोचना पड़ा. 

फिरोज गांधी को रायबरेली लाने वाला शख्स

फिरोज के दिमाग में रायबरेली का विकल्प देने वाले रफी अहमद किदवई थे. ओंकार नाथ भार्गव अपनी किताब 'फिरोज' में लिखते हैं कि रफी अहमद किदवई देश के बड़े नेता थे. एक योग्य व्यक्ति थे. उनके समूह वाले लोगों को 'रफीयन' कहा जाता था. फिरोज भी उनकी टीम में शामिल थे. रफी उन्हें रायबरेली लेकर गए. चूंकि रफी ने आजादी के आंदोलन के दौरान रायबरेली में शानदार काम किया था. उनका वहां काफी सम्मान था. उनकी बातें लोग ध्यान से सुनते थे. 

फिरोज का प्रचार करने आई थीं इंदिरा

बताते हैं जब रफी अहमद किदवई ने रायबरेली में फिरोज गांधी का परिचय कराया तो उन्होंने कहा था कि इनके परिवार का नेहरू से कनेक्शन है. यह एक बड़ा कार्यक्रम था. उस समय वहां कोई दूसरा बड़ा नेता नहीं था. रायबरेली की जनता खुश था कि फिरोज गांधी जैसा नेता जीतकर संसद जाएगा तो क्षेत्र के लिए अच्छा होगा. 1952 के लोकसभा चुनाव में फिरोज ने जबर्दस्त प्रचार किया. बताते हैं कि चुनाव के काम में मदद करने इंदिरा गांधी भी रायबरेली आई थीं और रुकी थीं. फिरोज की सीट पर जवाहरलाल नेहरू ने भी तीन-चार रैलियां की थीं. 

जब नेहरू ने पूछ लिया, कितनी रैलियां कर रहे

भार्गव ने एक दिलचस्प किस्सा लिखा है. एक बार नेहरू ने फिरोज से पूछ लिया कि रोज कितनी रैलियां कर रहे हो, इंदिरा की तबीयत ही खराब हो गई. फिरोज खामोश रहे. हालांकि इंदिरा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, 'अच्छी तो हूं पापू (पापा).'

200 प्रमुख लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की पूरी लिस्ट

एक वाकया यह भी है कि तब फिरोज और इंदिरा अलग-अलग इलाकों में रैलियां करते थे और वे एक दूसरे के प्रोग्राम के बारे में लेटर से जानकारी साझा करते थे. फिरोज बहुत अच्छी हिंदी बोलते थे.

इंदिरा को उसी समय क्षेत्र में काफी सम्मान मिला था. नेहरू की बेटी होने के कारण इंदिरा पहले से पॉपुलर थीं. जीतने के बाद फिरोज की लोकप्रियता शिखर पर पहुंच गई. तब यह इलाका काफी पिछड़ा था. कोई इंडस्ट्री नहीं थी. उन्होंने सर्वे कराया कि यहां कौन सी इंडस्ट्री लगाई जा सकती है. बाद में विकास के काम हुए. फिरोज गांधी के बाद इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी कई बार यहां से चुनाव जीतीं. अब कांग्रेस वहां से प्रियंका गांधी को उतार सकती है.

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