50 Years Of Zanjeer: अमिताभ बच्चन को स्टार बनाने वाली फिल्म जंजीर को आज रिलीज के 50 बरस पूरे हो गए हैं. इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा को एंग्री यंग मैन दिया, जिसे फिल्मों की तस्वीर बदल दी. मजेदार बात यह है कि अमिताभ से पहले यह उस दौर के बड़े सितारों को ऑफर की गई थी. परंतु सबके मना कर दिया. जानिए किस-किस की किस्मत में नहीं थी यह फिल्म...
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Amitabh Bachchan Zanjeer: अमिताभ बच्चन को स्टार बनाने वाली फिल्म जंजीर की सफलता हिंदी सिनेमा के इतिहास में दर्ज है. आज 11 मई को इस फिल्म की रिलीज को 50 साल पूरे हो गए हैं. इस फिल्म ने हिंदी को अमिताभ बच्चन के रूप में न केवल एंग्री यंग मैन हीरो दिया, जिसे बाद में तमाम निर्देशकों-एक्टरों ने कॉपी किया. लेकिन यह फिल्म कोई बड़ी आसानी से नहीं बन गई थी और न ही उस दौर के बड़े सितारों ने फिल्म की कहानी सुनने के बाद इसमें खास दिलचस्पी दिखाई थी. आज जबकि फिल्म इतिहास में दर्ज है तो हमें पता चलता है कि सलीम-जावेद की लिखी इस फिल्म में अगर अमिताभ बच्चन नहीं होते तो धर्मेंद्र, देव आनंद, राजकुमार या फिर दिलीप कुमार जैसा सुपरस्टार तक हो सकता था. लेकिन सिनेमा किस्मत की बात भी है. इस फिल्म से अमिताभ की किस्मत बदलना ही लिखा था.
धर्मेंद्र और देव आनंद
यह फिल्म वास्तव में धर्मेंद्र ने सलीम-जावेद ने खरीदी थी. परंतु उसी दौरान उन्हें निर्देशक प्रकाश मेहरा की फिल्म समाधि इससे ज्यादा पसंद आई और उन्होंने इस डायरेक्टर से स्क्रिप्ट की अदला बदली कर ली. प्रकाश मेहरा को जंजीर पसंद आई थी और वह इसे धर्मेंद्र और मुमताज के साथ इसे बनाना चाहते थे. मगर धर्मेंद्र ने इंकार कर दिया क्योंकि वह समाधि कर रहे थे. यह फिल्म फिर देव आनंद को ऑफर की गई. वह हालांकि रोमांटिक स्टार थे परंतु प्रकाश मेहरा ने उन्हें फिल्म काला पानी में देखा था. उन्हें लगता था कि देव आनंद इंस्पेक्टर विजय के रूप में जमेंगे. लेकिन स्क्रिट सुनने के बाद देव आनंद ने कहा कि वह यह किरदार बहुत ही सख्त है और गाने तक नहीं गाता. देव चाहते थे कि हीरो फिल्म में गाने गए. सलीम-जावेद को आइडिया पसंद नहीं आया. उनका मानना था कि यह कास्टिंग गलत होगी.
बालों में तेल की गंध
दो बड़े सितारों की ना के बाद यह फिल्म राजकुमार को ऑफर की गई. इंडस्ट्री में मजाक चलता है कि उन्होंने फिल्म करने से इसलिए मना कर दिया कि उन्हें प्रकाश मेहरा का बालों में लगे तेल की गंध पसंद नहीं आई. परंतु असली वजह यह है कि राजकुमार चाहते थे कि फिल्म मुंबई के बजाय उस समय के मद्रास में शूट की जाए. यह बात प्रकाश मेहरा को जमी नहीं. आखिरकार दिलीप कुमार को भी जंजीर ऑफर की गई परंतु उन्हें लगा कि इंस्पेक्टर का किरदार फिल्म में बेहद सपाट है. उसमें भावनाओं की विविधता नहीं है. ऐसे में फिल्म में उनके परफॉर्म करने के लिए कुछ खास नहीं रहेगा. अतः उन्होंने सीधे-सीधे फिल्म को नाम कह दिया. इस बीच एक्ट्रेस मुमताज ने भी खुद को फिल्म से अलग कर लिया. उन्होंने शाद कर ली.
जा रहे थे प्राण भी
सिर्फ हीरो की बात नहीं थी, फिल्म में अपनी अदाकारी से छा जाने वाले प्राण भी जंजीर को छोड़ने वाले थे. उनकी समस्या अलग थी. शूटिंग के पहले ही दिन जब उन्हें पता चला कि फिल्म उन्हें गाना भी गाना है और नाचना भी है, उन्होंने तत्काल प्रकाश मेहरा से कहा कि वह यह नहीं करेंगे. फिल्म छोड़ रहे हैं. आखिरकार अगले दिन मेहरा ने उनके घर जाकर समझाया कि यह गाना कितना जरूरी है और उनके बिना फिल्म नहीं चल पाएगी क्योंकि अमिताभ की तो बॉक्स ऑफिस पर कोई पहचान है नहीं, लोग उनकी वजह से ही फिल्म देखने आएंगे. मुश्किल से प्राण माने और उन पर फिल्माया गया गाना, यारी है ईमान मेरा यार... हिंदी सिनेमा के सबसे खूबसूरत गानों में शामिल हुआ. आज भी दोस्ती पर सबसे बेहतरीन गानों में यह अव्वल है.