नई दिल्ली: Hindi Medium Course of Medical & Engineering: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) ने नई शिक्षा नीति के तहत गणतंत्र दिवस (Republic Day 2022) पर अहम फैसला लिया. उन्होंने फैसला लेते हुए कहा कि अब से इंजीनियरिंग और मेडिकल कोर्स की पढ़ाई भी हिंदी मीडियम में होगी. CM शिवराज के इस फैसले के बाद शिक्षा जगत के कई एक्सपर्ट ने इस फैसले पर अपनी-अपनी राय देकर फैसले का एनालिसिस किया.


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इसे लेकर ज़ी मीडिया ने भी एजुकेशन एक्सपर्ट अमित निरंजन से बात की. अमित बोर्ड एक्सपर्ट व स्ट्रैटेजिस्ट होने के साथ ही स्कूल एग्जाम स्ट्रैटेजिस्ट भी हैं. छह विषयों में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (National Eligibility Test) क्वालीफाई करने के लिए उनका नाम 'इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स' में दर्ज किया गया. ऐसा करने वाले वह भारत के इकलौते शख्स हैं. 


25000 हजार स्टूडेंट्स को दे चुके हैं Training
अमित ने देशभर की 100 से ज्यादा स्कूलों के 25,000 स्टूडेंट्स की बोर्ड एग्जाम के लिए तैयारी व ट्रेनिंग करवाई है. इन स्टूडेंट्स ने आगे चलकर अच्छा स्कोर भी किया. तनाव से लड़ने के लिए वह बोर्ड स्टूडेंट्स की काउंसलिंग भी करते हैं. कई प्रसिद्ध पब्लिकेशन का कोर्स मटेरियल प्रोवाइड करने में इनका अहम योगदान रहा. 5000 हजार से ज्यादा शिक्षकों को ट्रेनिंग भी दे चुके हैं. आइए जानें मध्य प्रदेश सरकार के इस फैसले पर उन्होंने क्या कहा...


क्या है MP सरकार का फैसला 
मध्य प्रदेश सरकार ने फैसला लेते हुए कहा कि राज्य में अब से इंजीनियरिंग, मेडिकल और पैरामेडिकल कोर्स की पढ़ाई भी हिंदी में होगी. इसे तय करने के लिए एक्सपर्ट की एक कमेटी को बैठाया जाएगा, उनके बनाए प्लान के बाद ही कोर्स शुरू होगा. बता दें, हिंदी मीडियम में कोर्स शुरू करने को लेकर अब तक कोई भी आदेश जारी नहीं किया गया है. 


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क्या बोले अमित?
अमित ने कहा कि मेडिकल और इंजीनियरिंग कोर्सेस को हिंदी में शुरू करना सिर्फ एक चुनावी चाल है, स्टूडेंट्स के फायदे के लिए इस फैसले में कुछ भी नहीं है. सरकार एलोपैथी कोर्सेस को हिंदी मीडियम में शुरू करने जा रही है. इसमें कई तरह की दिक्कतें तो आएंगी ही, इंडिया के डॉक्टर्स हिंदी मीडियम में पढ़ने के बाद विदेशी डॉक्टर्स से कॉर्डिनेट नहीं कर पाएंगे. जिससे सबसे बड़ा नुकसान इंडिया को बाकी देशों से मेडिकल हेल्प लेने में होगा. 


इंजीनियरिंग में भी रहेंगे यही इश्यू
इंजीनियरिंग कोर्स को भी हिंदी मीडियम में शुरू करने को लेकर अमित ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े IT हब, जिनमें एप्प्ल, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, हुवेई, फेसबुक जैसी कंपनियां शामिल हैं. इन सभी के सॉफ्टवेयर इंग्लिश टर्मिनोलॉजी में वर्क करते हैं, ऐसे में हायरिंग के दौरान अगर स्टूडेंट्स अपने आप को एक्सप्रेस ही नहीं कर पाएंगे तो कंपनियां किस आधार पर उन्हें हायर करेंगी. 


आयुर्वेद पर इंडिया का अधिकार
अमित ने बताया कि आयुर्वेद पर भारत का अधिकार है, लेकिन एलोपैथी जो विदेशों से आई है, उसकी टर्मिनोलॉजी चेंज करने पर इंडियन डॉक्टर्स का ग्रोथ कैसे होगा. वह बोले कि आयुर्वेदिक इलाज को हम इंडियन एजुकेशन के अनुसार किसी भी लैंग्वेज में चेंज कर सकते हैं. लेकिन एलोपैथी का जन्म इंडिया में नहीं हुआ, ऐसे में कुछ भी अपडेट आने पर हमें उन शब्दों को ट्रांसलेट कर लिखना होगा. 


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क्या दवाइयों के नाम भी होंगे हिंदी में?
अमित ने कहा कि मेडिकल की पांच सालों की पढ़ाई हिंदी में करने के बाद जब डॉक्टर्स काम शुरू करेंगे तो जिन दवाइयों को वो मरीजों को देंगे, उनके नाम हिंदी में कौन बदलेगा? मध्य प्रदेश के बाहर दूसरे राज्यों में अभी तक इन कोर्स में हिंदी मीडियम को मान्यता नहीं दी गई, ऐसे में स्टूडेंट्स मध्य प्रदेश में ही सीमित हो कर रह जाएंगे. 


मरीजों को होगी आसानी?
अमित ने कहा, एक मरीज जब डॉक्टर के पास जाता है, तब उसका उद्देश्य बीमारी को किसी भी तरह दूर करने का रहता है, न कि ये जानने का कि इस बीमारी के इलाज को वह किस तरह से समझ सकता है. फार्मासिस्ट कंपनियां सारी दवाइयों का निर्माण इंग्लिश नामों में ही करती हैं, ऐसे में इनके नाम को ट्रांसलेट करने पर डॉक्टर और कंपनी दोनों की ही परेशानियां बढ़ेंगी. 


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क्या रहेंगे इश्यू


  • मेडिकल टर्मिनोलॉजी को स्टूडेंट्स हिंदी में एक्सेस नहीं कर पाएंगे. 

  • सरकारी अस्पताल में लागू कर सकते हैं. लेकिन प्राइवेट में नहीं. 

  • प्राइवेट हॉस्पिटल हिंदी मीडियम सिलेबस को एक्सेप्ट नहीं करेंगे. 

  • विदेशों से मेडिकल हेल्प के लिए कॉर्डिनेशन में प्रॉब्लम्स आएंगी. 

  • स्टूडेंट्स का पर्सनल ग्रोथ लिमिटेड हो जाएगा. 

  • दूसरे देशों से इंडिया का मेडिकल और इंजीनियरिंग सेक्टर में टाई-अप कमजोर होगा. 

  • ग्लोबलाइजेशन में परेशानियां आएंगी. 


क्या हो सकता है सॉल्यूशन?
अमित ने कहा, सबसे पहले तो इसे लागू ही नहीं होना चाहिए. मेडिकल और इंजीनियरिंग के इतने सारे सब्जेक्ट्स को हिंदी में पढ़ने के बाद अभ्यर्थियों को काम तो इंग्लिश में ही करना होगा. जब काम इंग्लिश में होगा तो उन्हें अंत में इस इंटरनेशनल भाषा को भी सीखना ही होगा. 


अमित ने बताया कि इस समस्या का सबसे बेहतर सॉल्यूशन होगा कि स्टूडेंट्स को कोर्स से पहले थोड़ा जोर देकर इंग्लिश सीखाई जाए. बजाए इसके कि मेडिकल और इंजीनियरिंग के इतने सारे सब्जेक्ट्स को इंग्लिश से हिंदी में ट्रांसलेट करें. स्टूडेंट्स को हिंदी और इंग्लिश दोनों ही भाषाएं सीखाना ज्यादा सरल होगा, बजाय दूसरे ऑप्शन पर फोकस करने के.  


चीन और रूस पर ये कहा...
अमित ने कहा कि चीन और रूस अपनी मातृभाषा पर बहुत जोर देते हैं, इंडिया को भी अपनी मातृभाषा पर जोर देना चाहिए. लेकिन जहां मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे एडवांस सेक्टर की बात आती हैं तो ये दोनों देश भी इंटरनेशनल लैंग्वेज इंग्लिश का ही सहारा लेते हैं. जब इन दोनों मातृभाषा प्रेमी देशों ने भी फ्लो के साथ बहने का फैसला किया तो मध्य प्रदेश में इतने बड़े रिवॉल्यूशन की क्या जरूरत है. 


अमित ने कहा कि जब राज्यों में बुनियादी शिक्षा की ही कमी हो रही है तो इतने बड़े चेंज की जरूरत नहीं ही है. 


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भविष्य में क्या होंगे करियर ऑप्शन?
अमित ने कहा कि हिंदी मीडियम से पढ़ने के बाद करियर तो रहेगा, लेकिन अभ्यर्थी सिर्फ उस राज्य तक ही सीमित रह सकेंगे. दूसरे राज्यों और देशों में जाकर काम करने की उनकी सारी उम्मीदें खत्म हो जाएंगी. वह बोले कि हिंदी मीडियम कोर्स लागू होने के बाद स्टूडेंट्स खुद अपने भविष्य की पॉसिबिलिटीज़ को देखकर नहीं आएंगे. जो स्टूडेंट्स इन कोर्स को करेंगे वो फैसला कर चुके हैं कि उन्हें मध्य प्रदेश के बाहर नहीं जाना है. 


नेता क्यों जाते हैं प्राइवेट अस्पताल में?
अमित बोले, जिन नेताओं के प्रयासों के बाद इस कोर्स की शुरुआत हो रही है, जब वे खुद बीमार पड़ते हैं तो प्राइवेट अस्पतालों में या विदेश क्यों जाते हैं? जहां का इलाज खुद 'इंग्लिश मीडियम डॉक्टरों' द्वारा किया जाता है. ये वही अस्पताल है जो अपने कोर्स को इंग्लिश से हिंदी में चेंज करने के लिए राजी नहीं है. 


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