Knowledge: 'बीटिंग द रिट्रीट' में नहीं बजेगा 'अबाइड विद मी', जानें इस सेरेमनी और गाने का इतिहास
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Knowledge: 'बीटिंग द रिट्रीट' में नहीं बजेगा 'अबाइड विद मी', जानें इस सेरेमनी और गाने का इतिहास

29 जनवरी 2022 को राजधानी दिल्ली के विजय चौक पर सेना का 'बीटिंग द रिट्रीट' प्रोग्राम होगा, इस दौरान 'अबाइड विद मी' की धुन को नहीं बजाया जाएगा. 

Knowledge: 'बीटिंग द रिट्रीट' में नहीं बजेगा 'अबाइड विद मी', जानें इस सेरेमनी और गाने का इतिहास

नई दिल्ली: Beating the retreat: 'बीटिंग द रिट्रीट' परेड में अब से गांधीजी का मनपसंद गाना 'अबाइड विद मी' नहीं बजेगा. 26 जनवरी की परेड के बाद 29 जनवरी को राजधानी दिल्ली के विजय चौक पर यह सेरेमनी होती है, तीनों सेनाएं पारंपरिक रूप से बैंड की हेल्प से अलग-अलग धुन बजाकर देश के शहीदों को याद करती है. 

लेकिन इस साल से अबाइड विद मी गाने की जगह दूसरे गानों की धुन को बजाकर समारोह का अंत किया जाएगा. ऐसे में यहां जानें ये पूरी सेरेमनी क्या है और इसका इतिहास. 

बीटिंग द रिट्रीट क्या है?
26 जनवरी से 29 जनवरी तक राजधानी दिल्ली में अलग-अलग प्रोग्राम होते हैं, 29 जनवरी का आखिरी प्रोग्राम 'बीटिंग द रिट्रीट' ही रहता है. देश के शहीदों को याद करने के लिए दिल्ली के विजय चौक पर यह प्रोग्राम आयोजित होता है. 

कहा जाता है कि यह एक तरह का सैन्याभ्यास है, पुराने समय में सूर्यास्त होने के साथ ही युद्ध विराम की घोषणा होती थी. सिपाही हथियार रखकर युद्ध स्थल छोड़ कर चले जाते थे. उसी की तर्ज पर भारत में शहीदों को याद करने के लिए यह सेरेमनी शुरू की गई. 

अलग-अलग बैंड की परफॉर्मेस के साथ ही प्रोग्राम शुरू होता है. बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाकर बैंड वापस ले जाने की परमिशन लेते हैं. परमिशन मिलते ही प्रोग्राम समाप्ति की घोषणा की जाती है. 

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1950 से बज रहा अबाइड विद मी
'बीटिंग द रिट्रीट' प्रोग्राम में 1950 से 'अबाइड विद मी' गाने की धुन को बैंड के माध्यम से बजाया जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा था कि 2020 से ही इस धुन को बंद किया जाना था, लेकिन 2020 के बाद 2021 में भी धुन बजी. लेकिन, इस बार फाइनली इसे बंद कर ही दिया गया. 

'अबाइड विद मी' का इतिहास
माना जाता है कि स्कॉटलैंड के हेनरी फ्रांसिस लाइट ने इस गाने को लिखा था, यह चर्च में बजने वाला एक भजन (Hymn) था, जो सादगी और दुख को प्रकट करता है. इसे इंग्लिश म्यूजिशियन विलियम हेनरी मोंक की ट्यून पर गाया जाता है.

कहा जाता है कि 1820 में फ्रांसिस लाइट ने अपने दोस्त की मौत के बाद इस गाने को लिखा था, जो 1847 में उनकी मौत के बाद पहली बार गाया गया था. तब से ही दुखभरी घटनाओं के मौके पर इस गाने की धुन को बजाया जाने लगा. टाइटैनिक के डूबने से लेकर फर्स्ट वर्ल्ड वार तक में कई बार इस गाने की धुन को बजाया गया. इंडियन आर्मी के साथ ही कई देश की सेनाओं ने इसे बजाना शुरू कर दिया. 

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गांधीजी से कनेक्शन
गांधीजी ने मैसूर पैलेस बैंड से इस धुन को सुना था, तब से ही 'वैष्णव जन तो...' के साथ ही यह गाना उनका फैवरेट बन गया. माना जाता है कि गांधीजी के कारण ही सेना में इस धुन को बजाने की प्रथा शुरू हुई, लेकिन अब यह धुन सेरेमनी में नहीं बजेगी. 
 
अब कौन सा गाना बजेगा?
इंडियन आर्मी द्वारा 22 जनवरी को धुन को हटाने की जानकारी दी गई, बताया गया कि इस साल 'सारे जहां से अच्छा...' की धुन के साथ प्रोग्राम का अंत होगा. इस दौरान कुल 26 गानों की धुन में इन्हें भी बजाया जाएगा. 

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