उत्तर प्रदेश के कुलदीप की Success Story पढ़कर कोई भी मोटिवेट हो सकता है.
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नई दिल्ली: 'मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है. सिर्फ पंखों से कुछ नहीं होता, दोस्तों हौसलों से उड़ान होती है.' इससे पहले आपने कभी ना कभी ये पंक्तियां जरूर पढ़ी होंगी. ये पंक्तियां ऐसी नहीं लिखी गईं, बल्कि कई लोगों ने इस बात को साबित किया है. बताया कि कम से कम संसाधन के साथ लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है. इन बातों को यर्थाथ करती हुए कहनी कुलदीप द्विवेदी की है. उत्तर प्रदेश के कुलदीप की Success Story पढ़कर कोई भी मोटिवेट हो सकता है.
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पिता थे सिक्योरिटी गार्ड
उत्तर प्रदेश के जिले निगोह के छोटे से गांव शेखपुर के कुलदीप ने बचपन से अभाव देखा. 6 लोगों को परिवार था. पिता सिक्योरिटी गार्ड और रहने के लिए सिर्फ एक कमरा. कुलदीप के पिता की कमाई से जैसे-तैसे घर का खर्च चलता था.
हिंदी मीडियम से की पढ़ाई
पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि कुलदीप को प्राइवेट स्कूल भेजा सके. ककहरा उन्होंने सरस्वती शिशु मंदिर से सीखा. खास बात है कि कुलदीप पहली कक्षा से लेकर पोस्टग्रेजुएशन तक हिंदी मीडियम से ही पढ़ाई की. 12वीं पास करके इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया. वहां से हिंदी और भोगूल में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएश किया.
UPSC के लिए छोड़ दी नौकरी
IAS अधिकारी बनने के लिए कुलदीप, दिल्ली तैयारी करने पहुंच गए. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनके पास पैसे भी नहीं हुआ करते थे कि वो किताबें खरीद सकें. वह अपने रूममेट्स और उधार की किताबों पर IAS बनने की कोशिश कर रहे थे. घर के हालात को देखते हुए कुलदीप अन्य सरकारी नौकरी की भी परीक्षाएं देते थे. साल 2013 में उनका चयन BSF में बतौर असिस्टेंट कमांडेंट हो गया. लेकिन जिद्दी और जुनून के चलते नौकरी नहीं की.
और 2015 बन गए IRS
इस दौरान कुलदीप के हाथों सिर्फ असफलता लग रही थी. पहली बार प्रीलिम्स नहीं निकला. दूसरी प्री निकला लेकिन मेन्स में सफल नहीं हुए. आखिरी साल 2015 में जब रिजल्ट आया, तो कुलदीप 242वीं रैंक हासिल की. कुलदीप ने इसके बाद इंडियन रेवेन्यू सर्विसेस (IRS) को चुना. बताया जाता है कि जब कुलदीप के सफलता की खबर उनके पिता के पास पहुंची, तो वह समझ नहीं पाए क्या हुआ है. उन्हें यह समझाने में काफी समय लगा कि उनका बेटा अधिकारी बन गया है.