Birthday: दिलीप कुमार ने कैसे एक प्रोफेसर को बनाया एक्टर
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Birthday: दिलीप कुमार ने कैसे एक प्रोफेसर को बनाया एक्टर

एक बार कादर खान नाटक 'ताश के पत्ते' में काम कर रहे थे. एक्टर जलाल आगा ने उनका शो देखा और दिलीप कुमार से कहा कि वह ये नाटक जरूर देखें.

कादर खान (फाइल फोटो)

नई दिल्लीः एक प्रोफेसर के एक्टर और लेखक बनने की कहानी अपने आप में फिल्मी है. यह कहानी है बॉलीवुड के शानदार एक्टर कादर खान (Kader Khan) की. वह मुंबई के भायखला में स्थित एमएस साबू सिद्दीकी इंजीनियरिंग कॉलेज में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे. 

बचपन में नकल उतारने का था शौक

आज के दिन ही कादर खान का जन्म हुआ था. उनका बचपन बहुत गरीबी में बीता था. उन्हें बचपन से ही लोगों की नकल उतारने का शौक था. यही हुनर उन्हें मंच तक ले गया. वह दस साल की उम्र से नाटकों में काम करने लगे. नाटकों से हुई कमाई को उन्होंने अपनी पढ़ाई में लगाया. इस तरह उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और प्रोफेसर बन गए. पढ़ाने के साथ-साथ उन्होंने नाटकों में काम करना जारी रखा. 

दिलीप कुमार की नजर-ए-इनायत
एक बार कादर खान नाटक 'ताश के पत्ते' में काम कर रहे थे. एक्टर जलाल आगा ने उनका शो देखा और दिलीप कुमार से कहा कि वह ये नाटक जरूर देखें. उसमें एक एक्टर काम कर रहा है, जिसका काम काबिलेतारीफ है. दिलीप कुमार नाटक देखने पहुंचे. दिलीप कुमार (Dilip Kumar) को यह नाटक बहुत पसंद आया. नाटक खत्म होने के बाद दिलीप ने ऐलान किया कि कादर खान उनकी आने वाली फिल्म 'सगीना' और 'बैराग' में काम करेंगे.

यहां से कादर खान का फिल्मी सफर शुरू हुआ. उनके पास फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने के प्रस्ताव भी आने लगे. इसके बावजूद उन्होंने कॉलेज में पढ़ाना नहीं छोड़ा.

छात्रों के बीच थे काफी मशहूर
कई सालों तक कादर खान शूटिंग के बाद रात को कॉलेज पहुंचते थे. तब तक छात्र उनका इंतजार करते रहते थे. कोई उनके लिए गर्म चाय लेकर आता, तो कोई उनका सिर दबाता. इसके बाद कादर खान सारी रात उन्हें पढ़ाते. जब फिल्मों का काम बढ़ गया तो उन्हें प्रोफेसरी छोड़नी पड़ी.

यारों के यार थे कादर खान
कादर खान ने इंडस्ट्री में कई अच्छे दोस्त बनाए. निर्माता-निर्देशक मनमोहन देसाई, प्रकाश मेहरा, अमिताभ बच्चन, जीतेंद्र, डेविड धवन, गोविंदा जैसे सितारों से उनके घरेलू रिश्ते थे. 

शुरुआत में जब वह मनमोहन देसाई से मिले, तब देसाई उन्हें देख कर खुश नहीं हुए. बस इतना बोले कि तुम्हारे डॉयलाग अगर मुझे अच्छे नहीं लगे तो मैं स्क्रिप्ट उठा कर दूर फेंक दूंगा, फिर कभी भी अपनी शक्ल मत दिखाना. अगर अच्छे लगे तो कंधे पर उठा कर नाचूंगा. 

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अगले ही दिन कादर खान स्क्रिप्ट लेकर मनमोहन देसाई के घर पहुंचें. देसाई मन ही मन गुस्सा हुए, तय किया कि एक पेज पढ़ने के बाद स्क्रिप्ट फेंक देंगे, पर जब उन्होंने पढ़ना शुरू किया तो दस बार पढ़ा. फिर उठे. कादर को लगा कि देसाई गुस्सा हो गए हैं. देसाई जल्दी से अंदर गए, लौटे तो उनके हाथ में ब्रांड न्यू टीवी का सेट था. कादर के हाथ में रखा. फिर कहा, नहीं कुछ रह गया है. देसाई दौड़ कर फिर से गए और अंदर से सोने का एक ब्रेसलेट उठा कर लाए. कादर के हाथों में पहनाया. 

इससे भी जी नहीं भरा तो वह फिर से अंदर गए और एक लिफाफे में इक्कीस हजार रुपए ले आए और कहा कि यह सिर्फ शगुन है, बाकी एक लाख बाद में दूंगा. कहा कि आज से मेरी सभी फिल्में तुम ही लिखोगे.

कादर खान ने 'अमर अकबर एंथनी', 'परवरिश', 'सुहाग', 'कुली', 'लावारिस', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'मिस्टर नटवरलाल', 'अग्निपथ', 'सत्ते पे सत्ता' और डेविड धवन की 'नंबर वन' सीरीज की सभी फिल्में लिखी थीं.

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