Nasir Hussain Films: अपने दौर के सबसे कामयाब निर्माता-निर्देशकों में शामिल नासिर हुसैन नाकामी के आदी नहीं थे. जब उनकी फिल्म बहारों के सपने रिलीज हुई, तो सैड क्लाइमेक्स दर्शकों को पसंद नहीं आया. नासिर साहब ने दो दिन बाद नया क्लाइमेक्स शूट करके फिल्म नए सिरे से रिलीज कर दी.
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Rajesh Khanna Films: हिंदी सिनेमा के बड़े ट्रेंड सेटर नासिर हुसैन (1926-2002) ने लेखक, निर्देशक, निर्माता के रूप में कई बेहतरीन फिल्में दी. तुमसा नहीं देखा, जब प्यार किसी से होता है, फिर वही दिल लाया हूं, तीसरी मंजिल, यादों की बारात, हम किसी से कम नहीं उनके नाम दर्ज हैं. देवानंद और शम्मी कपूर के लिए उन्होंने बेहतरीन फिल्में लिखीं और उन्हें वह पहचान दी, जिसके लिए इन सितारों को जाना जाता है. मगर राजेश खन्ना के साथ भी नासिर खान ने एक फिल्म बनाई थी, जब राजेश सुपर सितारे नहीं थे. शुरुआती दिनों में उनकी फिल्में पिट रही थीं. नासिर की फिल्म थी, बहारों के सपने (1967).
ट्रेजडी नहीं, चाहिए हैप्पी एंडिंग
म्यूजिकल-रोमांटिक फिल्मों के लिए पहचाने जाने वाले नासिर के लिए बहारों के सपने बहुत खास और दिल के करीब थी. वजह यह कि इसकी कहानी उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान लिखी थी और इस पर उन्हें पुरस्कार भी मिला था. नासिर किसी दिन इस कहानी पर फिल्म बनाने का ख्वाब लिए मुंबई आए थे. बहारों के सपने उनके ट्रेड मार्क से अलग यथार्थवादी, प्रयोगधर्मी और रंगीन जमाने में ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म थी. बतौर निर्देशक यह उनकी पांचवी फिल्म थी और इसे उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी समर्पित किया था. फिल्म में राजेश खन्ना के साथ नासिर हुसैन नंदा को हीरोइन लेना चाहते थे मगर नंदा तैयार नहीं हुईं तो आशा पारेख को लिया. नासिर की फिल्मों की पहचान रोमांस-संगीत के साथ हैप्पी एंड हुआ करती थी. दर्शकों को बहारों के सपने से भी यही उम्मीद थी. परंतु फिल्म देखने थियेटर पहुंच दर्शकों का गुस्सा आसमान पर पहुंच गया. फिल्म नासिर हुसैन की तमाम फिल्मों से न केवल उलट थी, बल्कि क्लाइमेक्स भी दुखांत था. यानी हैप्पी एंड नहीं था. अंत में हीरो-हीरोइन दोनों मर जाते हैं. दर्शकों ने नासिर की तीखी आलोचना की. गुस्सा जाहिर किया. अच्छी प्रतिक्रियाओं के आदी नासिर हैरान रह गए.
आजा पिया तोहे प्यार दूं
नतीजा यह निकला कि उन्होंने दो दिन बाद ही फिल्म का नया हैप्पी एंड वाला क्लाइमेस शूट किया. दूसरे हफ्ते में फिल्म हैप्पी एंड के साथ रिलीज की गई मगर इससे बॉक्स ऑफिस पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा. नाराज दर्शकों ने फिल्म को नकार दिया क्योंकि इसमें उन्हें नासिर हुसैन की छाप नजर नहीं आ रही थी. उस पर राजेश खन्ना नए थे. आशा पारेख हमेशा की तरह ग्लैमरस नहीं थीं. कुल मिलाकर दर्शकों के हिसाब के फिल्म में कुछ ठीक नहीं था. खास बात यह कि बहारों के सपने पहले विजय आनंद डायरेक्ट करने वाले थे और इसी के समानांतर नासिर हुसैन को तीसरी मंजिल डायरेक्ट करनी थी, जिसमें उस वक्त देवानंद को साइन किया था. मगर कुछ ऐसी बातें हुई कि विजय आनंद को नासिर हुसैन ने तीसरी मंजिल का निर्देशन सौंप दिया और देवानंद को बाहर करके शम्मी कपूर को ले लिया. फिर खुद बहारों के सपने डायरेक्ट की. बहारों के सपने से नासिर ने सबक सीखा कि दर्शकों को दुखांत पसंद नहीं आता और उन्होंने बाद में बतौर निर्माता-निर्देशक कभी ऐसी फिल्म नहीं बनाई जिसमें अंत में नायक-नायिका नहीं मिलते या मर जाते हैं. बहारों के सपने को लोग भले ही आज भूल गए हों परंतु इस फिल्म ने इंडस्ट्री को आरडी बर्मन यानी पंचम दा जैसा संगीत निर्देशक दिया. फिल्म के आजा पिया तोहे प्यार दूं और चुनरी संभाल गोरी... जैसी गाने आज भी बजते हैं तो लोग ठिठक जाते हैं.
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