अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की यह फिल्म 'गुलाबो सीताबो' शूजीत सरकार द्वारा निर्देशित और जूही चतुर्वेदी द्वारा लिखी गई है.
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नई दिल्ली: बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) और उभरते सुपरस्टार आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) की फिल्म 'गुलाबो सिताबो (Gulbo Sitabo)' आज 12 जून शुक्रवार को डिजिटली रिलीज हो चुकी है. इन दो बेहतरीन कलाकारों की जोड़ी को एक साथ स्क्रीन पर देखने का लोगों को लंबे समय से इंतजार था. तो आइए हमारी सहयोगी वेबसाइट DNA के मुताबिक जानते हैं कि कैसी है इन लखनऊ के नवाबों की कहानी. कैसा है फिल्म का निर्देशन और आपके दिल को कितना छूती है मिर्जा और बांकी की नोकझोंक...
कास्ट: अमिताभ बच्चन, आयुष्मान खुराना, विजय राज, बृजेन्द्र काला, फारुख जाफर, सृष्टि श्रीवास्तव, टीना भाटिया.
निर्देशक: शूजीत सरकार
अवधि: दो घंटे चार मिनट
कहां देखें: अमेजन प्राइम वीडियो
रेटिंग: 3
'गुलाबो सिताबो' की कहानी
इस फिल्म की कहानी 78 साल के लालची, झगड़ालू, कंजूस और चिड़चिड़े स्वभाव के मिर्जा (अमिताभ बच्चन) के आस-पास घूमती है, जो अपनी हवेली को जान से भी ज्यादा प्यार करता है. यह पुरानी और जर्जर हो चुकी हवेली मिर्जा की बीवी फातिमा की पुश्तैनी जायदाद है. इसका नाम फातिमा महल है. मिर्जा इतना लालची है कि वह पैसों के लिए हवेली की पुरानी चीजों की चोरी करने और उन्हें बेचने से भी गुरेज नहीं करता. हवेली का मालिक बनने की आस रखने वाले मिर्जा को खुद से 17 साल बड़ी बीबी फातिमा के मरने का इंतजार है.
इस हवेली में बहुत से किराएदार भी रहते हैं, इन्हीं में से एक हैं हमारे बांके रस्तोगी (आयुष्मान खुराना). बांके इस हवेली के एक हिस्से में मां और तीन बहनों के साथ रहता है. बांके महज छठी कक्षा तक पढ़ा है और एक आटा चक्की की कमाई से अपना घर चलाता है. लेकिन कुछ कारण ऐसे हैं कि मिर्ज़ा और बांके की अनबन होती रहती है जिसके कारण मिर्जा, बांके को बिल्कुल पसंद नहीं करता. मिर्जा आए दिन बांके को परेशान करने के नए-नए तरीके खोजता है जिससे वह हवेली को खाली करके चला जाए.
क्या हैं खामियां
लेखिका जूही चतुर्वेदी ने स्क्रीन प्ले का बड़ा भाग इन दोनों की अनबन को दिखाने पर ही लगा दिया है. लेकिन फर्स्टहॉफ पूरा खींचा जाने के बाद ऐसा लगता है कि फिल्म उबाऊ हो रही है. लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब मिर्ज़ा एक वकील के साथ मिलकर बिल्डर को हवेली बेचने की तैयारी कर लेता है.
लेकिन बांके भी कम नहीं वह एलआईजी फ्लैट पाने के लालच में आर्कियोलॉजी विभाग के एक अधिकारी से मिलकर इसे पुरातत्व विभाग को सौंपने की प्लानिंग करता है. लेकिन इसका अंत क्या होता है बांके या मिर्जा किसकी लालच पूरी होती है ये देखने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
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