IC 814 Kandahar Hijack Review: आईसी 814 कंधार हाईजैक की कहानी तो आपको पता होगी लेकिन फील अब आएगा
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IC 814 Kandahar Hijack Review: आईसी 814 कंधार हाईजैक की कहानी तो आपको पता होगी लेकिन फील अब आएगा

Kandahar Hijack: कंधार, जहां तक कभी अखंड भारत हुआ करता था. 25 साल पहले अचानक भारत के हर घर में उसका नाम लिया जाने लगा. काठमांडू से उड़ा Indian Airlines का एक प्लेन 7 दिन बाद दिल्ली उतरा था. इस दौरान क्या-क्या हुआ, प्लेन को अमृतसर में क्यों नहीं रोका गया? तेल खत्म हो रहा था फिर प्लेन लाहौर कैसे उड़कर गया. दुबई फिर कंधार. आईसी 814 कंधार हाईजैक वेब सीरीज आपको प्लेन में बिठाकर उस टाइम में ले जाती है.

IC 814 Kandahar Hijack Review: आईसी 814 कंधार हाईजैक की कहानी तो आपको पता होगी लेकिन फील अब आएगा

Kandahar Hijack Real Story: जो कहानी ऑडियंस को पहले से पता हो, उस पर फिल्म बनाना डायरेक्टर-प्रोड्यूसर के लिए जोखिम भरा होता है. लोग देखेंगे, पसंद करेंगे या नहीं? क्या हम फील करा पाएंगे? IC814 'दी कंधार हाईजैक' वेब सीरीज ऐसे विषय पर है, जिस पर फिल्म पहले ही बन चुकी थी, फिर भी अनुभव सिन्हा ने जोखिम लिया. और जैसा फिल्म में काम करने वाले दिग्गज अभिनेता पंकज कपूर और नसीरुद्दीन शाह कहते हैं कि यह आने वाली पीढ़ी के लिए एक दस्तावेज बनेगी. वे इस फिल्म के जरिए उस टाइम में लौट सकेंगे जब देश के लोग एक हफ्ते तक ठीक से सो भी नहीं पाए थे.

कंधार हाईजैक की कहानी 

काठमांडू से उड़ा एक प्लेन किन हालात में हाईजैक होता है, कैसे आईएसआई की एक्टिविटीज पर रॉ (भारतीय खुफिया एजेंसी) नजर रखी होती है और सूचनाएं सीढ़ी चढ़ते हुए जब तक टॉप लेवल पर आती, प्लेन दहशतगर्दों के कंट्रोल में जा चुका होता है. वो तारीख थी 24 दिसंबर 1999, प्लेन को त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से उड़कर इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट दिल्ली आना था लेकिन यह पहले अमृतसर, लाहौर, दुबई फिर अफगानिस्तान की धरती कंधार में आकर लैंड होता है. 

कैप्टन की गर्दन घिस गई थी...

यह वेब सीरीज प्लेन को उड़ा रहे 37 साल के कैप्टन देवी शरण की लिखी किताब 'फ्लाइट इनटू फियर' (Flight Into Fear: The Captain's Story)पर आधारित है. डायरेक्टर अनुभव सिन्हा ने बताया है कि कैप्टन की गर्दन पर इतनी ज्यादा देर तक बंदूक रखी गई थी कि घिसने से घाव हो गया था. वो दाग आज भी बना हुआ है. जब फिल्म बनाने के लिए अनुभव सिन्हा ने देवी शरण से बात की और उनसे पूछा कि सबसे रिलीफ का क्षण कौन सा था और सबसे ज्यादा दिल टूटने वाला पल क्या था. कैप्टन ने उनसे कहा कि जब प्लेन अमृतसर में लैंड हो रहा था तब उन्हें भीतर से राहत मिल रही थी कि अब तो अपने में देश में आ गए हैं. अब सब ठीक हो जाएगा लेकिन सबसे ज्यादा दिल तब टूटा जब प्लेन को 45 मिनट में ही अमृतसर से उड़ाना पड़ा. 

वेब सीरीज में खास क्या है

खैर, 25 साल पहले की उस खौफनाक घटना को आप फिर से याद कर सकते हैं. उसके बाद अगर आपका जन्म हुआ है और सब्सक्रिप्शन है तो वीकेंड बिताने के लिए यह एक शानदार वेब सीरीज है. इसे आप डॉक्यू-ड्रामा समझिए क्योंकि फिल्म के स्टूडेंट्स को इसमें एडिटिंग स्किल्स के साथ-साथ विजुअल इफेक्ट गजब के दिखेंगे. ऐसी फिल्मों में बहुत चीजें कंप्यूटर जेनरेटेड बनानी होती है और रियल से हटकर फैंटेसी हो जाने का रिस्क भी रहता है. लेकिन अनुभव का 'अनुभव' काम आया है. 

वेब सीरीज में जब प्लेन आसमान में होता है तो हाईजैक प्लेन को चमकते बादलों के बीच उड़ते और जलती-बुझती रेड लाइट को देखना आपको उस प्लेन में ले जाकर बिठा देता है. उस समय असल में जो तस्वीरें आई थीं उसमें देखा गया था कि अंदर काफी गंदगी हो गई थी. ऐसी छोटी-छोटी परेशानियों को डायरेक्टर ने अपनी इमैजिनेशन से रीयल बना दिया है. जब एयरहोस्टेस को नाक दबाकर बदबूदार टॉयलेट के बगल में बैठना पड़ता है. एक बार वह साफ करने भी जाती है लेकिन उल्टी हो जाती है फिर कैप्टन उतर चोक्ड टॉयलेट को ठीक करने जाते हैं. अनुभव सिन्हा ने इसी तरह वॉर रूम की सिचुएशन को अपनी इमैजिनेशन से थ्रिलिंग बनाया है. 

वो एक सीन

न्यूज एडिटर के तौर पर दीया मिर्जा और उनकी एक पत्रकार का रोल भले ही छोटा रहा हो लेकिन एक बेहद महत्वपूर्ण पहलू को गंभीरता के साथ सामने लाता है. कैसे तब मीडिया को जो पैसेंजर लिस्ट दी गई थी उसमें एक नाम कम था. कौन था वो शख्स जो प्लेन में बैठा और उसका नाम पब्लिक से छिपाया गया. रिपोर्टर उस इस खबर को पब्लिश करना चाहती थी लेकिन एडिटर देशहित में इसे रोक देती हैं. 

बिना बोरियत वाला डॉक्यू-ड्रामा

बीच-बीच में जब असली वीडियो क्लिप को दिखाया जाता है और इस तरह से रीयल और रील पिक्चर को प्रजेंट किया जाता है कि सब कुछ असली ही दिखे. ऐसा लगे कि ऑडियंस सब कुछ अपनी आंखों के सामने घटता देख रही है, यही तो डायरेक्टर की सफलता है. बाद में वेब सीरीज के ऐक्टरों ने एक प्रमोशनल वीडियो में इस चीज की तारीफ भी की है. वैसे डॉक्यू-ड्रामा कभी कभार बोरिंग हो जाता है.  

राजनीतिक हालात भी समझेंगे आप

जो लोग उस समय राजनीति को समझने लायक थे, उन्हें याद होगा कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को कैसे एक के बाद एक आतंकी घटनाओं से जूझना पड़ा था. गठबंधन सरकार थी इसलिए फैसले लेने से पहले बहुत पक्षों से सलाह मशविरा लेने में देरी भी हुई थी. इस वेब सीरीज में उस कश्मकश को बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है. भारत सरकार को कैसे अपने करीब 200 लोगों की जान बचाने के लिए तीन खूंखार आतंकियों को छोड़ना पड़ा जिन्होंने बाद में फिर हमले किए और भारतीयों का खून बहाया. 

कहां चूक हुई?

वेब सीरीज बहुत संजीदगी के साथ उस दौर की यादें ताजा करती है और लोग इस बात को समझते हैं कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से देखें तो वह एक खतरनाक चैप्टर था. अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत से राब्ता कम था, आईएसआई काठमांडू में कुछ ज्यादा ही एक्टिव थी और हमारी सरकार बेबस साबित हुई. एक्सपर्ट तो यहां तक मानते हैं कि कारगिल के बाद कंधार, फिर संसद पर हमला जैसी घटनाओं के चलते ही वाजपेयी सरकार को 2004 में हार का मुंह देखना पड़ा. यह बात अलग है कि यूपीए सरकार भी गठबंधन सरकार आई और उसके समय में भी 2008 मुंबई हमला हुआ जिसमें सरकार के रिस्पांस पर सवाल खड़े किए जाते हैं. 

भारत सरकार ने तब अपने लोगों के बदले में जिस मसूद अजहर को छोड़ा था वह जैश-ए-मोहम्मद का सरगना है और आज भी पाकिस्तान में बैठकर भारत के खिलाफ साजिश बुनता रहता है. जेल में बंद मसूद अजहर को छुड़ाने की आतंकियों ने पहले भी कोशिश थी लेकिन 1999 में वे प्लेन में एक्सप्लोसिव और हथियार लेकर घुसने में कामयाब हो गए. यह सुरक्षा में बड़ी चूक थी. वास्तव में 9/11 हमले के बाद हवाई सुरक्षा दुनियाभर में मजबूत हुई. 

कैप्टन का पूरा शूट कॉकपिट में लेकिन...

वेब सीरीज में विजय वर्मा का काम आपको शानदार लगेगा. कैप्टन की भूमिका में वे पूरे समय कॉकपिट में ही रहे लेकिन दर्शक को बांधकर रखने में कामयाब रहते हैं. उनका सीन ज्यादातर क्रोमा में शूट हुआ है और उससे पहले उन्होंने कॉकपिट सिमुलेटर में जाकर कैप्टन के काम को सीखा समझा था. वह भी कैप्टन देवी शरण के रोल को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं. रोल करने के बाद उन्होंने कहा कि कैप्टन ने पूरी कोशिश की थी कि प्लेन और यात्री सेफ रहें. अपहरणकर्ताओं की बातें भी मानी और जहां जैसे संभव हुआ टाइम बाय करने की कोशिश की जिससे एजेंसियां अपना काम कर सकें. 

पाहवा के क्या कहने

मनोज पाहवा निगोशिएन टीम में एक अहम किरदार में दिखेंगे. कंधार जाकर जिस अंदाज में उन्होंने वन टू वन कॉकपिट में बैठे आतंकी से डीलिंग की, वह आपके चेहरे पर मुस्कान ला देगी. चीफ जी, इतने पैसों का क्या करेंगे आप... भारत बहुत बड़ा देश है... चीफ जी, आप थके-थके लग रहे हैं चाय-साय भिजवाएं क्या? ऐसी स्क्रिप्टिंग आपको अलग फील कराएगी. वह पल ऐसा रहा होगा जब अपने लोगों को भी छुड़ाना था और आतंकियों के सामने पूरी तरह सरेंडर भी नहीं होना था. 

'रोजा' एक्टर जम रहे

हां, 'रोजा' फिल्म के एक्टर अरविंद स्वामी को हिंदी फिल्म में देखकर अच्छा लगता है. जिन लोगों ने रोजा फिल्म देखी है वे आसानी से पहचान लेंगे. और हां, एक साउथ के अफसर के लिए हिंदी बेल्ट में काम करते समय कैसे कुछ हिंदी शब्दों के अर्थ को लेकर परेशानी होती होगी, ये बड़े ही बेहतरीन तरीके से देखने को मिलता है. जब वह पूछते हैं कि ये चट्टे-बट्टे क्या होता है. एक जगह सीन आता है जब उनसे पूछा जाता है कि आप तो साउथ के हैं कॉफी प्रिफर करते होंगे? 

कुल मिलाकर देखें तो उस खौफनाक घटना को याद करने और बेहतरीन समय बिताने के लिए आप यह वेब सीरीज पूरे परिवार के साथ देख सकते हैं. यह भी याद कीजिएगा कि तब अपने लोगों को छुड़ाने के लिए लोग एयरपोर्ट तक पोस्टर लेकर खड़े थे. 7 दिन बाद जब विशेष फ्लाइट दिल्ली में उतरी तब जाकर जान में जान आई. फिल्म के आखिर में जब मिनिस्टर के रोल में पंकज कपूर कैप्टन को सैल्यूट करते हैं तो आप जोश से भर उठेंगे. पंकज कपूर ने खुद डायरेक्टर को यह सीन करने के लिए सजेस्ट किया था. विजय वर्मा इसके लिए उनका शुक्रिया अदा करते हैं क्योंकि यह इकलौता सीन है जिसमें उन्हें दिग्गज कलाकार के साथ फ्रेम में आने का मौका मिला. 

जहां तक रेटिंग की बात है तो ऐसी फिल्मों को 5 स्टार देना बनता है क्योंकि ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहिए. 

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