Opinion: आतंकवादियों का महिमामंडन क्यों? भोला-शंकर नहीं भाईसाहब! 'IC 814 कंधार हाईजैक' की 5 असली कमियां तो यहां हैं
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Opinion: आतंकवादियों का महिमामंडन क्यों? भोला-शंकर नहीं भाईसाहब! 'IC 814 कंधार हाईजैक' की 5 असली कमियां तो यहां हैं

IC 814 The Kandahar Hijack Web Series: 29 अगस्त 2024 को नेटफ्लिक्स पर वेब सीरीज 'आईसी 814 : द कंधार हाईजैक' रिलीज हुई. फिलहाल इसके कुछ सीन्स को लेकर विवाद भी हो रहा है. सबसे ज्यादा आपत्ति भोला और शंकर के नाम को लेकर हुई. लेकिन चलिए बताते हैं आखिर असली गलती कहां थी.

'IC 814 कंधार हाईजैक' की 5 असली कमियां तो यहां हैं

अब फिल्में या वेब सीरीज पर क्लेश होना आम हो गया है. कभी इतिहास से छेड़छाड़ के आरोप तो कभी धार्मिक भावनाओं को आहात करने को लेकर असहमति जताई जाती है. मगर कई बार कुछ चीजें बेवजह ही तूल दी जाती है. क्योंकि सोशल मीडिया के युग में राय देना बहुत ही आसान है. अब नेटफ्लिक्स की हालिया वेब सीरीज  'IC-814: The Kandahar Hijack' को लेकर ही देख लीजिए. अनुभव सिन्हा के डायरेक्शन में बनी सीरीज में आंतकवादियों के हिंदू नाम रखे जाने पर खूब विवाद हुआ. मामला सूचना प्रसारण मंत्रालय तक पहुंच गया और शो में मेकर्स को बदलाव भी करने पड़े. लेकिन क्या आपने सोचा है कि असली विवाद नाम नहीं था. नाम के पीछे तो कुछ फैक्ट्स हैं. मगर  'IC-814' में कुछ कमियां थी जो बतौर दर्शक खलती है. चलिए बताते हैं आखिर क्या चीजें थीं जिन्हें मेकर्स दुरुस्त कर सकते थे.

नाम को लेकर क्या विवाद हुआ? : 29 अगस्त 2024 को नेटफ्लिक्स पर वेब सीरीज 'आईसी 814 : द कंधार हाईजैक' रिलीज हुई. सीरीज की कहानी 24 दिसंबर 1999 की है. जब 5 आतंकवादियों ने इंडियन एयरलाइंस का विमान IC-814 को हाईजैक कर लिया. 179 पैसेंजर और 11 क्रू मेंबर इस विमान में सवार थे. इस वेब सीरीज में विजय वर्मा, पंकज कपूर, नसीरुद्दीन शाह, मनोज पहावा, दिया मिर्जा से लेकर सुशांत सिंह जैसे सितारे नजर आए. मगर कुछ दर्शकों ने आपत्ति जताई कि पांच में से दो आंतकवादियों के नाम इन्होंने भोला और शंकर क्यों दिखाए. ऐसा करके वह विशेष धर्म का अपमान कर रहे हैं. गलत छवि बना रहे हैं.

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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भोला और शंकर नाम पर विवाद, सच क्या है नाम के पीछे का
धीरे-धीरे आग की तरह विवाद फैलता गया. नेटफ्लिक्स हैड ने भी मेकर्स को तलब किया. मगर फिर सच्चाई सामने आई कि इन पांचों आंतकवादियों ने कोडनेम रखे थे- बर्गर, चीफ, डॉक्टर, भोला और शंकर. जबकि इनके असली नाम इब्राहिम अतहर, शाहिद अख्तर सईद, सनी अहमद काजी, मिस्त्री जहूर इब्राहिम और शाकिर थे. 6 जनवरी 2000 को खुद केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कोडनेम के बारे में बताया गया था. खुद पैसेंजर्स ने भी कहा था कि आंतकवादी इन्हीं कोडनेम से आपस में बात कर रहे थे. ऐसे में मेकर्स ने भी इन्हीं पांचों कोडनेम का इस्तेमाल किया. लेकिन बात वहां खलती है कि मेकर्स ने आखिर नेताओं, पैसेंजर और बाकी लोगों के नाम क्यों बदले?

'आईसी 814 : द कंधार हाईजैक' में कहां रह गई गलतियां?
अब आते हैं मुद्दे पर. एक दर्शक के तौर पर मुझे तो गलतियां देखीं उस पर आते हैं. मेकर्स की सबसे बड़ी चुनौती थी कि उन्होंने एक ऐसे विषय को चुना, जिस पर अब तक कई पॉपुलर फिल्में भी बन चुकी हैं. ऐसे में एक डायरेक्टर और राइटर के लिए ये सबसे मुश्किल हो जाता है कि कैसे वह उसी कहानी को नए अंदाज में पेश करें. इस मामले में अनुभव सिन्हा ने एक अलग एंगल की स्टोरी को पिक किया. ये था पायलट की भूमिका को केंद्र बनाते हुए. उस हाईजैक विमान के पायलट कैप्टन देवी शरण थे जिन्होंने अपने हिस्से के अनुभव को Flight Into Fear: The Captain's Story बुक में शेयर किया. इसी किताब पर नेटफ्लिक्स की ये वेब सीरीज बनाई गई.

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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सबसे सुस्त किरदार
मगर 'आईसी 814 : द कंधार हाईजैक' में यही किरदार सबसे सुस्त लगा. कैप्टन के रोल को विजय वर्मा ने निभाया है. जो अपनी शानदार एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं. मगर इस किरदार को मेकर्स अच्छे से परोसने में नाकामयाब लगते हैं. किरदार बोरिंग लगता है. पूरी सीरीज में सिर्फ उसके कनपटी पर बंदूक लगी दिखती है. हाव-भाव भी टस के मस नहीं हुए हैं. जबकि इससे भी छोटा रोल क्रू मेंबर का किरदार छाया का था, जो काफी इम्पैक्टफुल लगता है. देखने में मजा आता है.

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क्रूरता और भयावहता नहीं दिखती

देश के सबसे बड़े हाईजैक घटना पर वेब सीरीज बनी है. आजतक लोगों की रूह कांप जाती है, इस कहानी को पढ़कर देखकर. मगर विजय वर्मा की वेब सीरीज ये क्रूरता और भयावहता को दिखाने में नाकामयाब लगती है. कुछ मिनटों के सीन्स को छोड़ दें तो सीरीज न ही डर पैदा कर पाती है न ही गुस्सा दिलाती है.

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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आंतकवादियों का महिमामंडन
कंधार हाईजैक पर बनी वेब सीरीज में कुछ फैक्ट्स को सहुलियत के हिसाब से इस्तेमाल किया गया है. ये बात एकदम सच है कि कुछ विकिट्म ने बताया था कि आंतकवादियों ने उनके साथ नरम थे. जाते वक्त उन्होंने गुडबाय कहा था. मगर ये कतई उचित नहीं है कि आंतकवादियों का महिमामंडन किया जाए. ये भी सच है कि दो लोगों के गले काटने वाले भला काइंड कैसे हो सकते हैं. छाया के साथ आंतकवादी का लवस्टोरी का एंगल डालने की जरूरत क्या थी? कुल मिलाकर अनुभव सिन्हा जैसे शानदार डायरेक्टर इन चीजों से बच सकते थे. 

लेख में व्यक्त विचार लेखक/लेखिका के निजी हैं

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