Jahangir National University Review: खूब रिस्की प्वाइंट के साथ बड़े पर्दे पर आई डायरेक्टर विनय शर्मा की फिल्म, पढ़ें 'जेएनयू' का रिव्यू
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Jahangir National University Review: खूब रिस्की प्वाइंट के साथ बड़े पर्दे पर आई डायरेक्टर विनय शर्मा की फिल्म, पढ़ें 'जेएनयू' का रिव्यू

JNU Movie Review in Hindi: कई अटकलों और कानूनी पचड़ों का सामना करने के बाद डायरेक्टर विनय शर्मा की फिल्म आज यानी 21 जून को सिनेमाघरों में दस्तक दे गई है. आइए, फिल्म देखने से पहले यहां पढ़ लें इसका रिव्यू.

JNU Movie Review

फिल्म निर्देशक: विनय शर्मा
स्टार कास्ट: सिद्धार्थ बोडके, उर्वशी रौतेला, रवि किशन, विजय राज, पीयूष मिश्रा, रश्मि देसाई, सिद्धार्थ भारद्वाज, कुंज आनंद, अतुल पांडेय, शिवज्योति राजपूत, उमर शरीफ आदि
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में 

स्टार रेटिंग: 3

 इस मूवी को देखने से पहले ये बात जान लें कि ये मूवी जेएनयू की राजनीति के भगवा पक्ष की कहानी है. तमाम वामपंथी संगठन इस फिल्म की रिलीज के खिलाफ थे, और जो आरोप पिछले कुछ सालों में कन्हैया कुमार, शहला राशिद या उमर खालिद जैसे वामपंथी छात्र नेताओं पर लगे थे, उन्हीं घटनाओं के इर्दगिर्द ये मूवी घूमती है. ऐसे में आपको लगेगा कि जब सब कुछ पता है तो ये मूवी क्यों देखी जाए, लेकिन निर्देशक विनय शर्मा कुछ ऐसी घटनाओं को भी मूवी की कहानी में पिरोने में कामयाब हुए हैं, जो मीडिया की सुर्खियां नहीं बनीं या फिर चर्चा में नहीं आ पाईं. सबसे दिलचस्प बात अब पीएम मोदी की मुरीद हो गईं शहला राशिद के किरदार में इतनी खलनायकी इस मूवी में दिखाई गई है कि इसे देखकर कहीं वो फिर से ना भगवा खेमे से नाराज हो जाएं.

जेएनयू की कहानी लेकर आए डायरेक्टर विनय शर्मा

मूवी की कहानी का नायक है सौरभ शर्मा. दरअसल चाहे देश विरोधी नारे जेएनयू में लगे हों, या नक्सली हत्या में मारे गए जवानों की शहादत पर खुशियां मनाई गई हों या फिर महिषासुर की पूजा हुई हो, कन्हैया या बाकी वामपंथी गैंग के विरोध की खबरें तो छपीं लेकिन कोई नायक आम जनता के बीच लोकप्रिय नहीं हुआ, जिसने विरोध का नेतृत्व किया हो. सौरभ शर्मा (सिद्धार्थ बोडके) को इस मूवी से उसी नायक की तरह प्रस्तुत किए गया है. जो उस दौरान एबीवीपी (इस मूवी में एआईवीपी) की जेएनयू विंग में थे. यूपी के एक छोटे शहर का लड़का जिसे अपनी तरह की वामपंथ विरोधी रिचा (उर्वशी रौतेला) पसंद आ जाती है. दोनों एआईवीपी में शामिल हो जाते हैं और वामपंथी छात्र नेताओं कृष्णा कुमार (अतुल पांडे), सायरा राशिद (शिवज्योति राजपूत) और उमर मलिक खान (उमर शरीफ) का विरोध करते हैं. चाहे वो महिषासुर वाला मामला हो या फिर कैम्पस में भारत विरोधी नारे लगाने का या फिर ‘योगा दिवस’ के जवाब में ‘किस दिवस’ मनाने का.

कई कहानियां होंगी नई

इस मूवी में कुछ ऐसी कहानियां भी जोड़ी गई हैं, जो आम जनता के लिए शायद नई होंगी, जैसे अखिलेश पाठक यानी बाबा का किरदार और शायरा राशिद द्वारा उसे धोखा दिया जाना. नायरा का किरदार जिसे उमर मलिक खान द्वारा धोखा दिया जाना. एक वामपंथी प्रोफेसर द्वारा बांग्लादेशी रिसर्च स्कॉलर का यौन उत्पीड़न भी इसी दिशा में शामिल है. हालांकि कुछ सींस ऐसे लोगों से भी जुड़े हैं, जिन पर उन लोगों को आपत्ति हो सकती है, जैसे डीन प्रोफेसर निवेदिता के किरदार में रश्मि देसाई का एक छात्र के साथ रोमांटिक सीन और टीवी एंकर कवीश कुमार का शराब के इंतजाम की बात करना और खुलेआम गालियां बकना.

यूं कवीश कुमार वामपंथी छात्रों की गाइडिंग फोर्स ‘दादा’ के रूप में नजर आए हैं तो डायरेक्टर ने पीयूष मिश्रा को एक रोल करने के लिए राजी करना बताता है कि अपनी तरफ से विनय शर्मा ने कोई कसर नहीं छोड़ी. पीयूष मिश्रा गुरूजी के तौर पर जेएनयू के एक ऐसे पूर्व छात्र के तौर पर हैं, जिनका मोह भंग हो चुका है और वो जमकर उन्हें गालियां देते हैं, मूवी में भी खुलेआम लड़कियों के बीच दे रहे हैं. फिर अपने चिरपरिचत अंदाज में गीत गाकर मंच से लैफ्ट को गरिया भी रहे हैं कि मेरी जवानी बर्बाद कर दी.

रवि किशन-विजय राज का किरदार दिलचस्प

सही मौके पर डायरेक्टर ने रवि किशन के साथ विजय राज को भी उतारा है, दोनों हरियाणवी अंदाज में राइट विंग के लोगों के गुदगुदाते नजर आएंगे. दोनों जेएनयू के पास वाले थाने के पुलिस अधिकारियों के रूप में हैं. उस वक्त वामपंथी छात्रों की पिटाई के चलते ये बसंतकुंज थाना चर्चा में रहा था.

लेकिन सबसे दिलचस्प किरदार है अखिलेश पाठक उर्फ बाबा (कुंज आनंद) का, फिल्म के वो दूसरे हीरो हैं, जो शायरा राशिद से अपने ही अंदाज में उसे चुनाव में हराकर बदला लेते हैं. पाठक का किरदार इतना मनोरंजक बनाया गया है कि वो इस मूवी से आपको बांधे रखता है. सौरभ शर्मा का किरदार करने वाले मराठी कलाकार सिद्धार्थ ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है कि मूवी पर छा जाएं और जितने भी सीन मिलें, उनमें जान डाल दें, वो कामयाब भी रहे हैं. कृष्णा के किरदार में अतुल पांडे हों या फिर शायरा राशिद के किरदार में शिवज्योति राजपूत, आपको मानना पड़ेगा कि किरदारों के लिए कलाकारों के चयन में काफी गंभीरता बरती गई है.

उर्वशी रौतेला का दिखेगा अलग ही अवतार

उर्वशी रौतेला का भी डायरेक्टर ने उतना ही इस्तेमाल किया है, जिसमें उन्हें नोटिस किया जाए, यहां तक कि उनके छवि के मुताबिक दो डबल मीनिंग डायलॉग्स भी उनसे बुलवा लिए गए हैं, “मच्छर कहां कहां घुस जाएंगे”... और “लैफ्ट वाली लड़कियां ब्रा क्यों नहीं पहनती हैं”. हालांकि आपको पसंद नहीं आएंगे तो एकदम गंभीर नजर आ रही उर्वशी के किरदार पर अगले ही सीन में फिल्माए गाने के बोल और गायिका की देसी आवाज भी..जो जेएनयू की मॉर्डन लड़की पर फिट नहीं बैठती, बोल हैं.. “मैं बल्ला घुमाऊं तू बॉल मार देना”.

जाहिर है डायेक्टर ने यूथ को टारगेट किया है, ताकी उनके बीच मूवी अच्छी चले, ऐसे और भी द्विअर्थी डायलॉग हैं, जिसमें एक लड़की कहती है पैर छोड़ो अब कुछ और पकड़ने की जरुरत है.. ‘किस दिवस’ के नाम पर कई किस सीन डाल दिए गए हैं. यहां तक कि दो लड़कों और दो लड़कियों के बीच भी. युवाओं के चलते ही मूवी को दूसरा गैंग्स ऑफ वासेपुर से भी एक कदम आगे ले जाने की कोशिश हुई है, इतनी सारी गालियां तो हैं ही, बल्कि ये सारी गालियां लड़कियों के बीच दी गई हैं और कोई एक आवाज ऐतराज में नहीं उठती.

फिल्म में रिस्की प्वाइंट भी हैं भरपूर

यही प्वॉइंट इस मूवी का सबसे बड़ा रिस्की प्वॉइंट भी है. इतनी सारी गालियों, लड़कियों के मुंह से डबल मीनिंग डायलॉग्स, किस सींस आदि डाले ही इसलिए गए हैं कि युवाओं के बीच मूवी चर्चा का विषय बने और एजेंडा मूवी होने के आरोपों के बीच भी खर्च निकाल ले. क्योंकि जान लें कि मूवी इतने भी कम बजट में नहीं बनी है. लेकिन एबीवीपी (एआईवीपी) का छात्र नेता लड़कियों के बीच खुलेआम गालियां दे और अगली लाइन में जय श्री राम का नारा भी लगाए, देश भर के पूरे संघ, एबीवीपी कैडर को पसंद आए और वो परिवार सहित ये मूवी देखें, ये मुमकिन नहीं लगता, लैफ्ट के कैडर की बस चले तो फिल्म में आग लगा दे. उस पर आखिरी गाने में सौरभ शर्मा अपनी प्रेमिका के साथ गोवा के बिग डैडी कैसीनो में बाजी लगाते हुए भी दिखाए गए हैं. सो ये रिस्क है. मूवी ‘कश्मीर फाइल्स’ बन जाएगी, ऐसा नहीं लगता.

ऐसे में अब युवाओ को तय करना है कि वो इस मूवी को देखने किसलिए जाएगा, राष्ट्रवाद के खिलाफ हो रही साजिशों को समझने के लिए या फिर बाकी सब मसालों के लिए या दोनों के लिए. लेकिन मूवी देखकर आप निर्देशक की मेहनत और बाबा के किरदार की तबियत को जरुर पसंद करेंगे. यूं मूवी में मोदीजी भी हैं, वीर नरेन्द्र दास मोदी के रूप में.

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