एक्टर बनने की ख्वाहिश लिए मदन मोहन ऐसे बन गए मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर
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एक्टर बनने की ख्वाहिश लिए मदन मोहन ऐसे बन गए मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर

संगीतकार मदन मोहन की पुण्यतिथि के मौके पर जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से.

मदन मोहन (File Photo)

नई दिल्ली: 'आंधी', 'मदहोश', 'अंजाम' जैसी फिल्मों में संगीत देने वाले मदन मोहन (Madan Mohan) जिस पहचान के हकदार थे वो उन्हें हासिल नहीं हो पाई. इसी दर्द के साथ वो दुनिया से रुख्सत हो गए. 25 जून 1924 को इराक में उनका जन्म हुआ था और आज यानी 14 जुलाई को इस संगीतकार ने दुनिया को अलविदा कर दिया था. मदन मोहन की पुण्यतिथि के मौके पर जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से.

  1. मशहूर संगीतकार मदन मोहन की पुण्यतिथि आज
  2. अभिनेता बनने की ख्वाहिश लिए बने संगीतकार
  3. नर्गिस की मां से लिया संगीत का ज्ञान

नर्गिस की मां से सीखा संगीत:
मदन मोहन मुंबई में मैरीन लाइंस में जहां रहा करते थे वहीं बगल की कोठी नर्गिस की मां जद्दन बाई की थीं. मदन मोहन रोज शाम को उनके घर जद्दन बाई का गाना सुनने जाते थे. संगीत की समझ मदन मोहन को वहां से ही मिली. इसी दौरान उनकी दोस्ती नर्गिस से भी गहरी हो गई थी. 

फौज से पहुंचे ऑल इंडिया रेडियो:
मदन मोहन के पिता चाहते थे कि वो फौज में भर्ती हो जाए, और उन्होंने अपने पिता की इस इच्छा को पूरा भी किया लेकिन दो साल यहां काम करने के बाद वो फिर लखनऊ आ गए जहां पर उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में काम करना शुरू कर दिया. वहां पर उनकी मुलाकात बेगम अख्तर, विलायत खान, तलत महमूद जैसे शख्सियतों से हुई. इस दौरान मदन मोहन के मन में संगीतकार बनने की चाह आई. जब पहली बार उनके पिता ने उनका दिया संगीत सुना तो वो भावुक हो गए. उन्होंने अपने बेटे मदन मोहन से कहा- मुझे नहीं पता था तुम इतने होनहार हो. मुझे लगा था तुम मुझे बेवकूफ बनाने के लिए फिल्मों में जाने की बात करते थे.

अभिनेता बनने की थी ख्वाहिश: 
मदन मोहन शक्ल से एकदम एक हीरो की तरह दिखते थे. लंबे, गोरे, खूबसूरत तराशा हुआ चेहरा, बलिष्ठ शरीर और बुलंद आवाज. जाहिर है अपने अच्छे दोस्त राज कपूर की तरह वो भी एक अभिनेता बनना चाहते थे, पर उनके पिता ने इसके लिए सख्त मना कर दिया. जबकि मदन मोहन के पिता उन दिनों मुंबई के चर्चित बॉम्बे टॉकीज, जिसमें नामी-गिरामी स्टार्स काम करते थे, में जनरल मैनेजर थे. वे चाहते तो अपने बेटे को तगड़ा ब्रेक दिला सकते थे पर पिता ने यह करने के बजाय मदन मोहन को फौज में भेज दिया.

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