क्या धर्म के आधार पर होता है बॉलीवुड में भेदभाव, नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बता दिया सारा सच
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क्या धर्म के आधार पर होता है बॉलीवुड में भेदभाव, नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बता दिया सारा सच

Nawazuddin Siddiqui: नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अपने हालिया इंटरव्यू में बताया कि क्या बॉलीवुड में उनके साथ कभी भी धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं किया गया है? बॉलीवुड में धर्म के आधार पर भेदभाव के सवाल पर सारा सच खोल कर रख दिया है.

धर्म के आधार पर भेदभाव के सवाल पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी का जवाब

Nawazuddin Siddiqui on Discrimination: अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी का कहना है कि बॉलीवुड धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता है. अपने हालिया इंटरव्यू में नवाजुद्दीन ने फिल्म इंडस्ट्री की तारीफ की और कहा कि समाज को बॉलीवुड से सीखना चाहिए कि कैसे सभी धर्मों का सम्मान किया जाना चाहिए. नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अनुपम खेर का उदाहरण दिया और कहा कि दिग्गज अभिनेता नसीरुद्दीन शाह का बहुत सम्मान करते हैं.

नवाजुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) ने अनप्लग्ड पॉडकास्ट में कहा, ''बाकी समाज को बॉलीवुड से सीखना चाहिए... क्या आप जानते हैं कि अभिनय के मामले में अनुपम खेर (Anupam Kher) नसीरुद्दीन शाह (Naseeruddin Shah) का बहुत सम्मान करते हैं?''

'जो प्यार और सम्मान मुझे यहां मिलता है, वह कहीं और नहीं मिलता'
अभिनेता ने आगे कहा, ''मैं इस इंडस्ट्री का हिस्सा हूं. मेरा देश बहुत खूबसूरत है. जो प्यार और सम्मान मुझे यहां मिलता है, वह कहीं और नहीं मिलता. मुझे आम लोगों के बीच आकर बहुत खुशी हो रही है, क्योंकि वे मुझे जो प्यार देते हैं, चाहे वे किसी भी पृष्ठभूमि के क्यों न हों. आप इसे दुनिया में कहीं और नहीं देखेंगे. मैंने हमारे देश के अंदरूनी हिस्सों की यात्रा की है; मुझे नहीं पता कि वे समाचारों में क्या दिखाते हैं, लेकिन हमारे देश के लोग सुंदर हैं, वे मासूम हैं.''

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'असहमति भी है, लेकिन इससे रिश्तों में दरार नहीं आती'
हाल ही में अनुभवी एक्ट्रेस रत्ना पाठक शाह (Ratna Pathak Shah) ने भी लल्लनटॉप के इंटरव्यू में कहा था कि अलग राजनीतिक विचारधारा होने के बावजूद भी वह और उनके पति नसीरुद्दीन शाह अनुपम खेर और परेश रावल के साथ काम करना जारी रखेंगे. उन्होंने कहा था, ''हम सभी ऐसे समय में बड़े हुए हैं, जब दो लोग दोस्त तो हो सकते हैं, लेकिन उनकी विचारधाराएं भी अलग-अलग हो सकती हैं. आप अपनी जगह सही हैं, मैं अपनी जगह सही हूं. संवाद, चर्चा और यहां तक ​​कि असहमति भी है, लेकिन इससे रिश्तों में दरार नहीं आती है. यह एक हालिया चलन है. यह न तो हमारे देश की संस्कृति है और न ही मैंने पहले कभी ऐसा देखा है. मेरा जन्म ऐसे घर में हुआ है जहां मेरे पिता एक आरएसएस परिवार से थे और मेरी मां एक कम्युनिस्ट परिवार से थीं. हमारे घर में हमेशा वाद-विवाद होता रहता था, फिर भी हम सब एक साथ खुशी से रहते थे. मैं जानता हूं कि किसी राय से असहमति का मतलब किसी व्यक्ति को नापसंद करना नहीं है.''

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'भारत की पहले कोई धार्मिक पहचान नहीं थी'
बता दें कि इसी साल अप्रैल में विद्या बालन (Vidya Balan) ने भी कहा था कि भारत की पहले कोई धार्मिक पहचान नहीं थी. उन्होंने कहा था कि आज देश अधिक पोलराइज्ड हो गया है और लोग सोशल मीडिया की बदौलत पहचान की भावना की तलाश में हैं. उन्होंने अनफिल्टर्ड बाय समधिश में कहा था, ''मैं बस यह महसूस करती हूं कि हम ज्यादा पोलराइज्ड हैं. मुझे लगता है, एक राष्ट्र के रूप में, हमारी पहले कोई धार्मिक पहचान नहीं थी, लेकिन अब, मुझे नहीं पता कि ऐसा क्यों है... यह सिर्फ राजनीति नहीं है, यह सोशल मीडिया भी है. क्योंकि हम सभी इस दुनिया में खोए हुए हैं और एक ऐसी पहचान की तलाश में हैं, जो हमारे पास मूल रूप से नहीं है. कई बार मैं देखती हूं कि लोग उन चीजों पर भी राय रखते हैं, जिनके बारे में वे कुछ नहीं जानते. वह कैसे संभव है?''

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