OMG 2 Akshay Kumar: अक्षय कुमार और पंकज त्रिपाठी की फिल्म ओह माई गॉड 2 सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. पूरे 27 कट के बाद भी कहानी में दम, एक्टिंग शानदार और कमाल के डायलॉग्स फिल्म को काफी दिलचस्प बनाते हैं. यहां पढ़ सकते हैं OMG 2 का पूरा रिव्यू...
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OMG 2 Review in Hindi: पूरे 27 कट लगाने को बोला था सेंसर बोर्ड ने फिर भी आप किसी भी बात को इस मूवी में मिस नहीं करेंगे. मूवी की रिलीज से पहले विरोध करने वाले मूवी देखकर सोचेंगे जरूर कि विरोध करें या छोड़ दें, हालांकि सोचेंगे वो समर्थन करने पर भी. इस मूवी की यही खासियत है, एक ऐसा वर्जित विषय उठाया गया है, वो भी सारे मसालों के साथ, महाकाल के आशीर्वाद और अवतार के साथ कि बड़ा साहस चाहिए था कि इस विषय पर मूवी बनाएं और महादेव, महाकाल मंदिर, उनके पुजारी सबको शामिल करने की भी हिम्मत दिखाएं. ऐसे में हिचकते हिचकते मूवी देखेंगे जरूर लेकिन सीट से उठ नहीं पाएंगे और कई बार ठहाकों के साथ तालियां भी बजाएंगे.
कहानी है एक ऐसे किशोर लड़के विवेक (आयुष) की जिसको उसके साथ के लड़के उसके निजी अंगों को लेकर गलत जानकारी देकर हीनभावना से भर देते है, नतीजा ये कि वो जापानी तेल से लेकर वियाग्रा तक सब आजमाता है और उसका स्कूल के बाथरूम का एक निजी वीडियो उन लड़कों के द्वारा शूट करके वायरल कर दिया जाता है. विवेक का पिता कांतिशरण मुदगल (पंकज त्रिपाठी) महाकाल का परम भक्त है, उसकी पुकार पर महादेव नंदी (अक्षय कुमार) को उसकी सहायता के लिए संन्यासी के वेश में भेजते हैं, जो बेटे को आत्महत्या करने से बचाते हैं और केस लड़ने का सुझाव देते हैं ताकि जिस स्कूल ने बेटे को निकाला, मेडिकल स्टोर वाला, जापानी तेल बेचने वाला, डॉक्टर आदि उससे माफी मांगे.
बेटे के लिए कोर्ट की लड़ाई लड़ता पिता
बेटे के स्वाभिमान की खातिर कांतिलाल कोर्ट जाते हैं, सामने तेजतर्रार वकील कामिनी (यामी गौतम) होती हैं. तमाम मुश्किलें और प्रलोभन कांतिलाल के रास्ते में आते हैं, वो डिगते नहीं, रास्ता महाकाल दिखाते हैं. कोर्ट का एक एक सीन कायदे से लिखा गया है, एक एक हिंदू धर्म ग्रंथ जहां काम या यौन शिक्षा की बात है, उन सबकी चर्चा होती है. गवाहों से अश्लील लगने वाले सवाल होते हैं. कोर्ट के सींस में तमाम ठहाके लगाने वाले मौके भी आते हैं.
ऐसे में डायलॉग्स और स्क्रीन प्ले के स्तर पर फिल्म बांधने वाली है, आप हिल नहीं सकते. हालांकि लोग हम उम्र के साथियों के साथ ही देखना पसंद करेंगे. आप देखें या आपके बच्चे या माता पिता. भोले के भक्तों को गाने पसंद आएंगे. ऊंची ऊंची वादी और हर हर महादेव तो पहले से लोग गुनगुनाने लगे है. हालांकि अब ये बहस हो सकती है कि हम उम्र लोगों में हर कोई यौन शिक्षा की वकालत करेगा, लेकिन कैसे दी जाए, क्या उसके साइड इफैक्ट्स होंगे, ना देने से तो हो ही रहे हैं, ये सब मूवी आने के बाद भी बहस का विषय ही होना है.
आपत्ति कहां हो सकती है?
पहली सीन ही नागा बाबाओं के जुलूस से होती है, उज्जैन शब्द पूरी मूवी से हटा दिया गया है, लेकिन महाकाल की नगरी, महाकाल का मंदिर, भस्म आरती, वहां के इलाके आदि तो सब हैं ही, लोग तो समझ ही जाने हैं. ऐसे में 80 फीसदी मूवी में महाकाल मंदिर के महंत को विलेन की तरह दिखाना और बाकी 20 फीसदी में उनके हृदय परिवर्तन के बाद उनके साले को विलेन की तरह चित्रित करना, महाकाल के पुजारियों को नागवार भी गुजर सकता है. इसी तरह शैव में तमाम मत हैं, उनमें से कुछ य़े भी मानते हैं शिव लिंग की जो अवधारणा है उसे लिंग से जोड़कर देखना ठीक नहीं. लेकिन मूवी के एक डायलॉग में उसका वैसे ही जिक्र किया गया है, सो उस पर कल को कोई आपत्ति दर्ज करवा दे, ये हो भी सकता है.
हालांकि बाकी मूवी में कोशिश यही की गई है कि शिव की महिमा में कोई कमी ना आए, इसको ऐसे भी देखा जा सकता है कि नई पीढ़ी की समस्याओं का हल भी महादेव के पास है, उनके बीच भी इस मूवी के साथ साथ महाकाल का क्रेज बढ़ना तय मानिए.
अगर अभिनय की बात करें तो पंकज त्रिपाठी और उनके बेटे विवेक के रोल में आयुष, सब पर भारी पड़े हैं. पूरी मूवी उनके इर्द गिर्द घूमती है. दो और किरदार हैं जज नागर के रोल में पवन मल्होत्रा और वकील कामिनी के रोल में यामी गौतम. दोनों ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी. 72 हूरें के बाद पवन मल्होत्रा को फिर काफी स्क्रीन स्पेस मिला और उन्होंने दर्शकों को निराश भी नहीं किया, यामी भी लगातार पिछली कुछ फिल्मों से जिन तेवरों में आ रही हैं, उसी क़ड़ी में इस मूवी में भी दिखीं.
कहां पड़ती है फिल्म कमजोर?
गोविंद नामदेव और ब्रजेन्द्र काला छोटे लेकिन असरदार रोल में हैं. पत्रकार पराग छापेकर ने छोटे रोल में भी सहजता दिखाई है. अक्षय कुमार तो इस मूवी के जादूगर हैं, जहां मूवी कमजोर पड़ती दिखती है, वो मुस्कराते हुए मस्ती में आ धमकते हैं और फिल्म फिर से पटरी पर आ जाती है. जो रोल बर्बाद हुआ नजर आता है, वो आता है अरुण गोविल का. उनका विलेन जैसा रोल भी व्यर्थ ही चला गया, बिना असर छोड़े हुए.
ऐसे में इन सभी के अलावा मूवी के लिए किसी को श्रेय जाना चाहिए तो वो हैं अमित राय, अमित ने ना केवल मूवी की ये साहसिक कहानी लिखी है, बल्कि एक बोर विषय को बांधकर रखने वाले भी बनाया और विवादों में लाकर फिल्म को चर्चा में लाना भी एक कला है. अमित राय इससे पहले परेश रावल के साथ ‘रोड टू संगम’ बनाकर चर्चा में आ चुके हैं.