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Happy B'day: आशुतोष राणा के नाम के पीछे छुपी है एक दिलचस्प कहानी, जानें

आशुतोष राणा का आज जन्मदिन है. वे 53 साल के हो गए हैं. इस मौके पर आशुतोष से जुड़ी कुछ खास बाते जानते हैं. 

आशुतोष राणा का असली नाम

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आशुतोष राणा का असली नाम

आशुतोष राणा के फैन जब उनके बारे में गूगल पर सर्च करते हैं, तो ज्यादातर की पहली मंजिल होती है विकीपीडिया पर उनका प्रोफाइल. लेकिन वहां जाकर हर कोई चौंक जाता है, जब उनका नाम आशुतोष राणा की जगह आशुतोष नीखरा लिखा हुआ मिलता है. आखिरा माजरा क्या है? आपको आज समझाते हैं- दरअसल ‘राणा’ उनका या उनके परिवार का सरनेम नहीं है, सरनेम तो ‘नीखरा’ ही है. फिर ‘राणा’ कैसे हुआ, इसके पीछे की कहानी उनके पिता के नाम से जुड़ी हुई है. उनके पिता का नाम है- रामनारायण नीखरा, उनके नाम और सरनेम दोनों का पहला पहला अक्षर उठाइए, यानी राम का ‘रा’ और नारायण का ‘ना’, दोनों को जोड़कर उन्होंने ‘राणा’ बना डाला. यानी नीखरा जी राणा जी बन गए और पापा का आर्शीवाद भी साथ चल रहा है. आपके लिए ये भी जानना दिलचस्प होगा कि उनके नाम ‘आशुतोष’ की भी दिलचस्प कहानी है. 

ऐसे मिला आशुतोष राणा को उनका नाम

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ऐसे मिला आशुतोष राणा को उनका नाम

एक बार सावन के महीने में शिवजी की पूजा हो रही थी, उनकी मां शिवजी के 1008 नामों के ऊपर बेलपत्र चढ़ा रही थीं. उनके नामों के मंत्र उच्चारित किए जा रहे थे, तभी पंडितजी ने एक लाइन बोली, ‘ओम आशुतोषाय नम:, आंखें बंद किए हुए बालक ने फौरन आंखें खोल दीं और बोले- मम्मी ये नाम कैसा है, मैं इसे अपना नाम रखना चाहता हूं. सभी राजी हो गए और बन गए आशुतोष राणा. आशुतोष का 3 साल की उम्र में एक और नाम उनके बड़े भाई ने रखा था, सेठ सुनहरी लाल. हालांकि वो मजाक में था. उनके घर में बच्चों को कपड़े नहीं पहनाए जाते थे, ज्यादातर सोने की ज्वैलरी उनके शरीर पर रहती थी. धूप में लेटे रहने से और ज्वैलरी पहनने से उनका रंग भी बदल गया था. ऐसे में उनको देखकर एक दिन उनके भाई ने कहा था- कि आज से इनका नाम होगा सेठ सुनहरी लाल.

आशुतोष को पसंद आई थी एक लड़की

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 आशुतोष को पसंद आई थी एक लड़की

ये वाकया तब का है, जब वो छठी क्लास में पढ़ते थे. हमेशा पीछे की बेंच पर बैठते थे. एक लड़की आशुतोष को पसंद आ गई थी. आशुतोष ने उसे प्रपोज करने का सोचा तो उस जमाने में जब न एसएमएस हुआ करते थे और न ही व्हाट्सएप या मैसेंजर, केवल प्रेम पत्र या कोई दोस्त ही अपने दिल की बात को पहुंचाने का साधन हुआ करते थे. आशुतोष ने प्रेम पत्र का रास्ता अपनाया, दोस्त की मदद लेने में खतरा था. लेकिन आशुतोष ने एक गलती कर दी, चुपचाप अकेले में उस लड़की को प्रेम पत्र देने के बजाय उन्होंने क्लास में बैठे बैठे ही उसकी बेंच की तरफ गोली बनाकर फेंका. चलती क्लास में ये मुश्किल काम था, लेकिन सबकी नजरें या तो ब्लैक बोर्ड पर थीं या अपनी किताबों पर, सो किसी ने देखा तो नहीं लेकिन निशाना गलत हो गया. वो जिस लड़की को पहुंचना था, उससे एक बेंच पीछे वाली लड़की को जाकर लगा. उसने उसे उठाया, पढ़ा और फिर आशुतोष की तरफ देखा. 

इशारों-इशारों में हुई बात

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 इशारों-इशारों में हुई बात

आशुतोष से इशारों में पूछा कि क्या ये मेरे लिए है? आशुतोष ने उसे इशारों में समझाया कि नहीं आपके लिए नहीं, अगली वाली के लिए है. वो लड़की उठी और फौरन वो लव लैटर टीचर को दे दिया. आशुतोष की कुछ समझ आता तब तक उनके मैथ और इंगलिश पढ़ाने वाले वो टीचर वो लव लैटर पढ़ चुके थे. उन्होंने आशुतोष को खड़ा कर लिया, फिर पूछा- क्या आपको पता है कि ‘डार्लिंग’ शब्द का मतलब क्या होता है. आशुतोष को लगा कि अंग्रेजी के टीचर हैं, सवाल पूछा रहे हैं, तो बता दिया कि प्रिय या प्यारा. उसके बाद उस टीचर ने 20 मिनट तक जो आशुतोष की थप्पड़ों से जमकर पिटाई की. उनके सर से इश्क का भूत उतर गया, जिंदगी में फिर कभी किसी के लिए लव लैटर नहीं लिखा और उस टीचर की वजह से मैथ और अंग्रेजी दोनों से नफरत भी हो गई.

पिता के व्यक्तित्व से प्रभावित थे आशुतोष

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पिता के व्यक्तित्व से प्रभावित थे आशुतोष

आशुतोष अपने पिता के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थे, जो आत्मविश्वास और सख्ती उनके पिताजी के अंदर थी, उससे वो काफी प्रभावित रहते थे. उनके पिताजी ने उनसे बोल दिया था कि घर में कभी पिटकर मत आना, पीटकर ही घुसना. उन्हें हारे हुए सिपाही पसंद नहीं थे. इससे आशुतोष को अपनी निजी समस्याओं का समाधान खुद ही तलाशने का जज्बा पैदा हुआ. उसी तरह उनकी मां सस्कारों को लेकर काफी सख्त थी. वो शिव भक्त थीं. घर में नियम था, जितनी बार घर में घुसें या बाहर जाएं, बड़ों के पैर ही छूना है. 

क्राइस्ट चर्च स्कूल में की पढ़ाई

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क्राइस्ट चर्च स्कूल में की पढ़ाई

एक बार उन्होंने आशुतोष समेत 3 बेटों को जबलपुर के क्राइस्ट चर्च स्कूल में एडमीशन करवा दिया. वहां हॉस्टल में तीनों रहने लगे. जब एक बार संडे को उनके माता पिता उनसे मिलने पहुंचे तो विजिटिंग रूम में तीनों भाई टाई सूट पहनकर उनसे मिलने पहुंचे और बोला गुडमॉर्निंग लेकिन किसी ने पैर नहीं छुए. तो मां पिताजी दोनों ही बेहद नाराज हुए, बोले फौरन घर वापस चलो तुम लोग. तुम्हें यहां कुछ नया सीखने भेजा था, पुराना भूलने नहीं और पुराना तुम्हें इसलिए सिखाया गया था क्योंकि वो सैकड़ों सालों का परखा हुआ था, तुम तो पुराना भूलते जा रहे हो. 

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