विशाल श्रीवास्तव की शॉर्ट फिल्म 'वजूद' भी समाज के एक ऐसे वर्ग की भावनाओं और एहसास को दिखाने में सफल हुई है जिन्हें लोग अक्सर अपने समाज से बाहर रखते हैं.
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नई दिल्ली: आज की तारीख कई ऐसी फिल्में बनती हैं जो समाज का वास्तविक रूप लोगों के सामने लेकर आती हैं लेकिन समाज के कई पहलू ऐसे भी हैं जिन पर बहुत ही कम फिल्में बनी हैं.
विशाल श्रीवास्तव की शॉर्ट फिल्म 'वजूद' भी समाज के एक ऐसे वर्ग की भावनाओं और एहसास को दिखाने में सफल हुई है जिन्हें लोग अक्सर अपने समाज से बाहर रखते हैं. वजूद एक युवा किन्नर की कहानी है जिसे एक कारण मिलता है यह महसूस करने का कोई उसे उसके रूप में भी पहचान सकता है.
इस शॉर्ट फिल्म की कहानी एक किन्नर की है जो एक ऑटो रिक्शा ड्राइवर को हर दिन दूर से देखती है. उससे प्यार करती है इसलिए हर दिन उसका इंतजार करती है. जब हिजड़ा समुदाय की ही एक महिला को इस बात का पता चलता है तो उसे चेतावनी देती है कि वो किन्नर है और वो उस समाज का हिस्सा नहीं है.
इस बात से वो सोच में पड़ जाती है कि क्या कभी ये समाज उसको अपना पाएगा या कभी उससे भी कोई प्यार करेगा. लेकिन इसका जवाब उसे बहुत ही खूबसूरती से मिलता है. विशाल श्रीवास्तव की इस फिल्म की कहानी के साथ-साथ फिल्म के कई सीन को बेहद खूबसूरती से फिल्माया गया है. शॉर्ट फिल्म के अंत में गाना 'निर्मोहिया' भी आप लंबे समय तक गुनगुनाते रहेंगे.
फिल्म के निर्देशक विशाल श्रीवास्तव ने इस फिल्म को बनाया है. आईटी कंपनी में काम करने के दौरान उन्होंने 'शर्मिंदा' बनाया था जिसे भारत के कई फिल्म फेस्टिवल में सराहा गया था. वजूद को भी कई फिल्म फेस्टिवल में सराहा जा चुका है.