Dobaaraa Review: यह एक बार ही बहुत है, नहीं चला तापसी और अनुराग का जादू
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Dobaaraa Review: यह एक बार ही बहुत है, नहीं चला तापसी और अनुराग का जादू

Taapsee Pannu New Film 2022: पिछली फिल्म शाबाश मिठू की तरह तापसी की नई फिल्म दोबारा भी चुनिंदा लोगों के लिए है. इस साइंस फिक्शन में थ्रिल, सस्पेंस और टाइम ट्रेवल है. समय हो और जटिल फिल्म का शौक हो, तो इसे देख सकते हैं.

Dobaaraa Review: यह एक बार ही बहुत है, नहीं चला तापसी और अनुराग का जादू

Anurag Kashyap New Film: सबसे पहली बात तो यही कि जिन्हें लगता है हिंदी में नए ढंग का सिनेमा नहीं बनता, निर्माता-निर्देशक प्रयोग करने के जोखिम नहीं उठाते, उन्हें फिल्म दोबारा देखनी चाहिए. लेकिन इसकी सबसे नेगेटिव बात यह है कि यह हिंदी की मौलिक फिल्म नहीं, बल्कि रीमेक है. 2018 में आई स्पेनिश फिल्म, मिराज का रीमेक. ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर मिराज उपलब्ध है और वह भी हिंदी में. इसलिए आजकल लोग उसे ही देख रहे हैं. तय है कि मामला उधार का है. फिर जब ओरीजनल ही हिंदी में मौजूद है, तो उधार के रीमेक के लिए सिनेमाघर तक जाने की कोई ठोस वजह तो होना चाहिए. सच यही है कि निर्माता-निर्देशक अभी तक हिंदी में अच्छा कंटेंट ढूंढने और हिंदी के राइटरों पर भरोसा करने में नाकाम हैं. भले ही दोबारा की कहानी पूना में है, लेकिन उसका परिवेश विदेशी फिल्म की नकल ही है. आश्चर्य इस बात का भी है कि अपने सिनेमा में हमेशा मौलकता का दावा करने वाले निर्देशक अनुराग कश्यप ने रीमेक बनाई है और इसमें उनकी कोई छाप नजर नहीं आती. इस रीमेक कोई भी बॉलीवुड डायरेक्टर बनाता, तो ऐसी ही बनती.

दिमाग का दही और दही पर टैक्स
अनुराग कश्यप ने दोबारा की रिलीज से पहले कहा था कि आजकल फिल्में देखने लोग इसलिए नहीं जा रहे क्योंकि दूध-दही पर भी जीएसटी लग रहा और लोगों के पैसे टैक्स में जा रहे हैं. अतः अगर आप दोबारा देखने जा रहे हैं तो याद रखें कि यह दिमाग का दही भी कर सकती है और दही पर टैक्स के बोझ का एहसास आपको अपने आप होगा. असल में यह फिल्म साइंस थ्रिलर फिक्शन है और सिर्फ उन्हें इसमें मजा आएगा, जिन्हें जटिल और बौद्धिक फिल्में देखने में बड़प्पन महसूस होता है. जिन्हें फिल्मों में पहेलियों की जुगाली अच्छी लगती है. दोबारा की अच्छी बात यह है कि इसमें जटिलता के साथ रफ्तार है, इसलिए बोर नहीं करती. मगर इतना जरूर है कि अगर देखने वाले का ध्यान जरा भी भटका, तो वह फिल्म की तीन अलग-अलग टाइम लाइन में से अचानक एक को छोड़ कर दूसरी में पहुंच सकता है. तब उसे मुश्किल होगी कि क्या देखते-देखते क्या देखने लगा है.

कहानी में टाइम ट्रैवल
फिल्म की कहानी से पहले यह समझ लें कि टाइम ट्रेवल इसका मुख्य आधार है. यानी कलाकार कभी अपने समय से 25 साल पीछे पहुंच जाते हैं तो कभी वहां से कई बरस आगे. ऐसा नहीं कि यह आगे-पीछे एक ही बार होता है. यह आगे-पीछे, आगे-पीछे बार-बार फिल्म के अंत तक चलता रहता है. अब देखने वाले पर है कि वह हवा में झूलती रस्सी पर कितने संतुलन के साथ कहानी के संग बढ़ सकता है. कहानी अंतरा अवस्थी (तापसी पन्नू) की है. जो नर्स है. वह पूना में पति और बच्ची के साथ एक नए घर में शिफ्ट होती है. उस घर में 25 साल पहले एक परिवार था. 25 साल पहले ही उस परिवार के एक नन्हें लड़के ने 72 घंटों तक रहने वाले खास तरह के चुंबकीय प्रभावों वाले तूफान की कड़कड़ाती रात में सामने के मकान में एक मर्डर होते देखा. मर्डर देखने के बाद वहां से भागते हुए वह लड़का हादसे में मारा जाता है. वैसे ही 72 घंटों के खास तरह के चुंबकीय प्रभावों वाली तूफानी और कड़कड़ाती रात फिर आती है और उस घर में रखे पुरानी टीवी में अंतरा को वह मर चुका लड़का दिखने लगता है. अब वह लड़का अंतरा से बातचीत करता है. यहीं से सारा थ्रिल और टाइम ट्रेवल शुरू होता है.

तापसी जैसी पहले थीं
निश्चित ही कहानी अलग तरह की है, लेकिन जरूरी है कि देखने वाला अपना दिमाग खर्च करने को राजी हो. यहां तापसी के अभिनय में पुराना आकर्षण नहीं है और कोई नयापन या धार गायब है. पिछली कुछ फिल्मों में वह एक-सी दिखी हैं और यहां भी वही स्थिति है. तमिल-तेलुगु में गेम ओवर, हिंदी में लूप लपेटा उनकी ऐसी ही फिल्में थीं, जिनमें वह किसी प्रताड़ित किरदार में ही नजर आईं. ऐसे में उनकी हर फिल्म देखने वाले के लिए यह टॉर्चर की स्थिति हो जाती है. दोबारा देखने का कारण अनुराग कश्यप हो सकते थे, लेकिन वह बासी और उधार कहानी लाए हैं. निश्चित ही यह कहानी ऐसी नहीं है, जिस पर उनकी छाप हो. अब सिर्फ एक ही वजह यह फिल्म देखने की है कि दर्शक को जटिल टाइम ट्रैवल और साइंस फिक्शन पसंद हों. सस्पेंस उसे खींचता हो. लेकिन इन बातों से जूझने के लिए उसके पास दिमाग भी हो.

कैमरा वर्क और बैकग्राउंड म्यूजिक
दोबारा को खूबसूरती से शूट किया गया है और इसका बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है. वीएफएक्स बढ़िया है, लेकिन टाइम ट्रैवल की लंबी दूरी के बावजूद पर्दे के माहौल में कोई खास फर्क नजर नहीं आता. पावैल गुलाटी, राहुल भट्ट और सास्वत चटर्जी ने अपनी भूमिकाएं अच्छे से निभाई हैं. खास तौर पर राहुल भट्ट. वह पर्दे पर कम नजर आते हैं, लेकिन जब भी आते हैं अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं.

निर्देशकः अनुराग कश्यप
सितारेः तापसी पन्नू, पावैल गुलाटी, राहुल भट्ट, सास्वत चटर्जी
रेटिंग **1/2

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