बहनों और भाइयों.. आपका सुर साथी विदा ले रहा है, शुक्रिया अमीन सायानी साहब
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बहनों और भाइयों.. आपका सुर साथी विदा ले रहा है, शुक्रिया अमीन सायानी साहब

Ameen Sayani: आज की पीढ़ी के लिए अमीन सायानी का नाम चौंकाने वाला हो सकता है लेकिन उनकी खनकती आवाज अब भी गाहे बेगाहे कानों में पड़ जाती थी. पचास साठ सत्तर अस्सी और यहां तक कि नब्बे के दशक में रेडियो के शौकीन हिंदी सिने प्रेमियों के लिए अमीन सायानी की एक आवाज ही काफी है.

बहनों और भाइयों.. आपका सुर साथी विदा ले रहा है, शुक्रिया अमीन सायानी साहब

बहनों और भाइयों नमस्ते, मैं आपका सुर-साथी अमीन सायानी बोल रहा हूं...

यही वो लाइनें हैं जिसने रेडियो की दुनिया में दशकों तक क्रांति की मशाल जलाए रखी. फिल्मी रेडियो और पुराने इंटरव्यू के शौकीन लोगों के अपने-अपने हिस्से में अमीन सायानी साहब अमर हैं. इस अलसुबह उनके 'आखिरी पायदान' पर पहुंचने की खबर आ गई है. करीब दसेक साल पहले मुखर्जी नगर के दिनों में मैं रेडियो सुना करता था, उनका एक कार्यक्रम 'संगीत के सितारों की महफिल' आता था. कुछ ही महीनों में ये कार्यक्रम खत्म हुआ तो ‘सितारों की जवानियां’ नाम से उनका एक और कार्यक्रम आने लगा. फिर क्या हुआ.. लगातार सुनते सुनते उनको मेल भेजने लगा. रिप्लाई भी आने लगा. यह रिप्लाई मेल पर ही उनके बेटे राजिल सायानी के माध्यम से आता था. फिर कुछ ही दिनों बाद अपना नंबर भेजा तो शाम को राजिल जी का फोन आ गया. 

बतौर श्रोता अमीन साहब से दो मिनट की बातचीत ताउम्र धरोहर बन गई. बातचीत में उन्होंने यह भी कह दिया कि मुंबई आओ तो जरूर मिलना. यह एक तरह से मुंबई आने का न्योता ही था. उनका एड्रेस रखा ही रह गया और मुंबई की ट्रिप बनती ही रह गई. फिर कुछ समय बाद गीतमाला के एक के बाद एक कार्यक्रम जब सुबह कारवां रेडियो पर घर में बजने लगे तो एक दिन माता जी कहने लगीं अरे ये तो अमीन साहब के कार्यक्रम हैं, कहां मिल गए. उनको भी किस्सा बताया. 

फिर बाद में अमीन सायानी के बारे में कितना पढ़ा, उन्होंने रेडियो की दुनिया को कितना दिया, सब धरोहर हैं.. एक से एक किस्से. हाल ही में यह भी पता चला था कि उनकी एक ऑटोबायोग्राफी भी रही है, जो उनके बेटे राजिल सायानी तैयार कर रहे हैं. लेकिन इसी बीच उनके जाने की खबर आ गई. अमीन सायानी को 91 साल की उम्र में हार्ट अटैक आया. रजिल ने ही इस बात की पुष्टि की है कि अमीन सयानी को मंगलवार शाम को हार्ट अटैक आया था, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया था. लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. 

खनकती आवाज.. रूमानी अंदाज..
आज की पीढ़ी के लिए अमीन सायानी का नाम चौंकाने वाला हो सकता है लेकिन उनकी खनकती आवाज अब भी गाहे बेगाहे कानों में पड़ जाती थी. पचास, साठ, सत्तर, अस्सी और यहां तक कि नब्बे के दशक में रेडियो सुनने वालों और हिंदी सिने प्रेमियों, जिन्होंने बॉलीवुड के पुराने इंटरव्यू सुने हों उनको अमीन सायानी का परिचय देने की जरूरत नहीं है. उन्होंने अपनी आवाज से दुनिया भर में धूम मचाई. 

1952 में गीतमाला से शुरू हुआ सफर:
अमीन सायानी का रेडियो सफर 1952 में बिनाका गीतमाला से शुरू हुआ था. रेडियो सीलोन पर प्रसारित होने वाला गीतमाला कार्यक्रम में अमीन सायानी के बोलने के अंदाज ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था. 1956 आते-आते बिनाका गीतमाला ने फिल्म और संगीत की दुनिया में तहलका मचाना शुरू कर दिया था. सभी बड़े समाचार पत्रों में अमीन सायानी और बिनाका गीतमाला की चर्चा होने लगी थी.

बहनों और भाइयों...
चाय और पान की दुकानों में रेडियो पर जब बिनाका गीतमाला चलता था तो उसे सुनने के लिए वहां भीड़ लग जाती थी. दुकान वाले अमीन सायानी को धन्यवाद-पत्र भेजते कि जिस दिन गीतमाला आता है, उस दिन हमारी बिक्री दोगुनी हो जाती है. अमीन सायानी अपने खास अंदाज में ‘बहनों और भाइयों’ कहने की वजह से घर- घर में पहचाने जा चुके थे. आज के दौर में कई लोग बहनों-भाइयों या फिर भाइयों बहनों का इस्तेमाल करते हैं लेकिन वे अमीन सायानी साहब ही थे जिन्होंने बहनों-भाइयों के ट्रेडमार्क संबोधन को जन-जन की जुबान पर ला दिया था.

गीतमाला प्रोग्राम के लिए श्रोताओं द्वारा जितनी चिट्ठी अमीन सायानी को लिखी गई शायद ही किसी और प्रोग्राम या किसी कलाकार को इतनी चिट्ठियां लिखी गईं हों. खुद अमीन सायानी बाद के दिनों में कहते रहे कि गीतमाला हिट होने की खासियत यह थी कि उस कार्यक्रम में उस समय के हिट गाने तो बजते ही थे, साथ ही साथ उस दौर के स्टार अभिनेताओं-अभिनेत्रियों, गायक-गायिकाओं और संगीत कलाकारों के इंटरव्यू भी अमीन सायानी लेकर आते थे. फिर साल के अंत में अपने प्रोग्राम में उस साल के सबसे हिट गाने का भी ऐलान किया जाता था.

गीतमाला के बारे में एक और बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह थी कि जब फिल्मफेयर पुरस्कारों की स्थापना हुई तो कई वर्षों तक इसमें सर्वश्रेष्ठ गायक एवं गायिका की श्रेणी ही नहीं थी. सिर्फ संगीतकार को ही इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाता था. ऐसी स्थिति में गायक-गायिकाओं को नाम व शोहरत दिलाने में बिनाका गीतमाला की भूमिका जबरदस्त रही. हालाकि बाद में लता मंगेशकर के प्रयासों से फिल्मफेयर पुरस्कार की श्रेणी में गायकों को भी शामिल किया गया.

1952 से शुरू हुआ फिल्मी गीतों का साप्ताहिक कार्यक्रम रेडियो सीलोन पर लगातार 1983 तक चला. फिर 1983 से 1989 तक यह कार्यक्रम विविध भारती पर ‘सिबाका गीतमाला’ के नाम से प्रसारित हुआ. कुछ समय के लिए यह बंद भी था. फिर 2003 तक ‘कोलगेट सिबाका गीतमाला’ के नाम से प्रसारित हुआ. 30 मिनट चलने वाला यह प्रोग्राम कई दशकों तक छाया रहा.

गीतमाला के अलावा अमीन सयानी ने और भी कई कार्यक्रम बनाए. उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय रेडियो शोज भी प्रस्तुत किए जिनमें म्यूजिक फॉर द मिलियन, मिनी इंसर्शन्स ऑफ फिल्मस्टार इंटरव्यूज और गीतमाला की यादें प्रमुख हैं. रेडियो सिलोन के बाद उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के विविध भारती में कई दशकों तक काम किया. शो प्रेजेंट करने का उनका तरीका और कलाकारों के इंटरव्यू लेने का तरीका, नाटक, संगीत के कार्यक्रम, फिल्मों के प्रमोशन और ट्रेलर पेश करने का अंदाज बिलकुल अलग और रोमांचक था.

अमिताभ बच्चन से जुड़ा एक बहुत ही दिलचस्प किस्सा अमीन सायानी से जुड़ा है. बॉलीवुड में किस्मत आजमाने से पहले अमिताभ बच्चन रेडियो एनाउंसर बनना चाहते थे और इसके लिए वह ऑल इंडिया रेडियो के मुंबई स्टूडियो में ऑडिशन देने भी गए थे. लेकिन वो बिना अपॉइंटमेंट के अमीन सयानी से मिलने चले आए थे, जिसकी वजह से वे अमीन सायानी से नहीं मिल पाए थे. हालाकि बाद में अमिताभ बच्चन के साथ अपने एक इंटरव्यू के बारे में बताते हुए अमीन सायानी बड़ी ही साफगोई से कहते हैं कि जो हुआ अच्छे के लिए हुआ.

स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा परिवार.. 
21 दिसंबर 1932 को मुंबई में ही जन्मे अमीन सायानी के परिवार के लोग स्वतंत्रता आंदोलन में जुड़े हुए थे. उनके बड़े भाई भी एक ब्रॉडकास्टर थे, जो कई सालों तक ऑल इंडिया रेडियो मुंबई से जुड़े हुए थे. उन्होंने अंग्रेजी में कई कार्यक्रम बनाए थे. उनकी मां कुलसुम सायानी समाजसेवी और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी थीं. उन्होंने गांधी जी के साथ कई मंच साझा किए थे. यहां तक कि बाद के दिनों में कुलसुम ने दुनिया भर में शिक्षा पर कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया, 1953 में कुलसुम सयानी ने यूनेस्को सम्मेलन में पेरिस में भी भाग लिया. 

गीतमाला के जरिए अमीन सायानी ने खूब सम्मान और नाम कमाया. उन्हें बहुत सारे अवार्ड्स भी मिले. साल 2009 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया. एक इंटरव्यू में अमीन सायानी ने कहा था कि, रेडियो आपको खुद से जोड़ने का दुनिया का सबसे अच्छा माध्यम है क्योंकि टीवी की तरह आपको हर समय इससे चिपके नहीं रहना पड़ता. आप इसे सुनते समय कुछ भी कर सकते हैं और साथ ही इसके मजे भी ले सकते हैं. चाहे गाने हो या बातचीत, श्रोता अपने दिमाग में इसे सुनकर एक इमेज बना लेते हैं. 

अब जबकि अमीन सायानी साहब रुख्सती ले चुके हैं. पीएम मोदी समेत देशभर के सेलेब्स उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं तो उन्हीं के द्वारा लिए गए एक पुराने इंटरव्यू में मीना कुमारी द्वारा पेश की गईं कुछ लाइनें याद आ रही हैं.. 

तेरे कदमों की आहट को ये दिल है हरदम 
हर इक आवाज पर इक थरथराहट होती है

जैसे जागी हुई आंखों में.. चुभे कांच के ख्वाब
रात इस तरह, दीवानों की बसर होती है.

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