Article 367 of Constitution: आर्टिकल 370 पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला तो दे दिया लेकिन सरकार को फटकार भी लगाई. जी हां, इसका फैसले पर असर तो नहीं हुआ लेकिन सरकार के लिए चेतावनी जरूर कही जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने कहा कि 370 खत्म करना सही था लेकिन इसके लिए आर्टिकल 367 का जो रूट अपनाया गया वो गलत था.
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Supreme Court Article 367: सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को निरस्त किए जाने के सरकार के फैसले को उचित माना है. इस फैसले से सरकार को बड़ी राहत मिली है लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार की एक खामी भी निकाली है. जी हां, कोर्ट ने सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि 367 के तहत आर्टिकल 370 खत्म करने का फैसला सही नहीं था. दरअसल, 5 अगस्त 2019 को जारी आदेश (CO 272 or Constitution (Application to Jammu and Kashmir) Order, 2019) में भारतीय संविधान के आर्टिकल 367 में सरकार ने नया प्रावधान जोड़ दिया था, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर की 'संविधान सभा' की व्याख्या जम्मू-कश्मीर की 'विधान सभा' के रूप में की गई थी. यानी कोर्ट ने केंद्र सरकार के तरीके पर सवाल उठाया है. SC ने आगे कहा कि संविधान की व्याख्या करने वाले आर्टिकल 367 का ऐसा इस्तेमाल संविधान में संशोधन के लिए नहीं किया जा सकता है. इस तरह से देखें तो सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के तरीके को गलत माना है लेकिन राष्ट्रपति के आदेश को सही और अधिकार के तहत माना है.
वो बैकडोर रूट था?
अगस्त में सुनवाई के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल किया था कि क्या आर्टिकल 367 रूट के जरिए आर्टिकल 370 में संशोधन किया जा सकता है? आज पांच जजों की संविधान पीठ में शामिल जस्टिस कौल ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि बैकडोर से संशोधन की अनुमति नहीं है. इससे पहले सीजेआई चंद्रचूड़ ने पीठ के फैसले को पढ़ते हुए कहा था कि अनुच्छेद 367 में संशोधन अधिकार से बाहर था क्योंकि यह आर्टिकल 370 को प्रभावी रूप से संशोधित करता है.
संविधान सभा vs विधान सभा
दरअसल, अगस्त में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने में संवैधानिक धोखाधड़ी की गई. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने तर्क रखा कि अपनाई गई प्रक्रिया में कोई खामी नहीं है. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, ‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते... साधन को साध्य के अनुरूप होना चाहिए.’ प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा था कि उन्हें यह बताना होगा कि अनुच्छेद 370 के खंड 2 में मौजूद ‘संविधान सभा’ शब्द को पांच अगस्त 2019 को ‘विधान सभा’ शब्द से कैसे बदल दिया गया. उसी दिन अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म किया गया था.
प्रधान न्यायाधीश ने मेहता से कहा, ‘आपको यह तर्क देना होगा कि यह एक संविधान सभा नहीं बल्कि अपने मूल रूप में एक विधान सभा थी. आपको यह जवाब देना होगा कि यह अनुच्छेद 370 के खंड 2 के साथ कैसे मेल खाएगा जो विशेष रूप से कहता है कि संविधान सभा का गठन संविधान बनाने के उद्देश्य से किया गया था.’ आज के फैसले से साफ है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के तर्क से सहमत नहीं हुआ.
पांच अगस्त 2019 को क्या हुआ था
आर्टिकल 370 को समाप्त करने के लिए सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया था. इस दिन नए सम्मिलित आर्टिकल 367(4)(डी) ने ‘राज्य की संविधान सभा’ की जगह ‘राज्य की विधान सभा’ कर अनुच्छेद 370(3) में संशोधन किया था.
हालांकि सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 370 खत्म करने के फैसले को सही माना. कोर्ट ने निर्देश दिया कि अगले साल 30 सितंबर तक विधानसभा चुनाव कराने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था और राष्ट्रपति के पास इसे रद्द करने की शक्ति है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के पास देश के अन्य राज्यों से अलग आंतरिक संप्रभुता नहीं है. उन्होंने कहा, ‘...भारतीय संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर (भी) लागू हो सकते हैं.’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘हम संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए संवैधानिक आदेश जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति के इस्तेमाल को वैध मानते हैं.’