SC Verdict On Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया है. क्या केंद्र सरकार अध्यादेश के जरिए SC के फैसले को पलट सकती है? पढ़िए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल का क्या कहना है.
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Electoral Bonds SC Judgement: सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों ने एकमत से चुनावी बॉन्ड योजना को 'असंवैधानिक' बताते हुए रद्द कर दिया. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) से फौरन चुनावी बॉन्ड की बिक्री रोकने को कहा गया है. SBI को 6 मार्च तक योजना से जुड़ी सारी जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी. मार्च के दूसरे हफ्ते में आयोग वह जानकारी सार्वजनिक करेगा. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच के फैसले को विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए 'बड़ा झटका' बताया है. 2017-18 में मोदी सरकार ने ही चुनावी बॉन्ड योजना शुरू की थी. SC के फैसले के बाद, यूथ कांग्रेस के नेता बीवी श्रीनिवास ने आशंका जताई कि 'सरकार अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट सकती है.' क्या सरकार के पास ऐसा करने की शक्ति है? दिल्ली में शक्तियों के बंटवारे के मुद्दे पर सरकार अध्यादेश ला चुकी है. सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल को लगता है कि सरकार इस मामले में वैसा नहीं करेगी.
'अध्यादेश से रद्द नहीं हो सकता यह फैसला'
सिब्बल ने चुनावी बॉन्ड मामले में याचिकाकर्ताओं की तरफ से SC में जिरह की अगुवाई की है. उन्हें पूरी योजना ही 'घोटाला' लगती है. सिब्बल का कहना है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को रद्द नहीं सकती. उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, "एक अध्यादेश किसी फैसले को रद्द नहीं कर सकता. कोई भी कानून किसी फैसले को रद्द नहीं कर सकता." सिब्बल ने कहा कि सरकार चाहे तो राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग का नया सिस्टम लाने के लिए अध्यादेश जारी कर सकती है.
केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) (CPI-M) व अन्य ने चुनौती दी थी. सिब्बल ने उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलीलें पेश कीं. सिब्बल समाजवादी पार्टी के समर्थन से राज्यसभा सदस्य भी हैं.
'विपक्ष ने तो बस योजना का इस्तेमाल किया'
सिब्बल ने कहा कि SC के फैसले के बाद कम से कम चुनावी बॉन्ड की जानकारी तो सामने आएगी. उन्होंने कहा, 'हम पहले ही साफ कर चुके हैं कि सभी राजनीतिक पार्टियों को कुछ बड़े उद्योगपति पैदा दे रहे थे.' सिब्बल ने कहा कि सबसे ज्यादा दिक्कत बीजेपी को होगी क्योंकि यह उनकी योजना है, विपक्ष की नहीं. सीनियर एडवोकेट ने कहा, 'वे (विपक्ष) तो योजना का इस्तेमाल कर रहे थे बस, जिसे अब असंवैधानिक करार दिया गया है. योजना की उत्पत्ति उनसे नहीं हुई.'
चुनावी बॉन्ड पर SC के फैसले को बड़ा मुद्दा बनाना चाहिए, विपक्ष को सिब्बल ने यही सलाह दी है. उन्होंने कहा, 'इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जाना चाहिए. यह विपक्ष के सभी राजनीतिक दलों के लिए एक साथ मिलकर इस आधार पर चुनाव लड़ने का एक बड़ा मौका है.'
दिल्ली के मामले पर अध्यादेश लाई थी सरकार
पिछले साल 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण पर फैसला सुनाया. कहा कि पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और लैंड को छोड़कर बाकी सभी सेवाओं पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार का कंट्रोल है. हफ्ते भर के भीतर, केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर SC के फैसले को पलट दिया. सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) अधिनियम, 1991 में कई बदलाव किए. अध्यादेश संसद से पारित हुआ और अगस्त 2023 में संशोधित अधिनियम पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हस्ताक्षर कर दिए. दिल्ली सरकार ने अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. अदालत ने जुलाई में मामले को संविधान बेंच के सामने भेजा. संविधान पीठ ने सुनवाई अभी तक शुरू नहीं की है.
चुनावी बॉन्ड क्या है? योजना कब शुरू की गई थी?
भारत में राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक तरीका चुनावी बॉन्ड भी था. केंद्र सरकार ने 2017-18 के बजट में चुनावी बॉन्ड योजना लाने की घोषणा की थी. वित्त मंत्रालय ने 2 जनवरी 2018 को एक गजट में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2018 को नोटिफाई किया. चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों की जानकारी गोपनीय रखी जाती थी. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखाओं से ही चुनावी बॉन्ड खरीदे जा सकते थे. KYC (नो योर कस्टमर) पूरा करने के बाद कोई भी भारतीय या भारत में रजिस्टर्ड संस्था चुनावी बॉन्ड खरीद सकती थी. चुनावी बॉन्ड को 15 दिन के भीतर भुना लेना होता था नहीं तो सारी रकम प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करा दी जाती.