10 साल लग गए थे राजनीति से जुड़ी बुरी यादें भुलाने में... अब गोविंदा के सामने मजबूरी है या मौका?
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10 साल लग गए थे राजनीति से जुड़ी बुरी यादें भुलाने में... अब गोविंदा के सामने मजबूरी है या मौका?

Govinda News: यह संयोग ही है कि जिस कांग्रेस के लिए उन्होंने चुनाव जीता था अब इस चुनाव में उसी कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ वे ताल ठोंकते नजर आएंगे. उन्होंने खुद कहा है कि चौदह वर्ष के बाद उनका राजनीतिक वनवास खत्म होने जा रहा है. लेकिन देखना होगा कि वे कैसे इसे संभाल पाते हैं.

10 साल लग गए थे राजनीति से जुड़ी बुरी यादें भुलाने में... अब गोविंदा के सामने मजबूरी है या मौका?

Loksabha Chunav: हीरो नंबर वन.. राजा बाबू.. ये सब उपनाम गोविंदा ने अपने अभिनय के दम पर कमाया. लेकिन वे जब 2004 में मुंबई की एक सीट से चुनाव में उतरे तो उन्होंने वादा किया था कि वे नेता नंबर वन बनकर दिखाएंगे. उनका यह वादा पूरा ना हो पाया था. अब करीब दो दशक के बाद गोविंदा फिर से चुनावी समर में उतर रहे हैं. अब देखना होगा कि इस बार कौन सा वादा जनता से करेंगे. लेकिन इससे पहले कि वे चुनाव में उतरें.. उनके उस वाले चुनाव पर एक नजर दौड़ाया जाए जिसमें उन्होंने बीजेपी दिग्गज राम नाइक को पटकनी देते हुए उस चुनाव का एक बड़ा उलटफेर किया था.

असल में लोकसभा चुनाव 2004 की सबसे चर्चित सीट का एक चुनाव मुंबई उत्तर सीट का भी था. यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी गोविंदा के सामने बीजेपी के दिग्गज राम नाइक थे. राम नाइक तीन बार विधायक, तीन बार सांसद रह चुके थे, अटल सरकार में मंत्री बीच थे. नाइक के अनुभव के सामने गोविंदा कहीं नहीं टिक रहे थे. लेकिन परिणाम उलटफेर वाला रहा था. 

चर्चा में था वो चुनाव..
उस दौरान जब चुनाव का परिणाम आया तो गोविंदा ने रामनाइक को 48,271 वोटों से हरा दिया था. यह चुनाव जबरदस्त चर्चा में रहा था. कांग्रेस के कई बड़े नेता गोविंदा के चुनाव प्रचार के लिए मुंबई पहुंचते रहते थे. हालांकि गोविंदा जब यह चुनाव जीते तो अपने करियर के पीक पर थे और उन्होंने फिल्मों में काम करना कम कर दिया था. इसके बाद उनका करियर वैसा नहीं रहा था. 

नाइक ने लगाए थे आरोप..
उधर गोविंदा से हारने वाले नाइक ने बाद में अपनी किताब चरैवेती चरैवेती में दावा किया था कि गोविंदा ने दाऊद की मदद से चुनाव जीता था. नाइक का आरोप था कि गोविंदा ने अंडर वर्ल्ड की मदद ली थी. उनको हराने के लिए गोविंदा की तरफ से दाऊद के गुर्गों ने लोगों को धमकाया था. हालांकि गोविंदा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था.

पांच साल में ही हुआ था मोहभंग..
फिर हालत ये हो गई कि गोविंदा की फिल्में आनी बंद हो गईं. पांच साल बाद ही उनका चुनाव से मोहभंग हो गया और वे सक्रिय राजनीति से अलग हो गए. उन्होंने माना कि उनसे गलती हो गई. इतना ही नहीं कई सालों तक वे अपनी इस गलती पर पश्चाताप करते रहे. उसने यहां तक कह दिया था कि अभिनेताओं को चुनाव में ही नहीं उतरना चाहिए. गोविंदा ने कहा था कि उनकी ये गलती सालों तक उन्हें तकलीफ देती रही. यह भी कहा था कि राजनीति से जुड़ी बुरी यादें भुलाने में उनको 10 साल लग गए थे.

सामने मजबूरी है या मौका? 
फिर उन्होंने अभिनय में हाथ आजमाने की कोशिश की लेकिन असफल रहे और फिल्में चल नहीं पाईं. इसके बाद अब एक बार फिर से वे राजनीति में उतर रहे हैं और उन्होंने अपनी कर्मभूमि मुंबई को ही चुना है. लेकिन इस बार पार्टी अलग है. तब वे कांग्रेस से मैदान में थे, इस बार शिवसेना शिंदे ग्रुप से मैदान में हैं. उन्होंने फिर से कला और संस्कृति के लिए काम करने की इच्छा जताई है. लेकिन अब सवाल यह है कि उनके सामने मजबूरी है या मौका है. इसका जवाब भी भविष्य की गर्त में है, देखना होगा कि परिणाम क्या निकलकर आता है.

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