Rahul Gandhi: यह बात सही है कि इस बार कांग्रेस और विपक्ष पहले की अपेक्षा मजबूत है. लेकिन इसके बावजूद भी अनुभवी पीएम मोदी और उनके तेज तर्रार मंत्रियों का मुकाबला लोकसभा में करना होगा. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि राहुल चुनौतियों से कैसे निपटेंगे.
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Leader Of Opposition: भारत का लोकतंत्र गजब है और महान है. दस साल से पीएम मोदी की सरकार देश में रही और पीएम मोदी कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कई बार ये कहते हुए पाए गए कि वे चाहते हैं कि विपक्ष मजबूत हो. उनकी बात जनता ने शायद सुन ली और कांग्रेस पहले से मजबूत स्थिति में आ गई है. कांग्रेस लोकसभा में उस स्थित में आ गई कि लोकसभा में उसका नेता विपक्ष सामने आ जाए.. ऐसा हुआ भी, राहुल गांधी कांग्रेस की तरफ से लोकसभा में नेता विपक्ष होंगे. विपक्ष की साझा बैठक में ये निर्णय हुआ और उनका नाम प्रोटेम स्पीकर को दे दिया गया.
यह बात तो तय है कि राहुल गांधी को लोकसभा में नेता विपक्ष चुना जाना उनके राजनीतिक करियर के लिए भी अहम पड़ाव है. लेकिन इस बीच उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं होंगी. अगले पांच साल संसद में राहुल गांधी बनाम पीएम मोदी की बिसात बिछ गई है. यह संयोग ही है कि लोकसभा में दस साल बाद नेता विपक्ष सामने आएगा. मोदी सरकार के पहले दो कार्यकाल में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के सदन में 10 फीसदी नंबर भी नहीं जुट पाए थे.
इस बार कांग्रेस सांसदों की संख्या 99 है ऐसे में पहले से ही उम्मीद थी कि जल्द ही नेता विपक्ष का ऐलान हो जाएगा. राहुल गांधी के पास अब कई ताक़तें होंगी. नेता प्रतिपक्ष का दर्जा कैबिनेट मंत्री के स्तर का होता है. नेता प्रतिपक्ष सिर्फ़ विपक्ष का चेहरा नहीं होता, बल्कि कई अहम कमेटियों का सदस्य होता है. विपक्ष में होकर भी CBI, CEC, NHRC के प्रमुखों को चुनने में नेता प्रतिपक्ष की अहम भूमिका होती है.
जिन सेंट्रल एजेंसियों से राहुल गांधी को शिकायतें रही हैं, वो नेता प्रतिपक्ष बनकर इनका चीफ कौन होगा या कौन नहीं होगा, ये तय करने में अहम रोल निभाएंगे. ऐसा भी कहा जाता है कि चुनाव से पहले नीतीश के इंडिया गठबंधन छोड़ने और ममता बनर्जी के दूरी बनाने में एक कारण राहुल गांधी की स्वीकार्यता को लेकर भी था. उन्हें इसके लिए भी काम करना होगा. अभी विपक्ष भले ही एकजुट दिख रहा है.. लेकिन आने वाले समय में राहुल गांधी को सबको एकजुट करके चलना होगा.
राहुल गांधी की संसद सदस्यता एक बार कोर्ट के फैसले ने बचाई थी.लेकिन अपने बयानों की वजह से राहुल गांधी पर अब भी मानहानि के कई मुकदमे हैं.
- नेता प्रतिपक्ष बनने पर राहुल गांधी को होमवर्क मजबूत करना होगा.
- राहुल गांधी को संसद के सत्रों की कार्रवाई में अपनी मौजूदगी बढ़ानी होगी.
- 17वीं लोकसभा में उनकी अटेंडेंस सिर्फ 51% रही है, और वो सिर्फ़ 8 चर्चाओं में शामिल रहे.
राहुल गांधी को ध्यान रखना होगा कि मज़ाक में ही सही, उनके विरोधी उन्हें अपना ही स्टार कैंपेनर बताते रहे हैं. तो कोई भी कोताही उनके विरोधियो के लिए मौका बन सकती है. राहुल गांधी की गंभीरता पर उनके संसदीय और राजनीतिक ज्ञान पर कांग्रेस छोड़ने वाले नेता भी सवाल उठाते रहे हैं.
विपक्ष को एकजुट करना: उन्हें सरकार के खिलाफ एकजुट मोर्चा पेश करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों और गुटों को एक साथ लाना होगा, जो विभिन्न विचारधाराओं और हितों को देखते हुए चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
अभी भी सीमित संसाधन: सत्तारूढ़ दल की तुलना में विपक्ष के पास अक्सर समय, धन और सूचना तक पहुंच सहित सीमित संसाधन होते हैं, जिससे सरकार के एजेंडे का प्रभावी ढंग से मुकाबला करना कठिन हो जाता है. इसमें संख्याबल शामिल है.
पार्टी पर भी ध्यान रखना होगा: यह बात सही है कि राहुल ने अपनी यात्राओं के जरिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अलर्ट किया और उनका आत्मविश्वास बढ़ा लकिन कई प्रदेशों में उन्हें आंतरिक पार्टी की राजनीति से निपटना होगा और अपनी पार्टी के सदस्यों की अपेक्षाओं का प्रबंधन करना होगा, जो चुनौतीपूर्ण हो सकता है.