SP Vs BJP: सभी 8 सीटों को जीतने के लिए बीजेपी के पास NDA गठबंधन और बीएसपी के उमाशंकर सिंह से मिले वोट के बाद कुल 288 विधायकों का समर्थन था. जबकि समाजवादी पार्टी के कुल पास वोट देने के लिए मौजूदा समय में कुल 108 में से 106 विधायक ही मौजूद थे.
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दावे भी हो चुके हैं.वोट भी पड़ चुके हैं. और चोट भी लग चुकी है. उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव में बीजेपी सभी 8 सीटें जीत गई है. जबकि सपा को 2 ही सीटों से संतोष करना पड़ा. अखिलेश के साथ साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के लिए दुखदाई तो NDA गठबंधन के लिए सुखदाई नजर आ रही है. कैसे उसे कुछ आंकड़ों से समझते हैं.
उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की कुल दस सीटों के लिए वोट पड़े हैं. लेकिन चुनाव मैदान में कुल प्रत्याशी थे 11. इनमें से 8 बीजेपी के और 3 समाजवादी पार्टी की तरफ से थे. इस पूरी लड़ाई में बीजेपी की 7 और समाजवादी की 2 सीटों पर पहले से ही जीत तय है. लेकिन दसवीं सीट पर मामला फंसा हुआ था, जिस पर बीजेपी जीत गई है.
कैसे हुआ असली 'खेला'?
सभी 8 सीटों को जीतने के लिए बीजेपी के पास NDA गठबंधन और बीएसपी के उमाशंकर सिंह से मिले वोट के बाद कुल 288 विधायकों का समर्थन था. जबकि समाजवादी पार्टी के कुल पास वोट देने के लिए मौजूदा समय में कुल 108 में से 106 विधायक ही मौजूद थे. 2 जेल में कैद हैं. अब असली खेल यहीं हुआ है. सूत्रों के मुताबिक राज्यसभा की वोटिंग के दौरान समाजवादी पार्टी के 8 विधायकों ने अखिलेश की तरफ वोट ही नहीं डाला. उनमें से भी 7 विधायकों ने बीजेपी के पक्ष में वोट किया जबकि गायत्री प्रजापति की पत्नी महाराजी वोट डालने पहुंची ही नहीं.
इस तरह से समाजवादी पार्टी के पास बाकी रह गए सिर्फ 98 विधायक. उसके साथ कांग्रेस के दो विधायक भी हैं. यानी क्रॉस वोटिंग के वक्त समाजवादी पार्टी के पास कुल 100 विधायकों के वोट ही बचे. दूसरी तरफ समाजवादी विधायकों ने बीजेपी को वोट कर है वोट बढ़कर 295 हो गया. इस तरह से राज्यसभा में जीत के लिए पहले के जरूरी 37 वोट के बजाय अब सिर्फ 36 वोट ही दरकार रह गई.
क्रॉस वोटिंग होने पर क्या हुआ
NDA समाजवादी पार्टी
288 +7(SP) = 295 98(SP) + 2 (कांग्रेस)= 100
कुल वोट
295+100= 395
राज्यसभा में जीत के औसत वोट
395/11= 35.90 या 36 वोट
ये 36 वोट वाला आंकड़ा क्या कहता है अब इसे भी समझिए. अगर 36 वोट को आधार मानें तो बीजेपी को 8 सीटों के लिए 288 वोट चाहिए थे. और उसके पास कुल वोट 295 थे. वहीं समाजवादी पार्टी को ऐसे हालात में राज्यभा की 2 ही सीटों से संतोष करना पड़ता क्योंकि तीसरी सीट के लिए उसके पास 36*3=108 में से सिर्फ 100 ही सीटें ही होंगी.
खबर ये भी आई थी कि बीजेपी की सहयोगी सुभासपा से भी 1 विधायक ने समाजवादियों के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की है. लेकिन वोट रद्द कर दिया गया है. लिहाजा कोई फायदा नहीं मिला. हालांकि जो आधिकारिक आंकड़े मिल रहे हैं वो राज्यसभा के रण में यूपी के नए समीकरण की कहानी बयां कर रहे हैं. क्रॉस वोटिंग के जरिए कहने को तो बीजेपी ने समाजवादी पार्टी पर हमला किया है. लेकिन इसका सीधा असर कांग्रेस पर पड़ेगा. और वो यूपी की सियासत से पूरी तरह दूर हो सकती है.
कांग्रेस के लिए क्यों सबसे बड़ा खतरा
राज्यसभा चुनाव में अमेठी से सपा की विधायक महराजी प्रजापति वोटिंग में आई ही नहीं. पहले कहा जा रहा था कि वह बीजेपी को वोट दे सकती हैं. लेकिन गैरहाजिर रहकर उन्होंने बीजेपी की मदद की और सपा को नुकसान पहुंचाया. क्रॉस वोटिंग के बाद माना जा रहा है कि अमेठी से महराजी प्रजापति और राकेश सिंह बीजेपी उम्मीदवार को फायदा पहुंचा सकते हैं. ऐसा हुआ तो लोकसभा चुनाव में अमेठी में स्मृति ईरानी का पलड़ा और भारी हो जाएगा. जबकि गांधी परिवार के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी. सपा के साथ सीट बंटवारे में कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली सीटें भी मिली हैं. दोनों ही सीटें कांग्रेस का गढ़ मानी जाती हैं. अमेठी सीट तो 2019 में बीजेपी ने जीत ली थी. रायबरेली से फिलहाल सोनिया गांधी सांसद हैं. लेकिन राज्यसभा जाने के लिए वह भी यह सीट छोड़ देंगी. ऐसे में गांधी परिवार का ही कोई सदस्य इस सीट से उतर सकता है.
दूसरी ओर, सपा के मुख्य सचेतक पद से इस्तीफा देते हुए रायबरेली की ऊंचाहार सीट से विधायक मनोज पांडेय ने भी क्रॉस वोटिंग करते हुए बीजेपी को वोट दिया. 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को रायबरेली सीट से हार का मुंह देखना पड़ा था. लेकिन इस बार मनोज पांडे के जरिए बीजेपी कांग्रेस के आखिरी दुर्ग पर भी भगवा लहराना चाहती है. सूत्र दावा कर रहे हैं कि बीजेपी के टिकट पर मनोज पांडे रायबरेली से उतर सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो गांधी परिवार और कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
I.N.D.I.A को भी लगा झटका
सपा और कांग्रेस इंडिया गठबंधन की कद्दावर पार्टियां हैं. ऐसे में दोनों ही पार्टियों को अपने गढ़ में हार का स्वाद चखना पड़ा है. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस 40 विधायक होते हुए भी उम्मीदवार को जिता नहीं पाई और यूपी में सपा के ही विधायकों ने खेला कर दिया, जो उनकी नाकामी को दर्शाता है. अगर लोकसभा चुनाव की तैयारियों, बूथ मैनेजमेंट और उम्मीदवारों के चयन में भी कमी रह गई तो इंडिया को भी झटका लग सकता है.