RSS @100: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के सौ साल, आखिर क्यों हैं देश और दुनिया में चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा?
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RSS @100: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के सौ साल, आखिर क्यों हैं देश और दुनिया में चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा?

RSS Foundation Day: स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस से जुड़े रहे डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार और उनके कुछ साथियों ने महाराष्ट्र के नागपुर शहर में विजयादशमी के अवसर पर 27 सितंबर, 1925 को राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की स्‍थापना थी. हालांकि, संगठन का ये नाम बाद में रखा जा सका था.

RSS @100: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के सौ साल, आखिर क्यों हैं देश और दुनिया में चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा?

100 Years Of RSS: दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) आज (शनिवार) विजयादशमी उत्सव के साथ ही स्थापना दिवस भी मना रहा है. इसके साथ ही संघ अपने सौवें साल में प्रवेश कर चुका है. इस अवसर पर संघ मुख्‍यालय नागपुर में सरसंघचालक डॉक्टर मोहनराव भागवत का चर्चित विजयादशमी भाषण भी हुआ. आइए, देश और दुनिया भर का ध्यान खींचने वाले संघ के सौ साल के सफर के बारे में जानने की कोशिश करते हैं.

डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने रखी थी संघ की नींव

एक सामाजिक- सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने रखी थी. इसलिए संघ को जानने के लिए किसी भी जागरूक शख्स को पहले इसके संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार के बारे में जानना जरूरी माना जाता है. अपने जीवनकाल में  उन्हें‘डॉक्टरजी’ के नाम से पुकारा जाता था. समाज सेवा और देशभक्ति की भावना से भरकर उन्होंने 36 साल की आयु में संघ की स्थापना की थी. बचपन में उन्होंने दोस्तों के साथ मिलकर सीतावर्डी के दुर्ग से अंग्रेजों का यूनियन जैक उतारने के लिए सुरंग बनाने की योजना बना डाली थी.

तीन बार प्रतिबंधों के बावजूद हमेशा बढ़ता ही रहा संघ 

डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने साल 1925 में विजयादशमी (27 सितंबर) के पावन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना  की थी. संघ की प्रतिनिधि सभा की मार्च 2024 में हुई बैठक के अनुसार, देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 922 जिलों, 6597 खंडों और 27,720 मंडलों में 73,117 दैनिक शाखाएं हैं. इन प्रत्येक मंडल में 12 से 15 गांव शामिल हैं. संघ की प्रेरणा और सहयोग से समाज के हर क्षेत्र में विभिन्न संगठन चल रहे हैं, जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं. संघ के विरोधियों ने इस पर 1948, 1975 और 1992 में तीन बार प्रतिबंध लगाया. लेकिन तीनों बार संघ पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरा.

संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में क्या है ‘हिन्दू’ का मतलब?
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में ‘हिन्दू’ शब्द की व्याख्या करता है. यह किसी भी तरह से (पश्चिमी)  धार्मिक अवधारणा के समान नहीं है. इसकी विचारधारा और मिशन का जीवंत संबंध स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और बिपीन चंद्र पाल जैसे हिन्दू विचारकों के दर्शन से है. स्वामी विवेकानंद ने यह महसूस किया था कि “हिन्दुओं को परस्पर सहयोग और सराहना का भाव सिखाने के लिए सही अर्थों में एक हिन्दू संगठन अत्यंत आवश्यक है जो.”स्वामी विवेकानंद के इस विचार को डॉक्टर हेडगेवार ने व्यवहार में तब्दील कर दिया.

डॉक्टर हेडगेवार ने क्यों बनाई थी 'शाखा' जैसी ईकाई?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सबसे मूलभूत यानी बुनियादी ईकाई उसकी शाखाएं हैं. ये ‘स्व’ के भाव को  एक बड़े सामाजिक और राष्ट्रीय हित की भावना में मिला देती हैं. दरअसल, हम यह कह सकते हैं कि हिन्दू राष्ट्र को स्वतंत्र करने और हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति की रक्षा कर राष्ट्र कोंपरम वैभव तक पहुंचाने के उद्देश्य से डॉक्टर हेडगेवार ने संघ की स्थापना की थी. संघ की शाखा से निकले कई स्वयंसेवक देश में राजनीतिक सहित विभिन्न क्षेत्रों में सबसे बड़े पदों पर पहुंचे, लेकिन संघ अपनी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं होने का दावा करता है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या करता है, उसका ध्येय क्या है?

संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर की किताब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र के मुताबिक, भारत को हर क्षेत्र में महान बनाना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का केवल एक ध्येय है. संघ एक सशक्त हिन्दू समाज के निर्माण के लिए सभी जाति के लोगों को एक करना चाहता है. संघ का साधारण सिद्धांत यह है कि संघ शाखा चलाने के सिवाय कुछ नहीं करेगा और उसका स्वयंसेवक कोई कार्यक्षेत्र नहीं छोड़ेगा. इसलिए संघ अपनी स्थापना के बाद से ही महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, स्वातंत्र्यवीर सावरकर, बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सहित तमाम महापुरुषों और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आकर्षण और जिज्ञासा का केंद्र बना रहा था.

संघ की ताकत क्या है, स्वयंसेवक या प्रचारक किसे कहते हैं?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की असली ताकत राष्ट्र के लिए स्वयं प्रेरणा से कार्य करने वाले उनके कार्यकर्ता हैं, जिन्हें स्वयंसेवक कहा जाता है. समकालीन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से परे देश के नवनिर्माण की आशा के साथ संगठन की योजना से काम करने वाले ऐसे स्वयंसेवकों को संघ 'देवदुर्लभ' कार्यकर्ता बताता है. इन स्वयंसेवकों में से कई युवक अपना पूरा जीवन संघ के जरिए राष्ट्र के लिए समर्पित करते हैं. इन्हें प्रचारक कहा जाता है. इनका काम स्वयंसेवकों को आपस में जोड़े रखना और शीर्ष नेतृत्व की बातों को शाखा से जुड़े परिवारों तक पहुंचाना होना होता है.

आजादी की लड़ाई में क्या और कैसा था संघ का योगदान?

भारत के स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका को लेकर अक्सर उसके विरोधी सवाल उठाते रहते हैं. हालांकि, इसको आजादी के लिए संघर्ष करने वाले संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार के संदर्भ में समझा जा सकता है. भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की ओर से प्रकाशित राकेश सिन्हा की लिखी आधुनिक भारत के निर्माता: डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार किताब के मुताबिक, संघ की भारत के स्वाधीनता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही. डॉक्टर हेडगेवार कोलकाता में श्याम सुन्दर चक्रवर्ती और मौलवी लियाकत हुसैन से जुड़े रहे. 

क्रांतिकारी डॉक्टर हेडगेवार ने कभी विवाह न करने का संकल्प किया

कलकत्ता में रत्नागिरी से आए आठले नाम के एक बम निर्माता क्रांतिकारी से डॉक्टर हेडगेवार ने भी बम बनाना सीखा. आठले के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार डॉक्टर हेडगेवार और श्याम सुन्दर चक्रवर्ती ने गुप्त रूप से किया था. क्रांतिकारी रहकर ही डॉक्टर हेडगेवार ने कभी विवाह न करने का संकल्प किया था. अपने क्रांतिकारी जीवन में डॉक्टर हेडगेवार ने खुद शस्त्रों का प्रयोग किया. वह भी इतनी सावधानी से कि तत्कालीन अंग्रेज सरकार संदेह होते हुए भी उन्हें पकड़ न सकी. उनके प्रयासों ने देश के कई हिस्सों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ असंतोष और संघर्षों को आगे बढ़ाया.

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द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भी अंग्रेजों को भारत ने निकालने की कोशिश

संघ के वरिष्ठ अधिकारी बाबा साहब आप्टे बताते थे, “जब सन 1939 का वर्ष समाप्ति की ओर था और यूरोप में महायुद्ध जारी था उन दिनों डॉक्टर हेडगेवार को रात-दिन एक ही चिंता रहती थी कि महायुद्ध की इस स्थिति में अंग्रेजों को भारत से जड़-मूल सहित उखाड़ फेंकने के लिए उतना प्रभावी और शक्तिशाली संगठन भी जल्दी ही खड़ा कर लेना है. उनकी नजरों से ब्रिटिश दासता कभी ओझल नहीं हो पाई. संघ के सरकार्यवाह रहे भैयाजी दाणी ने संघ दर्शन किताब में लिखा है, “अंग्रेज सरकार के रोष तथा निषेध की परवाह न करते हुए अपने विद्यालय में डॉक्टर हेडगेवार ने ‘वंदेमातरम्’ का उद्घोष गुंजाया, भले इसके लिए उन्हें वह विद्यालय छोड़ देना पड़ा.”

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डॉक्टर हेडगेवार ने 1922-23 में की ‘ब्रिटिश राज्य विरहित’ स्वराज्य की मांग

प्रखर क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर, उनके बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर और छोटे भाई डॉक्टर नारायण दामोदर सावरकर, वामनराव जोशी, बैरिस्टर अभ्यंकर और सुभाष चन्द्र बोस डॉक्टर हेडगेवार को पसंद करते थे. सन 1922-23 में पुलगांव में आयोजित वर्धा तालुका परिषद् के सामने जब स्वराज्य का प्रस्ताव रखा गया तो उसमे अहमदाबाद-कांगेस द्वारा स्वीकृत ‘स्वराज्य’ शब्द का अर्थ कुछ लोग ‘ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वराज’ करते थे, लेकिन डॉक्टर हेडगेवार को यह मंजूर नहीं था. वह तो ब्रिटिश राज्य को हटाने के बाद के स्वराज्य को ही वास्तविक स्वराज्य मानते थे.  

उन्होंने परिषद् में जब स्वराज्य का प्रस्ताव रखा तो उसमें ‘ब्रिटिश राज्य विरहित’ स्वराज्य का संशोधन सुझाया था. डॉक्टर हेडगेवार के निधन पर लोकमान्य तिलक द्वारा स्थापित अंग्रेजी समाचार पत्र ‘मराठा’ ने 23 अगस्त, 1940 को अपने प्रथम पृष्ठ पर जो पहला बड़ा समाचार प्रकाशित किया उसका शीर्षक था ‘डॉ. हेडगेवार्स संघ स्टील गोइंग स्ट्रांग.’

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