JMM Bribery Case: जब संसद तक पहुंचा भ्रष्टाचार का दीमक, नोटों के बदले बिके थे वोट, क्‍या है 1993 का JMM घूसकांड
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JMM Bribery Case: जब संसद तक पहुंचा भ्रष्टाचार का दीमक, नोटों के बदले बिके थे वोट, क्‍या है 1993 का JMM घूसकांड

Supreme Court On JMM Bribery Case: झामुमो रिश्वतखोरी मामला 1993 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव से जुड़ा है. आरोप है कि शिबू सोरेन समेत JMM के कुछ सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने के लिए रिश्वत ली थी. अल्पमत में रही नरसिम्हा राव सरकार उनके समर्थन से बच गई थी.

JMM Bribery Case: जब संसद तक पहुंचा भ्रष्टाचार का दीमक, नोटों के बदले बिके थे वोट, क्‍या है 1993 का JMM घूसकांड

What Is JMM Bribery Case: सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के पीवी नरसिम्हा मामले में अपना फैसला खारिज कर दिया है. सात जजों की संविधान पीठ ने कहा कि कोई सांसद या विधायक संसद/विधानसभा में वोट/भाषण के संबंध में रिश्वतखोरी के आरोप में अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकता. पीठ ने सर्वसम्मति से 1998 वाला फैसला खारिज कर दिया जिसमें सांसदों/विधायकों को संसद में मतदान के लिए रिश्वतखोरी के खिलाफ मुकदमा चलाने से छूट दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि हम पीवी नरसिम्हा मामले के फैसले से असहमत हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सांसदों-विधायकों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देता है. सुप्रीम कोर्ट ने जिस पीवी नरसिम्हा मामले का जिक्र किया, वह झारखंड मुक्ति मोर्चा घूसकांड से जुड़ा है. 1993 में JMM रिश्‍वतखोरी कांड से देश की सियासत में भूचाल आ गया था.

Cash For Vote Case: 1993 का झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड क्‍या है?

1991 आम चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर तो उभरी मगर बहुमत से दूर रहीं. उसे 232 सीटें मिली थीं और बहुमत का आंकड़ा 272 था. प्रधानमंत्री पद के लिए पीवी नरसिम्हा राव के नाम ने सबको चौंकाया. देश उस समय तमाम परेशानियों में घिरा था. आर्थिक संकट चरम पर था, राजीव गांधी की हत्या हो चुकी थी, राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ रहा था. राव सरकार ने आर्थिक उदारीकरण के लिए कदम उठाए. 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाए जाने के बाद माहौल और बिगड़ गया.

जुलाई 1993 में मॉनसून सत्र के दौरान, राव सरकार के खिलाफ CPI (M) के सांसद अविश्‍वास प्रस्‍ताव ले आए. उस समय लोकसभा में 528 सदस्य थे और कांग्रेस (I) के पास 251 सदस्य थे. मतलब राव सरकार के पास बहुमत जुटाने के लिए 13 सीटें कम थीं. 28 जुलाई 1993 को जब अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर मतदान हुआ तो उसके पक्ष में 251 वोट पड़े और खिलाफ में 265 यानी 14 वोट से प्रस्‍ताव खारिज हो गया. राव सरकार बच गई. तीन साल बाद, वोट के बदले नोट का मामला सामने आया.

28 जुलाई को झामुमो और जनता दल के 10 सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव को हराने के लिए वोट डाला था. सीबीआई ने सूरज मंडल, शिबू सोरेन, साइमन मरांडी और शल्लेंद्र महतो सहित झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के सांसदों के खिलाफ मामले दर्ज किए. आरोप लगाया कि उन्होंने रिश्वत लेकर वोट डाले . संसद में झामुमो के कुल छह सांसद थे. 

1998 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था फैसला

मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया. पांच जजों की बेंच ने 1998 में फैसला दिया कि संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत, संसद के किसी भी सदस्य को संसद में दिए गए किसी भी वोट के संबंध में किसी भी अदालत में किसी भी कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ सभी मामलों को खारिज कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने 26 साल बाद पलटा फैसला

करीब ढाई दशक बाद, 2024 में सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने 1998 में पांच जजों की बेंच के फैसले को पलट दिया. 04 मार्च 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि अगर कोई भी विधायक-सांसद पैसे लेकर सवाल या फिर वोट करता है उसे किसी भी तरह की कानूनी छूट नहीं मिलेगी. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा चलेगा. 

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