Special Category Status: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार साल 2008 से ही विशेष राज्य की दर्जा की मांग उठाते रहे हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने कहा था कि जो गठबंधन बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए तैयार होगा हम उसका समर्थन करेंगे.
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What is Special Category Status: राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा है कि इस लोकसभा चुनाव में बिहार किंगमेकर के रूप में उभरा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार एनडीए में किंगमेकर के रूप में अपनी स्थिति का पूरा फायदा उठाना चाहिए. हम चाहते हैं कि वह सुनिश्चित करें कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले.
दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों में बीजेपी इस बार अकेले बहुमत हासिल नहीं कर पाई है. ऐसे में नीतीश कुमार और एन चंद्रबाबू नायडू किंगमेकर बनकर उभरे हैं. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू 12 सीटों तो चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने 16 सीटों पर जीत हासिल की है. सूत्रों की मानें तो चंद्रबाबू नायडू की भी मांग है कि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा मिले.
ऐसे में आइए समझते हैं कि विशेष राज्य का दर्जा क्या है? यह दर्जा मिलने के बाद किसी भी राज्य को क्या फायदा होता है?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार साल 2008 से ही विशेष राज्य की दर्जा की मांग उठाते रहे हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने कहा था कि जो गठबंधन बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए तैयार होगा हम उसका समर्थन करेंगे.
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इसके बाद इसी साल फरवरी में बिहार के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने विधानसभा में बोलते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री को बिहार को विशेष राज्य का दर्जा (एससीएस) का दर्जा देना चाहिए. इससे पहले 24 जनवरी को बिहार के समाजवादी के प्रतीक और भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी एससीएस की मांग दोहराई थी.
क्या है विशेष राज्य का दर्जा?
भारत के संविधान में किसी भी राज्य को दूसरे राज्य की तुलना में स्पेशल ट्रीटमेंट देने का प्रावधान नहीं है. हालांकि, ऐतिहासिक नुकसान, दुर्गम या पहाड़ी इलाके, जनसंख्या की प्रकृति, बॉर्डर इलाके, आर्थिक या ढांचागत पिछड़ापन आदि सहित कई कारणों से केंद्र द्वारा कुछ राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है.
अगर किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है तो केंद्र-राज्य प्रायोजित योजनाओं में फंड का अनुपात 90:10 हो जाता है. जो आमतौर पर 60:40 और 80:20 होता है. इस तरह विशेष राज्य का दर्जा किसी भी राज्य के लिए ज्यादा अनुकूल हो जाता है.
साल 1969 में भारत के पांचवे वित्त आयोग ने कुछ राज्यों को ऐतिहासिक आर्थिक या भौगोलिक नुकसान का सामना करने पर उनके विकास और तेजी से विकास में मदद करने के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने की शुरुआत की. लेकिन 14वें वित्त आयोग की सिफारिश पर इस प्रणाली को समाप्त कर दिया गया. इस वित्त आयोग ने सुझाव दिया कि राज्यों के संसाधन अंतर को पाटने के लिए कर की हिस्सेदारी को 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 करना चाहिए.
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इन राज्यों को मिला है विशेष राज्य का दर्जा
वर्तमान में भारत के कुल 11 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान किया गया है. इसमें पूर्वोत्तर के सभी राज्य, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड शामिल है. विशेष राज्य का दर्जा मिलने से इन राज्यों को ज्यादा अनुदान मिलता है. साथ ही विशेष औद्योगिक प्रोत्साहन का भी फायदा होता है. जैसे आयकर छूट, सीमा शुल्क छूट, कम उत्पाद शुल्क, एक निश्चित समय के लिए कॉर्पोरेट कर छूट, जीएसटी से संबंधित रियायतें और छूट, और कम राज्य और केंद्रीय कर.
केंद्र सरकार द्वारा 2015 में चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों को स्वीकर करने के बाद 'विशेष राज्य का दर्जा' की अवधारणा अब प्रभावी नहीं है. योजना आयोग के स्थान पर बने नीति आयोग के पास अब एससीएस के आधार पर फंड आवंटित करने की शक्ति नहीं है. ऐसे में केंद्र सरकार के पास अब नए सिरे से किसी भी राज्य को विशेष सहायता का प्रावधान बचा नहीं है. इसके बावजदू बिहार, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य अपनी मांग पर कायम हैं.