Presidential Reference In India: सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के अध्यक्ष ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मांग की है कि वे चुनावी बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रेसिडेंशियल रेफरेंस लें. संविधान के अनुच्छेद 143 में इसकी व्यवस्था है.
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Presidential Reference Article 143: सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों चुनावी बॉन्ड योजना को 'असंवैधानिक' करार दिया था. जितने भी बॉन्ड खरीदे-भुनाए गए, उनकी जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश सुनाया. चुनाव आयोग (ECI) को 15 मार्च की शाम 5 बजे तक चुनावी बॉन्ड का डेटा अपनी वेबसाइट पर डालना है. उससे पहले, एक गुहार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की चौखट पर पहुंची है. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश अग्रवाल ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है. उनकी गुजारिश है कि राष्ट्रपति SC के फैसले का प्रेसिडेंशियल रेफरेंस यानी राष्ट्रपति संदर्भ लें. उन्होंने कहा कि इसे तब तक प्रभावी न करें जब तक सुप्रीम कोर्ट दोबारा सुनवाई न कर ले. संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत, राष्ट्रपति को कानून या तथ्य से जुड़े किसी सवाल पर सुप्रीम कोर्ट से राय लेने का अधिकार है. राष्ट्रपति उस सवाल को विचार के लिए SC के पास भेज सकते हैं. सुनवाई के बाद अगर सुप्रीम कोर्ट को ठीक लगे तो वह अपनी राय राष्ट्रपति को बता सकता है.
अनुच्छेद 143 के तहत, राष्ट्रपति चाहें तो कानून या तथ्य के किसी भी मामले को सुप्रीम कोर्ट को रेफर कर सकते हैं. इसे प्रेसिडेंशियल रेफरेंस या राष्ट्रपति संदर्भ कहते हैं. वे मुद्दे जो उठ चुके हैं या उठने की संभावना है, उनके बारे में अदालत की राय मांगी जा सकती है. राष्ट्रपति संदर्भ उन मामलों में किया जा सकता है जो सार्वजनिक महत्व के हैं. सुप्रीम कोर्ट चाहे तो संदर्भ में उठाए गए किसी एक सवाल या सभी सवालों का जवाब देने से मना कर सकता है. प्रेसिडेंशियल रेफरेंस के लिए जरूरी है कि उस मुद्दे पर अदालत की राय पहले ही न ली जा चुकी हो या फैसला न हुआ हो.
अनुच्छेद 143 में सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेने की राष्ट्रपति की शक्ति का जिक्र है. इसके अनुसार, "यदि किसी भी समय राष्ट्रपति को यह प्रतीत होता है कि कानून या तथ्य का कोई प्रश्न उठ गया है, या उठने की संभावना है, जो ऐसी प्रकृति का और इतना सार्वजनिक महत्व का है कि उस पर सर्वोच्च न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है, वह प्रश्न को विचार के लिए उस न्यायालय को भेज सकता है और न्यायालय, ऐसी सुनवाई के बाद, जो वह उचित समझे, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय बता सकता है."
संविधान में शासन की सारी शक्तियां राष्ट्रपति में ही निहित की गई हैं. भारत सरकार राष्ट्रपति की ओर से काम करती है. इसलिए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस राष्ट्रपति को भेजा जाता है. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और मोहर लगने के बाद रेफरेंस को सुप्रीम कोर्ट में सबमिट किया जाता है.
क्या सुप्रीम कोर्ट की राय बाध्यकारी है?
अनुच्छेद 143 के नोट में लिखा है, 'सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति'. 'परामर्श' शब्द यह दर्शाता है कि राष्ट्रपति राय को प्रभावी बनाने के लिए बाध्य नहीं है. किसी राय को लागू या एक्जीक्यूट नहीं किया जा सकता है.
पहले कब-कब लिया गया 'प्रेसिडेंशियल रेफरेंस'
अतीत में राष्ट्रपति संदर्भ के कई उदाहरण हैं. 2012 में सरकार ने 2जी घोटाला मामले में प्रेसिडेंशियल रेफरेंस मांगा था. SC ने अपने आदेश में 122 2जी लाइसेंस इस दलील पर रद्द कर दिए थे कि ये लाइसेंस 'मनमाने' और 'असंवैधानिक' तरीके से जारी किए गए थे. सरकार ने इस आदेश को चुनौती देते हुए समीक्षा याचिका दायर की थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया. सरकार को लगा कि 2जी आदेश से कुछ नीतिगत और कानूनी मुद्दे उठ रहे हैं. सरकार ने राष्ट्रपति की ओर से सुप्रीम कोर्ट को आठ सवाल भिजवाए थे.
2004 में नदी के पानी के बंटवारे को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच विवाद में भी राष्ट्रपति संदर्भ मांगा गया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेशों में कार्यपालिका पर न्यायपालिका को प्रधानता दिए जाने के बाद जजों के चयन पर भी प्रेसिडेंशियल रेफरेंस मांगा गया था.
अग्रवाल की चिट्ठी से SCBA कमेटी का किनारा
अग्रवाल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को जो पत्र लिखा है, उससे SCBA की कार्यकारी समिति ने खुद को अलग कर लिया है. समिति ने कहा कि वह पत्र में लिखी बातों को 'सुप्रीम कोर्ट के अधिकार को खत्म करने और कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखती है.