Katra Ropeway Protest: कटरा वैष्णो देवी में 250 करोड़ के रोपवे प्रोजेक्ट को मंजूरी मिलने से व्यापार मंडल नाराज है. व्यापारी कई दिनों से इस प्रोजेक्ट के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. आखिर क्या है वैष्णो देवी रोपवे परियोजना. क्यों मचा है बवाल. जानें सबकुछ.
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Vaishno Devi Ropeway: वैष्णो देवी मंदिर इन दिनों काफी चर्चा में है. लेकिन भक्ति-प्रेम के लिए नहीं, बल्कि किसी और की वजह के लिए. इससे पहले आप दिमाग पर जोर दें हम आपको बता दें कि श्रीमाता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड द्वारा मंदिर तक यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए रोपवे परियोजना स्थापित करने के निर्णय के विरोध में जम्मू के कटरा शहर के व्यापारियों ने बुधवार (18 दिसंबर) को बंद रखा गया. यह बंद श्री माता वैष्णोदेवी संघर्ष समिति के आह्वान के बाद किया गया, जो स्थानीय व्यवसायों और श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैष्णो देवी ट्रेक मजदूर संघ के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह जामवाल ने संवाददाताओं से बातचीत में बताया कि “संघर्ष समिति हमारे अधिकारों के लिए लड़ रही है, क्योंकि बोर्ड 60,000 से अधिक परिवारों की रोजी-रोटी छीनने पर तुला हुआ है. होटल व्यवसायी, दुकानदार, टट्टू संचालक, मजदूर और ट्रांसपोर्टर सभी रोपवे परियोजना के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. हम चाहते हैं कि परियोजना को रोक दिया जाए,”
आइए अब जानते हैं आखिर क्या है परियोजना जिसके लिए मचा बवाल?
प्रस्तावित कटरा-सांझीछत रोपवे परियोजना: सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मोड में 300 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किए जाने वाले इस प्रस्तावित रोपवे का उद्देश्य श्री माता वैष्णो देवी मंदिर तक 14 किलोमीटर लंबी यात्रा के समय को कम करना है. वर्तमान में पैदल यात्रा करने में लगभग छह से सात घंटे लगते हैं. यह घटकर एक घंटे से भी कम रह जाएगा. श्री माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अंशुल गर्ग ने कहा कि रोपवे से कटरा से सांझीछत तक केवल छह मिनट लगेंगे. इसके बाद 30-45 मिनट पैदल चलकर मंदिर तक पहुंचा जा सकेगा. परियोजना की समय-सीमा दिसंबर 2026 है, इसमें एक घंटे में 1,000 लोगों को ले जाने की क्षमता होगी और यह तीर्थयात्रियों की बढ़ती भीड़ को पूरा करेगा. इसका उद्देश्य सालाना मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए यात्रा को सुरक्षित और अधिक समावेशी बनाना भी है. पिछले साल, 95 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों ने मंदिर में पूजा-अर्चना की, और इस साल यह संख्या संभवतः एक करोड़ को पार कर गई है.
रोपवे की क्यों आवश्यकता?
इन संख्याओं को देखते हुए, तीर्थ बोर्ड को लंबे समय से रोपवे की आवश्यकता महसूस हो रही थी. यूटी के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के अध्यक्ष के रूप में, बोर्ड ने इस साल की शुरुआत में गुड़गांव स्थित जी आर इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के साथ एक समझौता किया और अक्टूबर में इस पर काम शुरू हुआ.
कटरा रोपवे परियोजना का विरोध कौन कर रहा है और क्यों?
कटरा और बाण गंगा के दुकानदारों और होटल व्यवसायियों ने जो कि तीर्थस्थल के रास्ते में आने वाला एक और धार्मिक स्थल है, इन लोगों ने अपना विरोध दर्ज कराया है. अन्य लोगों में टट्टूवाले, पिट्ठू (कुली) और पारंपरिक मार्ग पर पालकी सेवा प्रदान करने वाले लोग शामिल हैं. कटरा व्यापार मंडल ने कहा कि रोपवे से मंदिर के रास्ते में पड़ने वाले छोटे व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की व्यावसायिक संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि वे अपनी आजीविका के लिए आगंतुकों पर निर्भर हैं.
पर्यटन स्थल की जगह, धार्मिक स्थल की तरह माना जाए
जम्मू-कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी इस परियोजना के खिलाफ एलजी को पत्र लिखा और बाद में प्रदर्शनकारियों से मुलाकात की. उन्होंने संवाददाताओं से कहा, "दुकानदारों, मजदूरों और अन्य लोगों की आजीविका तीर्थयात्रा से जुड़ी हुई है और उन्हें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. सरकार को यह सोचना चाहिए कि यह एक धार्मिक स्थल है और इसे पर्यटन स्थल में बदलने के बजाय धार्मिक स्थल की तरह ही माना जाना चाहिए."
श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के अधिकारियों ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी है?
बोर्ड के अधिकारियों ने परियोजना के संभावित लाभों की ओर इशारा करते हुए कहा कि इससे त्रिकुटा पहाड़ियों के शानदार दृश्य देखने को मिलेंगे, तीर्थयात्रियों के लिए आध्यात्मिक और सुंदर अनुभव बढ़ेगा और वरिष्ठ नागरिकों और अन्य चिकित्सा स्थितियों वाले लोगों को तीर्थयात्रा करने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि बोर्ड स्थानीय हितधारकों की चिंताओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने दावा किया है कि रोपवे से तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि होगी और स्थानीय लोगों के लिए व्यवसाय और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे.