Why Rahul Gandhi chose Raebareli: वायनाड या रायबरेली? आखिरकार राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने इस पहेली को सुलझा ही लिया. राहुल को वायनाड और रायबरेली की जनता में किसी एक को चुनना था. उन्होंने वायनाड की सीट को ही छोड़ने और रायबरेली सीट से सांसद बने रहने का फैसला किया. अब प्रियंका गांधी वायनाड लोकसभा सीट पर उपचुनाव के साथ ही सियासी डेब्यू करेंगी. अगर प्रियंका जीतती हैं, तो वो पहली बार लोकसभा पहुंचेगी और पहली बार लोकसभा में राहुल-प्रियंका एक साथ दिखाई दे सकते हैं. इसके साथ ही यह पहली बार होगा, जब नेहरू-गांधी परिवार के तीन सदस्य एक साथ संसद में होंगे. सोनिया गांधी राज्यसभा की सदस्य हैं. हालांकि, इससे पार्टी पर वंशवाद की राजनीति करने और सिर्फ एक परिवार को बढ़ावा देने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ सकता है.


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राहुल गांधी ने क्यों छोड़ दी वायनाड सीट?


इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, राहुल गांधी के वायनाड सीट छोड़ने की सबसे बड़ी वजह यह है कि पार्टी उत्तर प्रदेश में लड़ाई जारी रखना चाहती है. राहुल ने वायनाड के लोगों को दिए संदेश में कहा, 'अब आपके पास दो सांसद होंगे, मैं लगातार आता रहूंगा. वायनाड के लोगों ने मुझे समर्थन दिया, बहुत मुश्किल समय में लड़ने की ऊर्जा दी.' इस दौरान प्रियंका गांधी ने कहा, 'मैं वायनाड के लोगों को राहुल की कमी महसूस नहीं होने दूंगी. मैं कड़ी मेहनत करूंगी. वायनाड में सभी को खुश करने की पूरी कोशिश करूंगी और एक अच्छी प्रतिनिधि बनूंगी.


यूपी में कांग्रेस ने इस बार की जोरदार वापसी


हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में छह सीटें जीतकर कुछ हद तक वापसी की, क्योंकि 2019 के चुनाव में रायबरेली को छोड़कर पार्टी ने सभी सीटें खो दी थीं. इसमें अमेठी भी शामिल थी, जहां स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराया था. पार्टी 2019 में यूपी में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई थी और राज्य में उसका वोट शेयर सिर्फ 6.36 प्रतिशत था.


2014 में भी हालात कुछ ज्यादा अच्छे नहीं थे और पार्टी सिर्फ दो सीटें रायबरेली और अमेठी जीत पाई थी. तब यूपी में कांग्रेस का वोट शेयर 7.53 प्रतिशत था. हालांकि, इस बार पार्टी ने सिर्फ 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और बाकी सीटें अपने इंडिया ब्लॉक सहयोगियों के लिए छोड़ दीं. इनमें से कांग्रेस छह सीटें जीतने में सफल रही और सीमित सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद उसका वोट शेयर बढ़कर 9.46 प्रतिशत हो गया.


राहुल गांधी के इस फैसले से क्या संदेश जाता है?


लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और पार्टी को सकारात्मक नतीजे मिलने के साथ ही राज्य में माहौल भाजपा के खिलाफ दिखा. बीजेपी सिर्फ 33 सीटें जीतने में कामयाब रही, जबकि 2019 में 62 सीटों पर कब्जा किया था. लोकसभा में सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व वाले राज्य से मिले सकारात्मक नतीजों के साथ कांग्रेस पार्टी यह संदेश देना चाहेगी कि राहुल गांधी उस सीट और राज्य को नहीं छोड़ रहे हैं, जिसने उन्हें और पार्टी को चुनावों में अच्छा नतीजा दिया है.


राहुल ने रायबरेली को बरकरार रखने का फैसला करके पार्टी को एक स्पष्ट संदेश दिया है कि वह यूपी और हिंदी पट्टी में अपनी लड़ाई जारी रखेगी. इसके साथ ही यूपी से मिले सकरात्मक नतीजों से भाजपा से मुकाबला करेगी. कांग्रेस 2027 के यूपी विधानसभा चुनावों की तैयारी करते हुए अपनी कुछ जमीन बचाने की कोशिश करेगी. 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ दो सीटें जीत पाई. प्रियंका के आगे बढ़ने के बावजूद उसका वोट शेयर गिरकर 2.33 प्रतिशत रह गया. सपा के साथ कांग्रेस के गठबंधन के बीच राहुल गांधी का रायबरेली सीट को चुनने का फैसला पूरी तरह रणनीतिक है.


वायनाड से प्रियंका गांधी क्यों?


राहुल ने बार-बार दावा किया है कि वायनाड से उनका भावनात्मक जुड़ाव है. यह निर्वाचन क्षेत्र राहुल के लिए तब मददगार साबित हुआ, जब 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई थी और यूपी में लगभग पूरी तरह से खत्म हो गई थी. उस समय कांग्रेस नेता ने अपने पारिवारिक गढ़ अमेठी को भी खो दिया था, जहां से राहुल को हार का सामना करना पड़ा था. उस समय केरल में कुछ कांग्रेस नेताओं ने भी राज्य में संसदीय चुनावों में पार्टी के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) की लगभग जीत के लिए राहुल के राज्य से चुनाव लड़ने के फैसले को जिम्मेदार ठहराया था.


इसके अलावा, पार्टी को दो साल बाद 2021 में विधानसभा चुनावों में बड़ा झटका लगा, जब केरल के लोगों ने पिनाराई विजयन को सत्ता में दूसरा कार्यकाल दिया. कांग्रेस की केरल इकाई मानती है कि विजयन सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी भावना बढ़ रही है और चाहती थी कि राहुल गांधी सीट बरकरार रखें. ताकि सीपीआई (एम) इस मुद्दे को ना उठा सके कि राहुल गांधी यूपी में राजनीतिक लाभ की तलाश में केरल से भाग गए. इसलिए प्रियंका को मैदान में उतारने का फैसला किया गया है ताकि यह संदेश दिया जा सके कि वायनाड और केरल से गांधी परिवार ने खुद को दूर नहीं किया है.


क्या किसी और को उतार सकती थी कांग्रेस?


कांग्रेस में वायनाड सीट के लिए उम्मीदवारों की कमी नहीं है. शुरू में पार्टी नेताओं को लगा कि हाईकमान मुरलीधरन को मैदान में उतार सकता है, जिन्होंने त्रिशूर लोकसभा सीट से बीजेपी के सुरेश गोपी के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे. मुरलीधरन पिछली लोकसभा में सांसद थे, लेकिन पार्टी नेताओं को लगा कि इससे माकपा को आने वाले हफ्तों और महीनों में कांग्रेस पर हमला करने का मौका मिल जाता. इसके अलावा, प्रियंका भी चुनावी राजनीति में उतरने की इच्छुक हैं.


प्रियंका ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को फिर से खड़ा करने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन्हें बहुत कम सफलता मिली. राज्य के प्रभारी एआईसीसी महासचिव के तौर पर उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के अभियान का नेतृत्व किया, लेकिन पार्टी सिर्फ दो सीटें जीत सकी. वह बिना किसी प्रभार के एआईसीसी महासचिव बनी हुई हैं. पार्टी उन्हें प्रचारक के तौर पर ज्यादा इस्तेमाल करना चाहती है. ऐसा लगता है कि उन्हें भी संगठनात्मक जिम्मेदारियों से ज्यादा इसी में मजा आ रहा है.


प्रियंका को उतारने का क्या हो सकता है नुकसान?


प्रियंका गांधी के वायनाड सीट से उतारने के बाद कांग्रेस पार्टी को आलोचना का भी सामना करना पड़ सकता है. शायद यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के दौरान प्रियंका अमेठी से चुनाव लड़ने से कतराती रहीं. लेकिन, कांग्रेस पार्टी में यह सोच थी कि प्रियंका चाहे चुनाव लड़ें या न लड़ें, भाजपा वंशवाद के मुद्दे पर कांग्रेस पर हमला करती रहेगी. बेशक, अब यह हमला और तेज होगा. पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि अगर भाजपा फिर से 300 से ज्यादा सीटें जीत जाती तो शायद प्रियंका चुनाव नहीं लड़तीं.