तिब्‍बती धर्मगुरु दलाई लामा के 90वें जन्‍मदिन की आहट के साथ ही ये सवाल खड़ा हो रहा है कि क्‍या इस मौके पर तिब्‍बती लोगों के लिए अपना उत्‍तराधिकारी घोषित करेंगे? ये बात इसलिए अहम है क्‍योंकि चीन के प्रतिरोध के रूप में तिब्‍बती धर्मगुरु की पदवी दलाई लामा के दौर में प्रतिरोध का प्रतीक बन गई है. दलाई लामा छह जुलाई को 90 साल के होंगे. चीन ने जब से तिब्‍बत का अधिग्रहण किया है तब से दलाई लामा की गद्दी सांकेतिक रूप से ही सही लेकिन उसके खिलाफ प्रतिरोध की आवाज है.


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इसलिए कई विश्‍लेषकों का मानना है कि ये उचित मौका होगा कि अपने जन्‍मदिन के मौके पर दलाई लामा अपने उत्‍तराधिकारी का ऐलान करें. हिमाचल प्रदेश में मैकलोडगंज स्थित तिब्‍बत की निर्वासित सरकार (सीटीए) ने उनके जन्‍मदिन की तैयारियां शुरू कर दी हैं. दुनियाभर की प्रमुख हस्तियों को आमंत्रित करने की योजना बनाई जा रही है. 


कठिन चुनौती
हालांकि ये इतना आसान काम नहीं है. ऐसा इसलिए क्‍योंकि तिब्‍बती बौद्ध व्‍यवस्‍था में दलाई लामा के बाद दूसरी सबसे महत्‍वपूर्ण आध्‍यात्मिक हस्‍ती पंचेन लामा, चीन की कस्‍टडी में हैं. इसलिए यदि उत्‍तराधिकारी घोषित भी कर दिया जाए तो वैधता का सवाल खड़ा होगा? दलाई लामा और पंचेन लामा के साथ होने पर वो संकट खड़ा नहीं होता. परंपरा के अनुसार दलाई लामा और पंचेन लामा एक दूसरे के पुनर्जन्‍म की घोषणा करते हुए अपनी अंतिम मुहर लगाते हैं.  


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दूसरी बात चीन हमेशा से दलाई लामा के इस कदम की मुखालफत करता रहा है. उसका कहना है कि कम्‍युनिस्‍ट चीनी शासन की सहमति से चीन की धरती से ही ये घोषणा होनी चाहिए. ये सब बातें इस मसले को जटिल बनाती हैं. 


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एक नई धारा
द टाइम्‍स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि तिब्‍बत की निर्वासित सरकार के कुछ लोगों का मानना है कि दलाई लामा ये घोषणा भी कर सकते हैं कि उनके बाद दलाई लामा का कोई पुनर्जन्‍म नहीं होगा. हालांकि कुछ लोगों का ये भी कहना है कि दलाई लामा को अपना उत्‍तराधिकारी घोषित करने की अभी कोई जरूरत नहीं है क्‍योंकि उन्‍होंने खुद घोषणा की है कि वो 110 साल तक जीवित रहेंगे.