सुप्रीम कोर्ट ने भूमि विवाद के इस केस में सोपान नरसिंग गायकवाड़ की अपील को स्वीकार कर लिया, लेकिन इससे पहले ही गायकवाड़ की मौत हो गई. ये मामला साल 1968 से चल रहा था.
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नई दिल्ली: भूमि विवाद के मामले में एक बुजुर्ग व्यक्ति की अपील पहले तो सालों तक हाई कोर्ट में लंबित रही और अब जब सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई होनी थी, तो ये देखने के लिए 108 साल के बुजुर्ग अब इस दुनिया में ही नहीं हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने भूमि विवाद के इस केस में सोपान नरसिंग गायकवाड़ की अपील को स्वीकार कर लिया, लेकिन इससे पहले ही गायकवाड़ की मौत हो गई. ये मामला साल 1968 से चल रहा था. खारिज होने से पहले 27 साल तक ये केस बॉम्बे हाई कोर्ट में लंबित रहा.
सोपान नरसिंग गायकवाड़ के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि अपील दायर करने में देरी को इस तरह से देखा जा सकता है कि बुजुर्ग याचिकाकर्ता महाराष्ट्र के एक ग्रामीण इलाके से संबंधित हैं और हाई कोर्ट के फैसले के बारे में उन्हें बाद में पता चला. फिर कोविड-19 महामारी की वजह से भी फंस गए.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 12 जुलाई को अपील पर सुनवाई के लिए सहमति जताई थी.
याचिकाकर्ता के वकील विराज कदम ने कहा कि दुर्भाग्य से ट्रायल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अपने मामले को आगे बढ़ाने वाले नरसिंग गायकवाड़ अब यह सुनने के लिए जिंदा नहीं हैं कि सुप्रीम कोर्ट उनके मामले की सुनवाई के लिए तैयार हो गया है.
उन्होंने कहा, '12 जुलाई को अदालत की सहमति से पहले उनकी मृत्यु हो गई थी, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र से उनके निधन की जानकारी बाद में मिली. अब उनके कानूनी वारिसों के माध्यम से सुनवाई की जाएगी.'
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने 23 अक्टूबर 2015 और 13 फरवरी, 2019 के उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ शीर्ष अदालत में जाने में 1,467 दिन और 267 दिनों की देरी को माफ करने के आवेदन पर नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने आठ हफ्ते में दूसरी पार्टी से भी जवाब मांगा है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'हमें इस तथ्य पर ध्यान देना होगा कि याचिकाकर्ता 108 साल का है और इसके अलावा हाईकोर्ट ने मामले की योग्यता पर विचार नहीं किया था और वकीलों के पेश न होने के कारण मामला खारिज कर दिया गया था.'
पीठ ने कहा कि चूंकि वह व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र का है, इसलिए हो सकता है कि संबंधित वकील 2015 में मामला खारिज होने के बाद उसका पता नहीं लगा पाए हों.
सोपान नरसिंग गायकवाड़ ने 1968 में एक रजिस्टर्ड सेल डीड के जरिए एक प्लॉट खरीदा था. बाद में उन्हें पता चला कि इसके मूल मालिक ने लोन के लिए इसे बैंक में गिरवी रखा था. मूल मालिक लोन नहीं चुकाने पर बैंक ने गायकवाड़ को संपत्ति पर कुर्की के लिए नोटिस जारी किया.
गायकवाड़ ने मूल मालिक और बैंक के खिलाफ ट्रायल कोर्ट का रुख किया. ट्रायल कोर्ट ने 10 सितंबर, 1982 को उनके पक्ष में एक डिक्री पारित की. इस पर मूल मालिक ने पहली अपील की और 1987 में डिक्री को उलट दिया गया. इसके बाद गायकवाड़ ने 1988 में दूसरी अपील में हाई कोर्ट का रुख किया, जिसे 2015 में खारिज कर दिया गया.