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Rakhigarhi Site: दिल्ली से करीब 150 किलोमीटर दूर हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी में पुरातत्व विभाग ने इस साल फरवरी में फिर से खुदाई का काम शुरू किया था. यहां पर जो अवशेष खुदाई में निकल रहे हैं और जिन का अध्ययन किया गया है वह भारत के प्राचीन इतिहास की एक नई कहानी बयां कर रहे हैं.
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो (Harappian and Mohenjodaro Culture) की जो सभ्यता सबसे पुरानी मानी जाती है उस दौर से भी पुरानी सभ्यता और संस्कृति यहां फलती-फूलती रही है, इस बात के पूरे प्रमाण राखीगढ़ी में मिल रहे हैं. भारतीय पुरातत्व विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक अजय यादव के मुताबिक 'राखीगढ़ी के तकरीबन 300-350 एकड़ में 7 Mounds को चिन्हित किया गया है. इसमें से RGR1, RGR3 और RGR7 पर खुदाई का काम इस वर्ष पूरा होने वाला है'.
उस वक्त पक्के मकान और कॉन्प्लेक्स कैसे होते थे इस बात के सबूत मिले हैं.
इस बात के प्रमाण मिले हैं कि पक्की नालियां और पक्की सड़कें कैसी होती थीं.
इस बात के भी प्रमाण हैं कि उस वक्त कैसे रत्न आभूषण बनते थे.
पत्थर के मनकों की माला, अधपकी मिट्टी की मुहर, कुत्ते-बैल जैसे जानवरों की मूर्तियां आदि
साथ ही खुदाई से मिट्टी की ईंट जो आज भी हजारों साल बाद लगभग वैसी ही नजर आ रही हैं.
पहले गलियां चौंड़ी होती थीं, गलियों के किनारे कूड़ा रखने के लिए डस्टबिन होते थे.
Zee news की टीम ने पुरातत्व विभाग की टीम के साथ इस पूरे इलाके की पड़ताल की. पहले आपको बताते हैं खुदाई के लिए चिन्हित किए गए आरजीआर नंबर 1 में क्या-क्या मिला है. इस टीले पर अभी भी खुदाई का काम जारी है, लेकिन जो अवशेष दिख रहे हैं अभी उसमें बरियल यानी जहां दफनाए गए व्यक्ति के अवशेष, मकानों की अवशेष और रहन-सहन में प्रयुक्त धातुओं के कुछ अवशेष मिले हैं.
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Zee news की टीम ने पुरातत्व विभाग की टीम के साथ आरजीआर नंबर 3 का जायजा लिया जहां इस बात के पूरे प्रमाण हैं कि कैसे उस वक्त यह नगर पूरी तरह से विकसित था और व्यापार का बड़ा केंद्र रहा है. इस जगह पर पुरातत्व विभाग के सहायक पुरातत्व वेद कुमार सौरभ की देखरेख में और कई जोन के पुरातत्व विद्वानों की भागीदारी में बारीकी से खुदाई का काम जारी है हालांकि इस साल जो भी खुदाई हो सकती थी उसका काम पूरा हो गया है और अगले 10 से 15 दिन में इस टीले को बरसात के पहले पूरी तरह से ढक दिया जाएगा.
वहीं राखीगढ़ी के तमाम Mounds या कहें टीलों पर खुदाई के काम की कमान संभाले पुरातत्व विभाग के संयुक्त महानिदेशक संजय मंजुल खुदाई में मिल रहे अवशेषों और प्रमाणों से उत्साहित हैं. उनका मानना है कि जैसे-जैसे खुदाई का दायरा बढ़ेगा नए तरह के साक्ष्य मिलने की उम्मीद है. पुरातत्व विभाग के विद्वानों का मानना है कि आरजीआर 3 में जैसे-जैसे खुदाई और नीचे करेंगे वैसे वैसे हड़प्पा और उससे ज्यादा पुरानी सभ्यता के प्रमाण मिलने की पूरी संभावना है. वहीं आरजीआर 7 हड़प्पा काल का वह स्थान है जहां शव का अंतिम संस्कार किया जाता था जब यह एक व्यवस्थित शहर होता था. यहां कई शवों के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं.
पुरातत्व विभाग के संयुक्त महानिदेशक संजय मंजुल के मुताबिक 'जो कंकाल मिले हैं उनके विशेषज्ञों ने DNA नमूने लिए हैं और उन पर भी रिसर्च जारी है. अभी आरजीआर 1, 3 और 7 में जो भी अवशेष मिल रहे हैं उनका अध्ययन किया जा रहा है.' हालांकि जो पहले साक्ष्य मिले हैं और जिन का DNA अध्ययन किया गया है, उससे यह साफ है कि आज से लगभग 7000 साल पहले यहां सभ्यता फल-फूल रही थी और पूरी तरह से विकसित थी. इसमें सबसे प्रमुख बात यही है कि जो तथ्य यहां मिल चुके हैं या मिल रहे हैं उनसे धीरे-धीरे इस बात के पूरी तरह प्रमाण मिल रहे हैं, हिंदू हजारों साल से यहां के मूल निवासी रहे हैं और आर्यों को आक्रमणकारी कहने वाली अंग्रेजों के जमाने से लिखी गई इतिहास की थ्योरी गलत साबित हो रही है.
आपको बता दें कि सबसे पहले लगभग 1997-98 में पहली बार यहां खुदाई शुरू की गई थी, लेकिन बीच में ज्यादा काम नहीं हो सका. पुरातत्ववेत्ता वसंत शिंदे पहले ही यहां से की गई खुदाई में मिले साक्ष्यों और डीएनए के आधार पर इस बात का निष्कर्ष निकाल चुके हैं, यहां जो लोग रह रहे थे उनकी अपनी खेती किसानी करने का तरीका था और रहने का. व्यापार से लेकर खेती किसानी में सभी में यह लोग निपुण थे और यह लोग यहीं के मूल निवासी हिंदू थे ना कि बाहर से आए. अब केंद्र और हरियाणा सरकार इस साइट को आदर्श साइट के तौर पर विकसित कर रही है. यहां पर एक बड़ा संग्रहालय भी बनाया जा रहा है, जिसमें दुनिया की इस सबसे प्राचीनतम सभ्यता के तमाम साक्ष्य आने वाले दिनों में लोग देख सकेंगे.
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