इस रिपोर्ट के मुताबिक 29 फीसदी लोग वर्क फ्रॉम होम के पक्ष में हैं. वहीं, 24 फीसदी लोग कहते हैं कि महामारी की बढ़त रोकने में वर्क फ्रॉम होम का भी बड़ा योगदान रहा. इस बीच सिर्फ 9 फीसदी लोगों ने कहा कि वो अपने मूलस्थान पर रुकना पसंद करेंगे और वहीं से काम करना चाहते हैं.
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नई दिल्ली: भारत में कोरोना का कहर फिर बढ़ रहा है. इस बीच अंदाजा लगाया जा रहा है कि देश के कुछ हिस्सों में फिर से लॉकडाउन लग सकता है. वैसे भी महामारी के कारण अभी भी कई कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम लागू कर रखा है लेकिन इस बीच एक रिपोर्ट से चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. दरअसल, एक रिपोर्ट के मुताबिक 59 भारतीय कंपनियां या यूं कहें कि नौकरियां देने में सक्षम लोग-संस्थाएं Work From Home के पक्ष में नहीं हैं.
जॉब साइट इंडीड के मुताबिक देश की 67 फीसदी बड़ी कंपनियां और 70 फीसदी मध्यम साइज की कंपनियां वर्क फ्रॉम होम के विरोध में हैं. वहीं, वैश्विक स्तर पर 60 फीसदी बड़ी कंपनियां और 34 फीसदी मध्यम साइज की कंपनियां ये रुख रखती हैं. यहां तक कि कोरोना महामारी में भी वो वर्क फ्रॉम होम को लेकर सहज नहीं हैं. यही नहीं, 90 फीसदी ऐसी कंपनियां जो पूरी तरह से ऑनलाइन तरीके से काम करती हैं, वो भी दफ्तर से ही काम करना पसंद करती हैं. जबकि उनका सारा काम और रिपोर्टिंग ऑनलाइन ही होती है. इंडीड इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर सशि कुमार ने कहा कि वर्क फ्रॉम होम या रिमोट वर्क कल्चर की वजह से कंपनियों को काम करने के तरीके में बदलाव लाने पड़े हैं. ऐसी कंपनियों को प्रोत्साहन देना होगा, ताकि वो नए कॉन्सेप्ट और काम करने के तरीके में फ्लेक्सिबिलिटी लाकर अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ा सकें.
कोरोना महामारी के दौर में देश में एक महापलायन का दौर चला था. हालांकि अब भी 45 फीसदी से ज्यादा कर्मचारी मानते हैं कि ये महापलायन समय के साथ फिर से वापस हो जाएगा और लोग अपनी जगहों पर फिर से आ जाएंगे. वहीं 50 फीसदी कर्मचारियों का कहना है कि अगर उनकी नौकरी बची रहती है, तो वे वापस अपनी पुरानी जिंदगी शुरू करना चाहते हैं. यानी कि दफ्तर में बैठकर काम करना.
इस रिपोर्ट के मुताबिक 29 फीसदी लोग वर्क फ्रॉम होम के पक्ष में हैं. वहीं, 24 फीसदी लोग कहते हैं कि महामारी की बढ़त रोकने में वर्क फ्रॉम होम का भी बड़ा योगदान रहा. इस बीच सिर्फ 9 फीसदी लोगों ने कहा कि वो अपने मूलस्थान पर रुकना पसंद करेंगे और वहीं से काम करना चाहते हैं.
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इस सर्वे में 1200 कर्मचारी और 600 ऐसे लोग शामिल हुए, जो एम्प्लॉयर की श्रेणी में आते हैं. इनमें से सिर्फ 32 फीसदी लोगों ने कहा कि अगर उनकी सैलरी में कटौती भी होती है, लेकिन उन्हें अपने पुश्तैनी घरों यानी गांवों में रहकर काम करने का मौका मिलता है, तो वे तैयार हैं. हालांकि मिड लेवल के 88 फीसदी लोगों ने कहा कि वो किसी भी तरह की सैलरी में कटौती को झेल नहीं सकते. वहीं, 61 फीसदी लोगों ने कहा कि वो अपने होम टाउन से काम करते समय भी किसी सैलरी कट का सामना नहीं करना चाहते.
(इनपुट-आईएएनएस)